अबोध बालिका के दुष्कर्म से गर्भवती मामले में राज्य सरकार के गंभीर मानवीय आश्वासन पर हाईकोर्ट से याचिका निराकृत -“राज्य आजीवन अबोध माँ और गर्भस्थ शिशु की जवाबदेही लेता है”

Update: 2020-03-18 16:17 GMT

बिलासपुर,18 मार्च 2020। छत्तीसगढ़ के बालोद ज़िले की ग्यारह वर्षीया बालिका से नज़दीकी रिश्तेदार द्वारा अनाचार के बाद 6 माह के गर्भधारण मसले पर हाईकोर्ट में दायर याचिका जिसमें कि, बालिका के गर्भपात की अनुमति माँगी गई थी, उसमें उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के गंभीर मानवीय आश्वासन पर याचिका निराकृत कर दी है।

बालोद ज़िले की इस अबोध पीडिता के गर्भपात के लिए विगत 16 मार्च को याचिका दायर की गई थी। बालोद ज़िला पुलिस ने इस मसले में 20 फ़रवरी को संबंधित थाना में अपराध क्रमांक 39/2020 दर्ज कर लिया था। हालाँकि तब तक बालिका के गर्भावस्था को 27 हफ़्ते का समय हो चुका था।

गर्भपात के लिए पेश याचिका पर हाईकोर्ट ने गर्भपात को लेकर मेडिकल रिपोर्ट माँगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि,गर्भपात कराने से अबोध बालिका को ख़तरा तो नहीं रहेगा। महिला विशेषज्ञों की टीम ने रिपोर्ट दी कि
“बीस सप्ताह की समय सीमा से यह काफ़ी अधिक होने के कारण गर्भ को जारी रखने और गर्भपात कराए जाने दोनों ही अवस्था में जान के जोखिम की संभावना रहेगी”

आज इस प्रकरण पर सुनवायी के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने हाईकोर्ट से कहा –
“राज्य मानता है कि यह असाधारण प्रकृति का प्रकरण है..इसलिए राज्य पीड़िता माँ और उसकी संतान के गहन चिकित्सा, समस्त देखरेख एवं व्यय की ज़िम्मेदारी लेता है और आजीवन उन दोनों की जवाबदेही का वहन किया जाएगा”

हाईकोर्ट को महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने बताया-
“इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव से चर्चा हो चुकी है और उन्होंने सहमति दी है..राज्य सरकार का यह व्यवहार उसकी संजीदगी और पीड़ितों के प्रति सह्रदयता है”

हाईकोर्ट में महाधिवक्ता ने कहा –
“एक रास्ते से दोनों की जान को ख़तरा है.. और एक में दोनों की जान को बेहतर सुरक्षा संभावना है.. तो यह बेहतर है कि हम बचाने की ओर बढ़ें”

राज्य सरकार की ओर से यह भावनात्मक और गंभीर मानवीय आश्वासन के बाद हाईकोर्ट ने याचिका निराकृत कर दी।

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