nationalization of banks: इंदिरा गांधी के इस फैसले ने रातोंरात कैसे बदल दी भारत में बैंकिंग व्यवस्था! रात में रेडियो पर किया गया था ऐलान
भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बड़े फैसलों में शामिल था बैंकों का राष्ट्रीयकरण। 19 जुलाई 1969 को इंदिरा ने एक अध्यादेश जारी किया और 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। आइए जानते हैं इसके पीछे के राजनीतिक और आर्थिक कारण।
देश की आजादी के वक्त सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक समेत कई बैंक प्राइवेट सेक्टर में आते थे, लेकिन 19 जुलाई 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक अध्यादेश लाकर 14 निजी बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। आज हम आपको बताएंगे कि इंदिरा गांधी ने भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला क्यों लिया? इसके क्या राजनीतिक और आर्थिक कारण थे?
इंदिरा गांधी ने 19 जुलाई 1969 में 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। 19 जुलाई 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 'बैंकिंग कंपनीज आर्डिनेंस' के नाम से अध्यादेश लेकर आईं। इसके जरिए देश के 14 बड़े निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इस फैसले को इंदिरा गांधी के बड़े फैसलों में गिना जाता है, जिसने बाद में पूरी बैंकिंग व्यवस्था बदल दी।
24 घंटे के अंदर अध्यादेश का प्रारूप हुआ तैयार
उस समय वित्त मंत्रालय का बैंकिंग संभाग संभालने वाले डीएन घोष के पास 17 जुलाई 1969 को एक फोन आया। उन्हें फोन पर 24 घंटे के भीतर एक अध्यादेश का प्रारूप तैयार करने के लिए कहा गया था। फोन रखते ही वे काम पर लग गए और दो दिन बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडिया पर देशवासियों के नाम संदेश देते हुए बैंकों के राष्ट्रीयकरण की जानकारी दी। इंदिरा गांधी ने जब ये महत्वपूर्ण घोषणा की थी, तब रात के साढ़े 8 बज रहे थे।
दूसरे विश्वयुद्ध में देशों को हुआ था भारी नुकसान
अगर इतिहास में चलें, तो दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में बैंकों को सरकार के अंडर करने का विचार आया, क्योंकि सेकेंड वर्ल्ड वॉर में देशों को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा था। संकट से उबरने के लिए कई यूरोपीय देशों ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था। भारत में भी 1949 में भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया था। इस समय तक भारत में जितने भी निजी बैंक थे, वे सभी उद्योगपतियों के हाथों में थे। बैंकों का कारोबार भी केवल बड़े शहरों तक ही सीमित था।
मोरारजी देसाई ने किया था बैंकों के राष्ट्रीयकरण का विरोध
इंदिरा गांधी का मानना था कि बैंकों को ग्रामीण क्षेत्रों में ले जाना जरूरी है। निजी बैंक देश के सामाजिक विकास में अपनी भागीदारी नहीं निभा रहे हैं। इसलिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण जरूरी है। हालांकि इंदिरा गांधी के इस फैसला का विरोध खुद उनकी ही सरकार के वित्त मंत्री मोरारजी देसाई कर रहे थे।
जिन 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया, उनके पास उस वक्त देश की करीब 80 फीसदी जमा पूंजी थी, लेकिन इस पैसे का निवेश सिर्फ लाभ वाले क्षेत्रों में ही किया जा रहा था। इस वजह से सरकार ने इन बैंकों को अपने अधीन करने का फैसला लिया था। 1967 में इंदिरा ने कांग्रेस पार्टी में 10 सूत्रीय कार्यक्रम पेश किया। इस कार्यक्रम में बैंकों पर सरकार का नियंत्रण, राजा-महाराजाओं को मिलने वाली सरकारी मदद और न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण मुख्य बिंदु थे। 7 जुलाई 1969 को कांग्रेस के बैंगलुरू अधिवेशन में इंदिरा गांधी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रस्ताव रखा।
फैसले के राजनीतिक कारण
जिस वक्त 14 बैंकों का नेशनलाइजेशन किया गया, उस वक्त देश दो युद्ध झेल चुका था, साथ ही सूखे के चलते खेती भी काफी प्रभावित हुई थी। उस वक्त राष्ट्रपति चुनाव होना था और कांग्रेस पार्टी में नाम पर एकराय नहीं बन पा रही थी। इंदिरा गांधी के उम्मीदवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का समर्थन नहीं मिल रहा था। ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री मोरारजी देसाई से वित्त मंत्रालय का काम अपने पास ले लिया। इसके बाद बैकों के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी।
सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया था मामला
बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और उच्चतम न्यायालय ने अध्यादेश को निरस्त कर दिया। फिर सरकार ने कानून बनाकर इसे लागू किया। इस घोषणा के बाद भारतीय स्टेट बैंक और उसके 7 सहायक बैंकों सहित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 22 हो गई थी। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के नियंत्रण में उस समय की कुल बैंक शाखाओं का 82 प्रतिशत, कुल जमा राशियों का 83 प्रतिशत और कुल बैंक ऋण का 84 प्रतिशत था। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का तेजी से विस्तार किया गया।
जून 1969 में देश में 65,000 लोगों के बीच एक बैंक शाखा थी। जून 1980 में प्रति 17,000 व्यक्ति एक बैंक शाखा थी। 1990 में देश के कुल बैंकिंग कारोबार का 90 प्रतिशत हिस्सा सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पास था। मार्च 1992 में देश में सरकारी क्षेत्र के बैंकों की 60,646 शाखाएं काम करने लगी थीं। 1990 के दशक में शुरू बैंकिंग रिफॉर्म से बैंकिंग सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद मिली।
राष्ट्रीयकरण का मतलब
राष्ट्रीयकरण का अर्थ होता है किसी भी निजी संस्थान को सरकारी नियंत्रण में लेना। बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मतलब है निजी बैंकों को सरकारी कब्जे में लेना। भारतीय स्टेट बैंक का राष्ट्रीयकरण जुलाई 1955 में किया गया था। 1969 में भारत की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी, लोग बैंक जाने से कतरारे थे। प्राइवेट बैंक देश हित की जगह अपने मालिक के हित की परवाह करते थे। भारत सरकार के पास पूंजी की भी दिक्कत थी, इसलिए इंदिरा गांधी को ये ऐतिहासिक फैसला लेना पड़ा था।
1991 के बाद बैंकिंग सुधार किए गए। पहले गांवों में बैंकों की ब्रांच नहीं होती थी, लेकिन आज की तारीख में हर गांव के 5 किलोमीटर के दायरे में कोई न कोई बैंक है।
1969 में इंदिरा गांधी ने जिन 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, उनमें ये शामिल थे-
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
- बैंक ऑफ इंडिया
- पंजाब नेशनल बैंक
- बैंक ऑफ बड़ौदा
- देना बैंक
- यूको बैंक
- केनरा बैंक
- यूनाइटेड बैंक
- सिंडिकेट बैंक
- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
- इलाहाबाद बैंक
- इंडियन बैंक
- इंडियन ओवरसीज बैंक
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र
बता दें कि साल 2017 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 27 थी। पिछले कुछ सालों में पीएसयू बैंकों की संख्या अब 27 से घटकर 12 हो गई है। इससे पहले साल 2017 में मोदी सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के5 सब्सिडियरी बैंकों को भारतीय स्टेट बैंक में मिला दिया था। इनमें स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद शामिल थे। इसके साथ ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया देश का सबसे बड़ा बैंक बन गया।
मोदी सरकार ने 2018 में तीन और बैंकों के विलय का ऐलान किया था. इन तीन बैकों में बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ देना बैंक और विजया बैंक का विलय कर दिया गया। 2019 में सरकार ने कुछ और सरकारी बैंकों के विलय का ऐलान किया। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पंजाब नेशनल बैंक (PNB) के साथ ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (OBC) और यूनाइटेड बैंक में विलय की घोषणा की। इसके साथ ही पंजाब नेशनल बैंक दूसरा सबसे बड़ा बैंक बन गया।
वहीं यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का विलय हो गया। इसके साथ ही यह पांचवां सबसे बड़ा बैंक बन गया है। वहीं इंडियन बैंक और इलाहाबाद बैंक का विलय हो गया। जिसके बाद यह सातवां सबसे बड़ा बैंक हो जाएगा। इसके अलावा केनरा बैंक का सिंडिकेट बैंक के साथ मर्जर हो गया।
देश में अब 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक रह गए हैं-
- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
- पंजाब नेशनल बैंक
- बैंक ऑप बड़ौदा
- कैनरा बैंक
- यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
- बैंक ऑफ इंडिया
- इंडियन बैंक
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
- इंडियन ओवरसीज बैंक
- यूको बैंक
- बैंक ऑप महाराष्ट्र
- पंजाब एंड सिंध बैंक