अब होगी चेहरे और इकबाल की असली परीक्षा

Update: 2022-10-15 06:50 GMT

अखिलेश अखिल

चेहरा और इकबाल । चुनावी राजनीति के दो बड़े अस्त्र । यही दो ऐसे अस्त्र हैं जो नेताओं की जनता में पैठ बनाते हैं और जनता अपना सब दुख दर्द भूलकर फिर उसी चेहरे और इकबाल के भरोसे अगला दाव भी लगा देती है ।पुराने जमाने में चुनाव जीतने के यही अस्त्र मात्र थे। समय गुजरा और देश थोड़ा सबल हुआ तो पैसे ,गुंडागर्दी जिसे बाहुबली भी कहते हैं का दौर भी आया। समय के साथ गुंडई के जरिए राजनीति करने का दौर तो खत्म हो गया लेकिन पैसे की माया बढ़ती गई। पहले से तीव्र हो गई । इसमें तकनीक भी आ गया।घर बैठे तकनीक के सहारे चुनाव और जनता को नियंत्रित किया जाने लगा। आज का यही दौर है ।

खेल देखिए।देश में अब बूथ लूटने की कहानी नही आती । बूथ लुटेरे तो नेता बन गए। पहले नेताओं के साथ रहकर योजनाओं को लुटा ।ज्यादा खाया और अपने आकाओं को खिलाया। गांठ को मजबूत किया ।पहले केवल बाहुबली था अब धनबली भी बन गया।फिर चुनाव में हिस्सा लिया और सांसद ,विधायक बनने में सबको पछाड़ते हुए बड़का नेता बनता गया।

यह इसी लोकतंत्र को माया है कि इस देश में अब अपराधी बूथ नही लूटते।सीधे सदन में पहुंचते हैं। लोकतंत्र की इसी माया से देश का संसद और सभी विधान सभाएं डाकुओं,बलात्कारियों,अपराधियों,ठगो और गिरोह चलाने वालों से भरी हुई है । इसमें कोई दल किसी से पीछे नहीं ।चुनाव आयोग अपराधियों को टिकट न देने को लेकर रट लगाए रहता है लेकिन उसकी आवाज को सुने कौन i

खैर बात ये है कि कहानी की शुरुआत तो चुनाव में चेहरे और इकबाल से शुरू हुई थी ।लेकिन एक बात और ।हमारे देश में जाति और धर्म के बिना चुनाव असंभव है ।फिर जातियों में उपजाति और धर्मो में उपधर्म की गजब कथा है ।देश संविधान सेक्युलर है ।देश को न कोई खास जाति और न खास धर्म लेकिन यहां के लोगों की असली पहचान भारतीय नही कोई जाति और धर्म ही है ।

जातियों की राजनीति खासकर 80 के दशक से देश में शुरू हुई ।खासकर कांग्रेस के खिलाफ जातियों के नाम पर क्षत्रप खड़े हुए ।पार्टियां बनाई और चुनावी खेल में सफल भी होते गए।मौजूदा समय में देश के तमाम राज्यों में जितनी क्षेत्रीय पार्टियां खड़ी है उनमें अधिकतर कांग्रेस के खिलाफ बनी थी और को कांग्रेस के खिलाफ नही थी वे खास जाति को आगे बढ़ाने के नाम पर खड़ी हुई ।देखते देखते जातियों को राजनीति करने वाली पार्टियों की श्रृंखला खड़ी हो गई ।उत्तर से दक्षिण और पर से पश्चिम हर जगह जातियां खड़ी हुई और अपनी राजनीति की ।आज भी देश में उन जातिवादी पार्टियों की मौजूदगी देश की राजनीति को प्रभावित कर रही है ।

खेल देखिए।इस देश में दलित पिछड़े और आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है ।इसमें अल्पसंख्यकों को भी जोड़ दें तो करीब यह आबादी 85 फीसदी के आसपास हो जाती है ।लेकिन आजादी के लंबे समय बाद तक सवर्ण समाज की ताजपोशी सत्ता में होती रही ।वोट किसी और का और राज कोई और करे। मंडल आयोग के बाद जनता का मिजाज बदला और मंडल आयोग को लागू करने वाले नेताओं ने समाज में ऐसा बिगुल फूंका कि पूरे देश में जातीय राजनीति शुरू हो गई। लंबे समय तक देश जातीय दंगों से गुजरा ।सवर्ण और गैर सवर्ण की लड़ाई चलती रही ।चुनाव होते रहे और सदन की गरिमा गिरती गई ।

इस दौरान क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को कमजोर किया ही बीजेपी जैसी पार्टी तेजी से ऐसे बढ़ी ।उसके पीछे संघ को शक्ति मिली और समझ भी । बीजेपी और संघ को कल्पना कट्टर हिंदुत्व को रही इसलिए उसने अपने सभी एजेंडो को हिंदुत्व को नजरों से तैयार किया और जातियों में बंटे समाज को धार्मिक रंग दे दिया। हिन्दू बनाम मुस्लिम को राजनीति बीजेपी ने शुरू की ।उसने जान लिया कि हिंदुत्व के नाम जातियों में बंटे दलित ,पिछड़े भी इनके साथ आएंगे और फिर उनके पास मुस्लिम को छोड़कर करीब 80 फीसदी आबादी का विशाल समर्थन मिलेगा ।

बीजेपी को इसका लाभ मिला भी ।अछूत समझा जाने वाली पार्टी अचानक धार्मिक एजेंडे को चलाकर देश को सबसे बड़ी पार्टी हुई और फिर सत्ता पर काबिज भी ।देखते देखते बीजेपी का विस्तार और सरकार अनेक राज्यों तक हुआ और पिछले दो टर्म से वह केंद्र को सत्ता पर भी मजबूती से बैठी है ।

लेकिन कहते है कि हर विकाश में ही विनाश के बीज छुपे होते हैं। केंद्र की मोदी सरकार ने कई बेहतर काम भी किए लेकिन उनके अधिकतर काम वादों पर टिके रहे ।देश की असली समस्या की जगह नकली मुद्दे सरकार और बीजेपी के लोग उठाते रहे और जनता उसमे उलझती भी रही ।बीजेपी चाहती भी यही थी ।हिंदुत्व का नशा लोगो में आज भी सर चढ़कर बोलता है ।

अब फिर जब अगला लोकसभा चुनाव होने का समय आ गया है तब बीजेपी की झूठी राजनीति विपक्ष के रडार पर है ।पहले केवल बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस समेत कुछ पार्टियां भर थी लेकिन अब बीजेपी के खिलाफ वे पार्टियां भी खड़ी है जो सालों तक एंडी ए का हिस्सा रही है ।शिवसेना बीजेपी से हटी तो उसे खंडित किया गया ।कांग्रेस की कई राज्य सरकार को गिराकर बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई।पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंदू मुसलमान का खेला हुआ और पूर्वोत्तर बीजेपी मय हो गया ।और सरकार बनाने के इस खेल में जनता और देश की मौलिक समस्याएं बढ़ती चली गई ।

हाल में ही बीजेपी को बड़ा झटका बिहार में नीतीश कुमार ने दी है ।कुमार अब बीजेपी के खिलाफ दुदिंभी बजाते निकल रहे हैं। विपक्षी एकता के जरिए बीजेपी को नाथने की कोशिश की जा रही है ।उधर अपना सबकुछ जमींदोज कर चुकी कांग्रेस अपने को जिंदा रखने के लिए भारत जोड़ो यात्रा पर निकली है । लंबे समय के बाद कांग्रेस में कोई गैर गांधी परिवार का अध्यक्ष होने का रहा है तो कांग्रेस को कोई दलित अध्यक्ष भी मिलेगा ।

दलितों और पिछड़ों की राजनीति पर टिकी देश की राजनीति अब नए मुकाम पर है ।बिहार समेत देश भर में जातिगत गणना की शुरुआत होने को है ।यह बीजेपी के लिए शुभ संकेत नही ।सभी विपक्षी एकता के सूत्र में बांधने को तैयार है ।कांग्रेस अपनी जमीन तैयार करने को उतावली है और गांधी परिवार से अलग कोई दलित कांग्रेस को चलाने को बेताब है ।ऐसे में चेहरा और इकबाल की राजनीति अब कितने दिन की चलेगी कहना मुश्किल है ।

मोदी आज भी सबसे चहेते नेता जरूर हैं लेकिन इनका इकबाल अब सफल जैसा नही ।मोदी के बाद के किसी भी नेताओ पर जनता का कोई यकीन नहीं रह गया है ।बीजेपी के भीतर भी इस पर मंथन है और संघ के भीतर भी ।इकबाल अगर ढह गया तो सत्ता बदल सकती है ।

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