रायपुर। छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के गृह जिला की सड़कों का मुआयना करने दिल्ली से भूतल परिवहन विभाग के सचिव स्तर के अधिकारी के साथ नेशनल हाईवे के अधिकारियों का जत्था जशपुर पहुंच चुका है। 20 से 22 गाड़ियों का काफिला मुख्यमंत्री के गृह ग्राम के आसपास का की सड़कों को देखने के साथ ही इस बात की भी पड़ताल कर रहा है कि आखिर क्या वजह रही कि पिछले 10 साल से बन रही एनएच 43 कंप्लीट क्यों नहीं हो पाया।विडंबना है कि देश में सड़कों का जाल बिछ गया है मगर जशपुर में सड़को की ऐसी बदहाली है कि जशपुर जाने के नाम से आदमी हिल जाता है। राज्य निर्माण के 23 साल हो गए मगर रोड कनेक्टिविटी नहीं बन पाई। यही वजह है कि जशपुर के नाम पर वहां पोस्टिंग से अधिकारी, कर्मचारी भी काला पानी मानते हैं। बता दें, रायगढ़ और जशपुर के बीच 100 किलोमीटर का पैच पिछले 10 साल से बन रहा है। पता नहीं रोड कंट्रेक्टर से क्या लफड़ा है कि बड़े-बड़े दिग्गज अफसर और मंत्री इस सड़क को कंप्लीट करा पाने में नाकाम रहे। अब नए सीएम के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि जशपुर की कनेक्टिविटी कैसे दुरूस्त किया जाए। कुनकुरी से जशपुर तक 40 किलोमीटर फोर लेन सड़क बन चुकी है। रायगढ़ से कुनकुरी के बीच 100 किमी सड़क अगर कंप्लीट हो जाए तो रायपुर से सात से आठ घंटे में आदमी जशपुर पहुंच जाएगा। अभी बिना कहीं रुके जाएं तो 10 से 11 घंटे लगते हैं। खाना, चाय, नाश्ता के लिए रुके तो 12 से 13 घंटा।बहरहाल, जशपुर जाने के लिए सबसे सीधा रास्ता व्हाया रायगढ़़़, धरमजयगढ़़, पत्थलगांव, कुनकरी है। इसमें रायपुर से रायगढ़ तक फोर लेन बन गया है। मगर उसके आगे बड़ी खराब स्थिति है। धरमजयगढ़ तक तो आप गिरते-पड़ते पहुंच भी जाएंगे तो उसके आगे पत्थलगांव, कुनकुरी तक सड़कों के नाम पर हैं तो सिर्फ गड्ढे। धरमजयगढ़ के लोगों को अगर जशपुर जाना है तो पत्थलगांव की बजाए तपकरा होकर जशपुर जाते हैं।दूसरा रास्ता है, अंबिकापुर से होते हुए। रायपुर से बिलासपुर, कोरबा और अंबिकापुर के लिए पिछले एक साल में सड़कें कुछ ठीक हो गई है। मगर अंबिकापुर के बाद वही स्थिति। हिचकोले खाती गाड़ियां। संभल के नहीं बैठे तो लग्जरी गाड़ी में भी आपके मुंह से उफ्फ निकल आएगा।दोनों रास्तों की खराब स्थिति को देखते जशपुर के बड़े नेता, नौकरशाह से लेकर कारोबारी संबलपुर, झारसुगड़ा, कुनकुरी होकर रायपुर आना-जाना करते हैं। यानी अपने ही प्रदेश में जाने के लिए दूसरे प्रदेश की सड़कां का सहारा लेना।
रायपुर। छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के गृह जिला की सड़कों का मुआयना करने दिल्ली से भूतल परिवहन विभाग के सचिव स्तर के अधिकारी के साथ नेशनल हाईवे के अधिकारियों का जत्था जशपुर पहुंच चुका है। 20 से 22 गाड़ियों का काफिला मुख्यमंत्री के गृह ग्राम के आसपास का की सड़कों को देखने के साथ ही इस बात की भी पड़ताल कर रहा है कि आखिर क्या वजह रही कि पिछले 10 साल से बन रही एनएच 43 कंप्लीट क्यों नहीं हो पाया।विडंबना है कि देश में सड़कों का जाल बिछ गया है मगर जशपुर में सड़को की ऐसी बदहाली है कि जशपुर जाने के नाम से आदमी हिल जाता है। राज्य निर्माण के 23 साल हो गए मगर रोड कनेक्टिविटी नहीं बन पाई। यही वजह है कि जशपुर के नाम पर वहां पोस्टिंग से अधिकारी, कर्मचारी भी काला पानी मानते हैं। बता दें, रायगढ़ और जशपुर के बीच 100 किलोमीटर का पैच पिछले 10 साल से बन रहा है। पता नहीं रोड कंट्रेक्टर से क्या लफड़ा है कि बड़े-बड़े दिग्गज अफसर और मंत्री इस सड़क को कंप्लीट करा पाने में नाकाम रहे। अब नए सीएम के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि जशपुर की कनेक्टिविटी कैसे दुरूस्त किया जाए। कुनकुरी से जशपुर तक 40 किलोमीटर फोर लेन सड़क बन चुकी है। रायगढ़ से कुनकुरी के बीच 100 किमी सड़क अगर कंप्लीट हो जाए तो रायपुर से सात से आठ घंटे में आदमी जशपुर पहुंच जाएगा। अभी बिना कहीं रुके जाएं तो 10 से 11 घंटे लगते हैं। खाना, चाय, नाश्ता के लिए रुके तो 12 से 13 घंटा।बहरहाल, जशपुर जाने के लिए सबसे सीधा रास्ता व्हाया रायगढ़़़, धरमजयगढ़़, पत्थलगांव, कुनकरी है। इसमें रायपुर से रायगढ़ तक फोर लेन बन गया है। मगर उसके आगे बड़ी खराब स्थिति है। धरमजयगढ़ तक तो आप गिरते-पड़ते पहुंच भी जाएंगे तो उसके आगे पत्थलगांव, कुनकुरी तक सड़कों के नाम पर हैं तो सिर्फ गड्ढे। धरमजयगढ़ के लोगों को अगर जशपुर जाना है तो पत्थलगांव की बजाए तपकरा होकर जशपुर जाते हैं।दूसरा रास्ता है, अंबिकापुर से होते हुए। रायपुर से बिलासपुर, कोरबा और अंबिकापुर के लिए पिछले एक साल में सड़कें कुछ ठीक हो गई है। मगर अंबिकापुर के बाद वही स्थिति। हिचकोले खाती गाड़ियां। संभल के नहीं बैठे तो लग्जरी गाड़ी में भी आपके मुंह से उफ्फ निकल आएगा।दोनों रास्तों की खराब स्थिति को देखते जशपुर के बड़े नेता, नौकरशाह से लेकर कारोबारी संबलपुर, झारसुगड़ा, कुनकुरी होकर रायपुर आना-जाना करते हैं। यानी अपने ही प्रदेश में जाने के लिए दूसरे प्रदेश की सड़कां का सहारा लेना।