Judge Yashwant Varma Cash Case: बेहिसाब नकदी मिलने के बाद भी जस्टिस यशवंत वर्मा ने ली शपथ! इलाहाबाद हाई कोर्ट के बने जज, मचा बवाल!
Judge Yashwant Varma Cash Case: दिल्ली हाई कोर्ट से तबादले के बाद जस्टिस यशवंत वर्मा ने शनिवार, 5 अप्रैल 2025 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली।
Judge Yashwant Varma Cash Case: दिल्ली हाई कोर्ट से तबादले के बाद जस्टिस यशवंत वर्मा ने शनिवार, 5 अप्रैल 2025 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली। हालांकि, उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास में भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में चल रही आंतरिक जांच के कारण उन्हें अभी न्यायिक कार्यों से दूर रखा गया है। इलाहाबाद हाई कोर्ट में वरिष्ठता के लिहाज से वह मुख्य न्यायाधीश के बाद छठे स्थान पर हैं। यह तबादला सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर हुआ था, जिसे केंद्र सरकार ने 28 मार्च को मंजूरी दी थी। लेकिन इस पूरे प्रकरण ने न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आइए इस मामले की पूरी जानकारी लेते हैं।
शपथ ग्रहण में खास बात
जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में सामान्य सार्वजनिक शपथ ग्रहण समारोह से अलग एक निजी कक्ष में शपथ ली। ऐसा उनके खिलाफ चल रही आंतरिक जांच को ध्यान में रखते हुए किया गया। इससे पहले अधिवक्ता विकास चतुर्वेदी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में एक जनहित याचिका दायर कर जांच पूरी होने तक शपथ ग्रहण पर रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। जस्टिस वर्मा के शपथ ग्रहण के बाद भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं, क्योंकि जांच कमेटी अभी तक कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाई है।
नकदी मिलने का मामला क्या है?
14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास के स्टोर रूम में आग लग गई थी। उस वक्त जस्टिस वर्मा शहर से बाहर थे। उनके परिवार ने तुरंत अग्निशमन विभाग और पुलिस को सूचना दी। आग बुझाने के बाद अग्निशमन टीम को स्टोर रूम से भारी मात्रा में नकदी मिली, जिसकी अनुमानित कीमत 15 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इस घटना की जानकारी भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना तक पहुंची, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक बुलाई। बैठक में सर्वसम्मति से जस्टिस वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट करने का फैसला लिया गया।
जस्टिस वर्मा का बयान: जस्टिस वर्मा ने अपनी सफाई में कहा कि यह नकदी उनकी नहीं है और यह उन्हें बदनाम करने की साजिश है। उन्होंने दावा किया कि स्टोर रूम खुला था, जहां कोई भी आ-जा सकता था।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 20 मार्च को जस्टिस वर्मा के तबादले की सिफारिश की थी, जिसे औपचारिक रूप देने के बाद केंद्र सरकार को भेजा गया। सरकार ने 28 मार्च को इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। हालांकि, कॉलेजियम ने यह भी स्पष्ट किया कि यह तबादला नकदी कांड से सीधे जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक प्रशासनिक निर्णय है। इसके बावजूद, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस तबादले का कड़ा विरोध किया। एसोसिएशन ने कहा, "हमारा कोर्ट कचरे का डिब्बा नहीं है। जस्टिस वर्मा का यहां स्वागत नहीं किया जाएगा।" बार ने इसके खिलाफ हड़ताल भी शुरू की थी।
आंतरिक जांच का हाल
CJI संजीव खन्ना ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी.एस. संधवालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं। यह कमेटी अभी तक अपनी रिपोर्ट सौंप नहीं पाई है। जांच पूरी होने तक जस्टिस वर्मा को किसी भी न्यायिक कार्य से अलग रखने का निर्देश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें इस मामले में FIR दर्ज करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि अभी जांच चल रही है और यह कदम उठाना जल्दबाजी होगी।
जस्टिस वर्मा का तबादला और नकदी कांड ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही पर बहस छेड़ दी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का विरोध और जांच कमेटी की रिपोर्ट इस मामले के भविष्य को तय करेगी। अगर जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोप साबित होते हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है, जिसमें इस्तीफे की मांग या संसद के जरिए हटाने की प्रक्रिया शामिल हो सकती है। फिलहाल, देश की नजर इस जांच के नतीजों पर टिकी है।