नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी ने बदल दी बनचरौदा की महिलाओं की दुनिया…..कभी दहलीज तक नहीं लांघा था….आज पूरे प्रदेश में बज रहा है डंका…. घर संभालने के साथ-साथ खुद को समृद्ध भी बना रही…150 महिलाओं की हर दिन की कमाई 200-300 रुपये

Update: 2020-03-14 13:52 GMT

रायपुर 14 मार्च 2020 । राजधानी रायपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर आरंग के पास है, बनचरौदा। जहां जिंदगी हर कदम पर मुस्कुरा उठी है। कहीं दीये से जिंदगी रोशन हो रहे हैं, तो कहीं गोबर के कंडे किस्मत की नई कहानी लिख रहे हैं। कहीं खेतों की मिट्टी माथे की तकदीर तय कर रहे हैं, तो कहीं दोने-पत्तल किस्मत पलट रहे हैं। इस गांव के साथ बाहर से आने वाले लोगों को भी यकीन नहीं होता कि ये सारा कुछ गांव के वही लोग कर रहे हैं, जो पहले कभी किसी दूसरे के घर, खेतों में मजदूरी करते थे… या फिर शहर जाकर रोजी-रोटी कमाते थे। सबसे खास बात ये है कि गांव के साथ अपनी तकदीर संवारने वाली ये सारी महिलाएं हैं। विकास की नई बयार में नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी के चारों चिन्हारी को अपने में समेटे ये गांव छत्तीसगढ़ के गांव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में समग्र विकास की एक नई इबारत लिख रहा है।

जिन महिलाओं ने कभी घर की चौखट नहीं लांघी थी, वो आज हर दिन कामयाबी के शिखर चढ़ रही है। घर संभालने के साथ-साथ ये खुद की किस्मत और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सपनों को साकार कर रही है। बनचरौदा में कदम रखते ही, हर कदम पर आपका वास्ता महिला स्वाबलंबन और गांव की समृद्धता से पढ़ता है। कहीं लहलहाती बाड़ियां, तो कहीं चकमक करते गोठान….कहीं आकार लेते दीये और सजावटी समान तो कही फावड़े बरसाते हाथ। पूरा गांव मानों संपन्नता की कहानी कह रहा है और ये सब सच हुआ गांव की मेहनतकश महिलाओं के बूते।

बनचरौदा में 13 महिला समूह हैं, जिनकी 150 महिलाओं ने अपनी मेहनत के बूते परिवार को मुफलिसी से संपन्नता की सेज तक पहुंचा दिया है। गांव का गौठान दो हिस्से में बंटा हैं, जिनके 3.5 एकड़ में 600 मवेशियों के लिए डे केयर सेंटर है।जहां मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था के साथ ही शुद्ध पेयजल हेतु सोलर पंप लगाया गया है। बारिश व धूप से इन मूक पशुओं को बचाने शेड की व्यवस्था के साथ ही इनके उपचार की समुचित व्यवस्था भी इस गौठान में है।

गौठान के दूसरे भाग में दो महिला समूह काम करती है, इनमें एक समूह वर्मी खाद, कंपोस्ट खाद तैयार करने के साथ 470 मीटर क्षेत्र में हल्दी, बेलदार सब्जियों व फूलों की खेती में जुटी हुई है। यह समूह मवेशियों को चारा पानी देने, गोबर उठाने के साथ गौठान की पूरी देखरेख करती है। ये मुख्यमंत्री का वो सपना है, जिसके जरिये उन्होंने गांव की संपन्नता को निखरते देखना चाहते हैं।

वहीं दूसरा समूह मुर्गी पालन, पेन एवं वेलवेट, पेंसिल कोटिंग जैसे कार्य कर अपनी आजीविका के पुराने संसाधनों को नया कलेवर देकर इसे अब नई रफ्तार दे रही है।

समूह में शामिल टुकेश्वरी बताती है कि ….

“नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी से हमारी दुनिया बदल गयी है, हम तो कभी घर से बाहर भी नहीं निकले थे, लेकिन आज हमारी चर्चा पूरे प्रदेश में है, टीवी में हमारी कहानी आती है, हमलोगों को पंचायत की तरफ से ढ़ाई एकड़ जमीन मिली है, जिसमें हमने सब्जी लगायी है, हर दूसरे दिन हम सब्जी बेचते हैं और उससे 5000 से 8000 रुपये तक की कमाई होती है, ये पैसे हमारी ग्रुप की 13 महिलाओं में बंटता है, मैं बहुत खुश हूं, मेरे परिवार भी इससे बहुत खुश है”

गौठान क्षेत्र से लगे 1 एकड़ हिस्से में मनरेगा योजना से 3 वर्किंग शेड बनाया गया है। पहले शेड में 2 महिला समूहों की तरफ से गाय के गोबर से दीया, गमला, साबुन, अगरबत्ती, गोबर प्लेट्स का निर्माण किया जाता है।वहीं दूसरे शेड में दोना पत्तल व प्लेट्स का निर्माण महिलाएं करती हैं। जबकि तीसरे शेड में 2 महिला समूह बांस उत्पादों से अपनी जिंदगी संवार रही है।

राज्य शासन के सहयोग से इन महिलाओं को नेशनल बम्बू योजना के तहत मशीने भी प्रदान की गई हैं। ताकि इनके कामों में और निखार आ सके और राष्ट्रीय स्तर पर भी इन उत्पादों को बाजार मिल सके। जिला प्रशासन की तरफ से महिलाओं को हरसंभव सुविधा मुहैय्या करायी जा रही है, फिर चाहे वो संसाधन की बात हो या फिर सुविधा और बाजार की। जिला पंचायत सीईओ गौरव सिंह बताते हैं…

“बनचरौदा को एक आदर्श गोठा के रूप में हम देख सकते हैं, यहां गोठान को हमने मल्टीपरपस सिस्टम के रूप में डेवलप किया है। गोठान के अलावे बाड़ी और मनिफेक्चरिंग सहित अलग-अलग सेक्टर तैयार किये गये हैं, जहां महिलाएं काम करती है। गोठान में दो समूह काम करती है, जिनके गोबर से अलग-अलग काम किये जाते हैं, फिर चाहे कंपोस्ट हो, गोबर गैस हो, वर्मी कंपोस्ट हो उससे उन्हें सम्मानजनक आय होती ।….वहीं बाड़ी में महिलाएं काम करती है, वहां जैविक खेती की जा रही है, गोबर से दीये और अन्य आकृतियां तैयार की जा रही है, पत्तल दोने तैयार हो रहे हैं। कुल मिलाकर ये महिला स्वाबलंबन का सबसे बेहतरीन उदाहरण है। इस गांव की जो महिलाएं कभी घरों से बाहर नहीं निकली थी, वो आज अपने पैरों पर खड़ी है और घर के साथ अपने काम को भी बहुत अच्छे संभाल रही है”

 

गौठान से सटे 2 एकड़ हिस्से में 2 महिला समूह फूलों की खेती में जुटी है, तो एक समूह कैंटीन का संचालन करती है। इस कैंटीन के चबूतरों का निर्माण मनरेगा योजना के अंतर्गत किया गया है। वहीं फूलों की खेती में छत्तीसगढ़ शासन का उद्यानिकी विभाग इन महिलाओं को हरसंभव मदद दे रहा है।

गौठान के दूसरे हिस्से में 7 एकड़ पर चारागाह विकसित किया गया है, जिसका संचालन करने के साथ ही महिला समूह आधे एकड़ के डबरी में मछली पालन भी कर रही है। यहीं 5 एकड़ पर दो महिला समूह जैविक सब्जी का उत्पादन कर राजधानी के मार्केट पर अपनी पहचान बना रही है। इनके इन प्रयासों से अब पंचायते भी समृद्ध होगी और ये अपने लाभांश का 10 फीसदी या 3000 रू. प्रति समूह देकर अपने गांव को मजबूती देगी ।

अपने हुनर व परिश्रम से जिंदगी की नई कहानी गढ़ती इन महिलाओं ने गोबर के कलात्मक उपयोगिता के द्वार पर भी नई दस्तक दी है। बन चरौदा की स्व-सहायता समूह की मेहनतकश महिलाओं ने गोबर से कलाकृति को जीवंत रूप सराहा जा रहा है। लाल, पीले, हरे व सुनहरे रंगों से सजे दीये, पूजा सामग्री के रूप में ओम, स्वास्तिक की आकर्षक आकृतियां, छोटी मूर्तियां, हवन-कुंड, अगरबत्ती स्टैंड , मोबाइल स्टैंड, चाबी के छल्ले जैसे उत्पाद सभी को आकर्षित कर रहे हैं ।

बनचरौदा गांव के सरपंच कृष्ण कुमार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। कृष्ण कुमार बताते हैं …

“आज गांव की करीब 150 महिलाएं इस काम को कर रही है, कुछ महिलाएं गोठान और कुछ बाड़ी में काम करती है, ये सभी मिलकर करीब 3000 रुपये तक का काम कर लेती है और हर किसी को हर दिन के लिहाज से 200 रुपये के आसपास मिल जाता है। सबसे अच्छी बात है कि महिलाओं को काम करने बाहर नहीं जाना होता है, वो सुबह घर का काम निपटाकर जाती है और फिर दिन में काम कर शाम को घर लौट जाती है। हमारी कोशिश महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की है, यहां वो काम करती भी है और काम सीख भी रही है, अगर वो कभी अपना काम भी करना चाहे तो उन्हें ये अनुभव काफी काम आयेगा। महिलाएं यहां बागवानी करती है, गोबर के दीये बनाती है, इस साल प्रकृति ने हमलोगों को खूब परेशान किया है, बावजूद इनका काम अच्छा चल रहा है, महिलाएं काफी खुश हैं, उनका परिवार भी अच्छा चल रहा है और गांव में तरक्की भी आ रही है”

छत्तीसगढ़ सरकार की सोच व संकल्प के जरिए स्वावलंबन की नई राह पकड़ रही इन महिलाओं के हाथों से रूपाकार ले चुके इन सामानों को राजधानी दिल्ली सहित देश के अलग-अलग राज्यों में खूब प्रशंसा मिल रही है। खासकर दीवाली पर पहली जिन हाथों में गोबर के दीये पहुंचे, वो तो इन दीओं की खुबसूतरी और खासियत का कायल हो गया।

बन चरौदा की पगडंडियों से गुजरते हुए आज छत्तीसगढ़ के माटी की सोंधी महक पूरे देश तक पहुंच रही है। बन चरौदा गांव व उसके गौठान से जिंदगी को नई ऊंचाई देती 13 महिला समूहों की 133 महिलाएं विपन्नता के अंधियारे से बाहर निकल आज अपने गावं के संसाधनों के बीच स्वयं को आर्थिक मजबूती प्रदान कर अपने परिवार का स्वाभिमान व सम्मान बनी हैं।

 

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