Cases of Mumps : देश के साथ प्रदेश में भी दिख रहे गलुआ माता या मम्प्स के मामले , खांसने या छींकने के दौरान फैलता है, रहे संभलकर

मम्प्स को गलुआ माता, गलगंड, गलसुआ, या कंठमाला के नाम से भी जाना जाता है। खासतौर पर यह बच्चों को अपना शिकार बनाता है।

Update: 2024-05-07 17:38 GMT

देश में मम्प्स गलुआ माता या गलसुवा के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। तमिलनाडु-केरल और राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर  के बाद अब छत्तीसगढ में भी इसका प्रकोप देखने को मिला है। यह वायरस चेहरे के दोनों तरफ स्थित लार बनाने वाली पैरोटिड ग्रंथियों को निशाना बनाता है, जिससे चेहरे पर सूजन आ जाती है।

मम्प्स अति संक्रामक वायरल संक्रमण है ऐसे में इसके प्रसार का खतरा काफी अधिक होता है। यह खांसने या छींकने के दौरान निकलने वाले पदार्थ के जरिए फैलता है। खासतौर पर यह बच्चों को अपना शिकार बनाता है। मम्प्स को गलगंड, गलसुआ, या कंठमाला के नाम से भी जाना जाता है।

ये एक संक्रामक रोग है जो ज्यादातर गाल के नीचे जबड़ों के पास स्थित पेरोटिड ग्रंथियों में संक्रमण के फैलने से होता है। ये ग्रंथियां लार बनाती हैं। संक्रमण के कारण इस रोग में गालों में सूजन आ जाती है। इस रोग के लक्षण बहुत बाद में दिखते हैं।

आमतौर पर बचपन से युवावस्था में प्रवेश होने तक इस बीमारी की संभावना रहती है मगर आजकल ये किसी भी उम्र में देखा जा सकता है। ये कोई गंभीर रोग नहीं है लेकिन इसकी वजह से चेहरा भद्दा दिखने लगता है और गालों और गर्दन में दर्द भी होता रहता है।


गलसुआ के लक्षण



गलसुआ के लक्षण शुरूआत में नजर नहीं आते हैं। वायरस के संपर्क में आने के लगभग 15 से 20 दिन बाद इसके लक्षण दिखना शुरू होते हैं। गलसुआ के ज्यादातर लक्षण टॉन्सिल से मिलते हैं इसलिए बहुत से लोग टॉन्सिल और गलसुआ में अंतर नहीं कर पाते हैं। बुखार, सिरदर्द, भूख न लगना, कमज़ोरी, चबाने और निगलने में दर्द होना और गालों में सूजन आदि लक्षण गलसुआ के भी हैं और टॉन्सिल के भी हैं। कई बार सिर्फ एक तरह की ही ग्रंथि में सूजन आती है। इसके रोगियों को पेट में तेज दर्द और उल्टी की समस्या हो जाती है। गलसुआ के कारण पुरूषों के अंडकोष में दर्द व प्रजनन क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी स्तन में सूजन, दिमाग की झिल्ली व दिमाग में सूजन आदि भी देखने को मिलती है। हांलाकि इसकी संभावना काफी कम होती है। इसके 10 में से एक मरीज को मेंनिंजाइटिस या एन्सिफलाइटिस के लक्षण भी उभर सकते है और अस्थाई रूप से बहरेपन की समस्या भी हो सकती है।


गलसुआ का वायरस

गलसुआ चूंकि एक संक्रामक रोग है इसलिए ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैलता है। गलसुआ के वायरस से प्रभावित रोगी, पेरोटिड ग्रंथि में सूजन शुरू होने के 7 दिन पहले और 7 दिन बाद तक संक्रमण फैला सकता है। यह संक्रमण संक्रमित लार, छींकने या खांसने तथा संक्रमित व्यक्ति के साथ बर्तन साझा करने के माध्यम से फैलता है। इस रोग में कानों के एकदम सामने जबड़े में सूजन दिखाई देती है। कई बार चिकित्सक भी गलसुआ और टॉन्सिल के लक्षणों में कन्फ्यूज रहते हैं तो इसके लिए ब्लड की जांच की जाती है। ब्लड में एंटीबॉडी की उपस्थिति आसानी से वायरल संक्रमण की पुष्टि कर देता है।


गलसुआ का उपचार

आमतौर पर किसी भी रोग के होने पर हमें एंटीबायोटिक दवाएं जरूर दी जाती हैं। गलसुआ एक तरह का वायरल संक्रमण होता है इसलिए गलसुआ होने पर एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन नहीं किया जाता है। मांसपेशियों का दर्द और पेरोटिड ग्रंथि में सूजन की वजह से मरीज़ को बहुत दर्द होता है जिसे कम करने के लिए दर्द निवारक दवाएं ली जा सकती हैं। गलसुआ आमतौर पर 10-12 दिनों में ठीक हो जाते हैं। प्रत्येक पैरोटिड ग्रंथि की सूजन उतरने में एक सप्ताह लगता है, लेकिन दोनों ग्रंथियों में एक समान समय पर सूजन नहीं होती।


इन बातों का रखें ध्यान



 गलसुआ होने पर गालों की बर्फ से सिंकाई की जाती है। इसके अलावा गलसुआ चूंकि शरीर में वायरस के प्रवेश से होता है इसलिए इस रोग में खूब पानी पीने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा गलसुआ होने पर गर्म पानी का गरारा करने से भी दर्द में आराम मिलता है। इसमें रोगी को अम्लीय पदार्थों व फलो के रस का सेवन करने से बचना चाहिए।



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