High Court News: जजों पर अपमानजनक टिप्पणी करने वाले वकील को हाई कोर्ट ने सुनाई सजा, एक लाख रुपये जुर्माना देने का आदेश
High Court News: जजों के खिलाफ अपमानजक टिप्पणी से नाराज हाई कोर्ट ने एक वकील को तीन महीने की सजा सुनाई है। नाराज हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि 80 दिनों की कारावास अवधि में कोई छूट नहीं दी जाएगी। तीन महीने की सजा काटने वाले वकील को एक लाख रुपये जुर्माना भी भरना होगा।
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High Court News: अहमदाबाद। जजों और ज्यूडिशियल अफसरों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले एक वकील को तीन महीने की सजा और एक लाख रुपये जुर्माना की सजा सुनाई है। जजों व न्यायिक अफसरों के खिलाफ झूठे व निंदनीय आरोप लगाने के मामले को न्यायालय का अवमानना माना है। न्यायालयीन अवमानना के आरोप में वकील को यह सजा सुनाई है।
मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा कि अवमाननाकर्ता वकील को पर्याप्त अवसर देने के बाद भी उसने अपने कृत्य के लिए माफी नहीं मांगी। माफी मांगने के बजाय अपना आचरण अवमाननापूर्ण ही रखा। बेंच ने कहा कि वकील के इस आचरण से अदालत की गरिमा को ठेस पहुंची है। बेंच ने इस बात पर नाराजगी जताई कि अवमाननाकर्ता अधिवक्ता द्वारा न्यायमित्र के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज कराने के अलावा जजों पर मुकदमा चलाने की मांग,कोर्ट के जजों और चीफ जस्टिस के नाम समाचार पत्रों में सार्वजनिक सूचना प्रकाशित करना, यह सब न्याय शासन की प्रक्रिया में हस्तक्षेप के साथ ही न्यायालय की गरिमा को कम करने के अलावा न्यायालय की कार्यवाही को प्रभावित करने, न्यायालय के अधिकारियों के कार्य में बाधा डालने और न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने का काम किया जा रहा है। अवमाननाकर्ता अधिवक्ता के इस कृत्य से न्यायालय का अनादर हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का दिया हवाला-
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी को दोहराते हुए कहा, दुर्भावनापूर्ण तरीके से किसी जज या जजों पर किया गया हमला, जो अपमानजनक,धमकाने वाला हो तो ऐसे कृत्यों का कानून के सशक्त हाथों से सामना किया जाना चाहिए। विधि के शासन की सर्वोच्चता, उसके स्रोत को दूषित करके चुनौती देने वाले व्यक्ति पर कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए।
अवमाननाकर्ता ने कोर्ट का आश्वस्त किया था कि वह मामले की सुनवाई में उपस्थित होगा, हालांकि वह ऐसा करने में विफल रहा।कोर्ट ने कहा, अवमाननाकर्ता की प्रवृत्ति किसी भी कार्यवाही में, चाहे वह इस हाई कोर्ट में हो या किसी अन्य मंच पर, किसी विशेष म न्यायाधीश या न्यायिक अधिकारी के विरुद्ध अपमानजनक आरोप लगाने की है। पीठासीन न्यायाधीशों को धमकाने का यह तरीका उसने लगभग हर उस अदालत में अपनाया है जहां उसने मामले दायर किया है।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि अवमाननाकर्ता ने 2010 में हाई कोर्ट के एक पूर्व जज को 21 दिनों के भीतर जवाब देने के लिए एक नोटिस भेजा था, "ऐसा न करने पर कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की चेतावनी भी दी थी। वकील ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के एक पूर्व पीठासीन अधिकारी को नोटिस भेजा था, और गुजरात हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार और निचली अदालतों के न्यायिक अधिकारियों को भी नोटिस भेजा था। कोर्ट ने कहा, रिकॉर्ड में मौजूद दस्तावेज़ और अवमाननाकर्ता के विरुद्ध पारित आदेश बताते हैं कि उसने न केवल उद्दंड व्यवहार किया है, बल्कि न्यायाधीशों, इस न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध निंदनीय और अपमानजनक आरोप लगाकर इस न्यायालय की गरिमा को कम करने के लिए एक दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया है।
मामले की सुनवाई के बाद अवमाननाकर्ता अधिवक्ता को दीवानी और आपराधिक अवमानना का दोषी पाते हुए डिवीजन बेंच ने अधिवक्ता को तीन महीने के साधारण कारावास की सजा के साथ ही एक लाख रुपये जुर्माना लगाया है।