Indian Railways Facts: ट्रेन इंजन में नहीं होता टॉयलेट! तो लोको पायलट कैसे होते हैं फ्रेश? जवाब जानकर रह जाएंगे हैरान!
नई दिल्ली: आपने ट्रेन यात्रा के दौरान कभी सोचा है कि जब ट्रेन दौड़ रही होती है तो उसे चला रहे लोको पायलट (ड्राइवर) टॉयलेट के लिए कहां जाते होंगे?
नई दिल्ली: आपने ट्रेन यात्रा के दौरान कभी सोचा है कि जब ट्रेन दौड़ रही होती है तो उसे चला रहे लोको पायलट (ड्राइवर) टॉयलेट के लिए कहां जाते होंगे? दरअसल, भारतीय रेल के अधिकतर इंजनों में टॉयलेट नहीं होता। ऐसे में सफर के बीच अचानक जरूरत पड़ने पर लोको पायलट क्या करते हैं, यह जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
इंजन में टॉयलेट क्यों नहीं होता?
ट्रेन का इंजन कोई सामान्य केबिन नहीं बल्कि एक हाई-टेक कंट्रोल हब है। इसमें हर इंच जगह कंट्रोल पैनल, ब्रेक सिस्टम, मोटर और दूसरी मशीनरी से भरा होता है। यहां डिजाइन का उद्देश्य सिर्फ ट्रेन को सुरक्षित, तेज और समय पर गंतव्य तक पहुंचाना है। इसमें टॉयलेट के लिए जगह निकालना तकनीकी रूप से मुश्किल होता है, क्योंकि कोई भी फेरबदल ट्रेन संचालन और सुरक्षा को मुतास्सिर कर सकता है।
लोको पायलट टॉयलेट जाने के लिया क्या करते हैं?
जब लोको पायलट को टॉयलेट जाना होता है, तो वे अगले स्टेशन तक इंतजार करते हैं। स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही वे रेलवे द्वारा बनाए गए रेस्टरूम का इस्तेमाल करते हैं। लंबी ड्यूटी से पहले वे पहले ही फ्रेश होकर निकलते हैं, ताकि सफर में परेशानी न हो। पुराने जमाने में भी स्टीम या डीजल इंजन के दौर में यही तरीका अपनाया जाता था।
गर्मी, लंबी दूरी और स्टेशनों के बीच ज्यादा फासला लोको पायलट के लिए मुश्किल बढ़ा देता है। कई बार उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ता है, जो उनके आराम और एकाग्रता को प्रभावित करता है। बड़े स्टेशनों पर अच्छे रेस्टरूम होते हैं, लेकिन छोटे स्टेशनों पर सुविधाएं सीमित रहती हैं।
रेलवे की नई पहल
लोको पायलट लंबे समय से इंजन में टॉयलेट लगाने की मांग कर रहे हैं। अब रेलवे इस दिशा में काम कर रहा है। कुछ आधुनिक इंजनों में अटैच टॉयलेट की टेस्टिंग हो चुकी है, और वंदे भारत ट्रेनों में यह सुविधा पहले से मौजूद है। भविष्य में यह सुविधा सभी इंजनों में लागू होने की उम्मीद है, जिससे लोको पायलट को सफर में राहत मिलेगी।