Vat Savitri fast and Shani Jayanti : वट सावित्री व्रत और शनि जयंती 6 को, अत्यंत शुभ योग...पति का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो प्रात:काल करें ये उपाय

यदि पति का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो प्रात:काल शिव जी के मंदिर में कपूर वाला जल चढ़ाएं| वट सावित्री पूजन करें और सायंकाल शनिदेव के मंदिर में तिल का तेल और काली उड़द चढ़ा दें|

Update: 2024-06-03 07:24 GMT

समस्त सुहागिनों के लिए अखंड सौभाग्य का व्रत वट सावित्री व्रत, जिसे सावित्री अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है गुरुवार 6 तारीख को मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। इस त्योहार को लेकर ये मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पूरे परिवार को सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है।

ज्योतिषाचार्य डॉ दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार यह भी मान्यता है कि व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है। इस दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संतापों का नाश करने वाली मानी जाती है।

यदि पति का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो प्रात:काल शिव जी के मंदिर में कपूर वाला जल चढ़ाएं| वट सावित्री पूजन करें और सायंकाल शनिदेव के मंदिर में तिल का तेल और काली उड़द चढ़ा दें|


विशेष योग

गुरुवार को चन्द्र प्रधान रोहिणी नक्षत्र है| चन्द्र का उच्च का होना अत्यंत शुभ है क्यों की चन्द्र को पति पत्नी के संबंधों का सेतु माना गया है| इस दिन सुकरा और सिद्धि योग भी है जो अत्यंत शुभ है|



वट सावित्री व्रत पूजा मुहूर्त

पूजा के लिए शुभ मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर होगा।

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

१- इस दिन महिलाएं प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।

२- सभी पूजन सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर लें और थाली सजा लें।

३- किसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करें। यदि प्रतिमा नहीं हो तो एक पूजा सुपारी पर मौली धागा लपेटकर उसे ही सत्यवान मान लें|

४- फिर बरगद के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं।

५- वट के वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम करके परिक्रमा पूर्ण करें।

६- अब हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या सुनें। इसके बाद पूजा संपन्न होने पर ब्राह्मणों या सुगिन स्त्रियों को वस्त्र और फल भेट करें|


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