वैश्विक कटुता अधूरे धर्मग्रंथों के अनुसरण का परिणाम, लोभ ऐसा कि लोग अपनो को भी नहीं छोड़ रहे: बाबा संभव राम

Update: 2022-12-01 13:26 GMT

वाराणसी। पड़ाव स्थित अघोरेश्वर महाविभूति स्थल के प्रांगण में परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी का 31वाँ महानिर्वाण दिवस बाबा भगवान राम ट्रस्ट, श्री सर्वेश्वरी समूह एवं अघोर परिषद ट्रस्ट के अध्यक्ष तथा अघोरेश्वर महाप्रभु के उत्तराधिकारी पूज्यपाद औघड़ बाबा गुरुपद संभव राम जी के सान्निध्य में श्रद्धा एवं भक्तिमय वातावरण में मनाया गया। इस अवसर पर प्रात:कालीन सफाई श्रमदान के पश्चात लगभग 8:30 बजे पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी ने अघोरेश्वर महाप्रभु की भव्य समाधि में अघोरेश्वर महाप्रभु की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि, माल्यार्पण, पूजन एवं आरती किया। श्री पृथ्वीपाल ने सफलयोनि का पाठ किया। तत्पश्चात पूज्य बाबा ने हवन का कार्यक्रम संपन्न किया। विचार-गोष्ठी पूज्यपाद बाबा गुरुपद संभव राम जी के सान्निध्य में आयोजित की गयी। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए पूज्य बाबा ने अपने आशीर्वचन में कहा-

आज की वैश्विक कटुता अधूरे धर्मग्रंथों के अनुसरण का ही परिणाम है

- औघड़ गुरुपद संभव राम

दूर-दूर से यहाँ आकर हमलोग इकट्टा होते हैं, फिर भी हमारा अभीष्ट सिद्ध नहीं हो पाता, हमलोग वंचित रह जाते हैं। उसके कारणों पर हमारी अघोर ग्रंथावली में परमपूज्य अघोरेश्वर ने प्रकाश डाला है। हमलोग देख भी रहे हैं कि समाज में निरंतर गिरावट आती जा रही है। इतने धर्मग्रन्थ होते हुए भी सामाजिक बुराईयाँ कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं। लूट-पाट, मार-काट, झूठ-फरेब, हत्या-बलात्कार और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति व्याप्त हो रही है। आजकल तो हमारे अपने लोग ही हमारे साथ यह सब करने से नहीं हिचकते। यह सब धर्म-मजहब के नाम पर हो रहा है। धर्म के नाम पर जितना खून बहाया जा रहा है उतना शायद ही किसी और नाम पर बहाया गया हो। आज हम यह सोचने को मजबूर हैं कि या तो ये धर्मग्रन्थ अपूर्ण हैं या इतने सारे हो गए हैं कि हम भ्रमित हो गए हैं कि हम किसका अनुसरण करें। इसी के समाधान के निमित्त परमपूज्य अघोरेश्वर महाप्रभु ने एक रास्ता हमलोगों को दिया है। जो लोग भी महाप्रभु की वाणियों का अध्ययन करके उसका अनुसरण करते हैं वह बहुत ही शांत रहते हैं और इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि विपरीत-से-विपरीत परिस्थितियों से अपने व अपने परिवार को निकालने में सक्षम दिखाई देते हैं। अधूरे धर्मग्रंथों चाहे वह कुरान हो, बाइबिल हो, चाहे वह गीता ही हो उनका अनुसरण करेंगे तो भ्रमित रहेंगे ही। गीता का उपदेश युद्ध के मध्य में दिया गया था, उस समय लोग युद्ध से पीछे हट रहे थे क्योंकि वह किसी दुश्मन राष्ट्र से तो युद्ध नहीं कर रहे थे बल्कि वह अपने ही भाई-बन्धु, चाचा-दादा, रिश्तेदार से लड़ रहे थे। इस युद्ध के चलते हमारे अपने ही परिवार के बच्चे अनाथ और महिलाएं विधवा हो सकती हैं। लेकिन उस गीता के उपदेश के बाद ही महा भयंकर युद्ध हुआ जिसमे अनेकों नारियां विधवा हो गयीं, अनेकों भाई-बन्धु एक-दूसरे को काटने पर मजबूर हुए और काटे भी, न जाने कितने बालक-बालिकाएं अनाथ हो गए। अपने ही परिजनों को मारने, लूटने, और काटने का यह क्रम ऐसे ही अधूरे धर्मग्रंथों से मिली प्रेरणा का परिणाम है, और यह सारे विश्व में हो रहा है। आज ईसाई हों या मुस्लिम हों सब लगे हुए हैं धर्म-परिवर्तन करवाने में। सबको अपना-अपना करने दीजिये, क्या जरुरत है यह सब करने की? हमलोग तो कभी नहीं कहे कि भाई आप अपना धर्म बदल कर इसमें आ जाईये। लेकिन वह लोग लगे हुए हैं। यह भी आपसी वैमनस्यता का, लड़ाई-झगडे का एक कारण बना हुआ है। जिनका धर्म परिवर्तन हो गया वह और अधिक कट्टर हो गए और अपने ही देशवासियों, भाई-बंधुओं को मारने-काटने, लड़ने, उनसे ईर्ष्या, घृणा, द्वेष करने में लगे हुए हैं। एक और बड़ा कारण जो समझ में आता है कि जितने भी धर्म हैं, पंथ हैं, पथ हैं उनमें राजनिति का पुट आ गया है और उसके चलते ही जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब के नाम पर बिखराव और कटुता समाज में बढ़ रही है। यह सब देखते हुए भी हम मूक बने हुए हैं, हमारे आँखों पर पट्टी बाँध दी गयी है, कान में तेल डाल दिया गया है, मुह को सिल दिया गया है। हमको ईश्वर ने विवेक-बद्धि सबकुछ दिया है लेकिन किसी बात को बार-बार प्रचारित करके गलत को भी सही ठहरा दिया जाता है। ऐसे लोगों को देखते रहेंगे, उनका अनुसरण करेंगे तो वही होगा जो आज हो रहा है। एक कहावत है कि "कौड़ी लागी मोहवश करे निज कुल, गुरु घात" । तो उस लोभ के चलते ही हमलोग किसी को भी नहीं छोड़ रहे हैं। सबसे प्रथम तो हम अपने को ही नहीं छोड़ रहे हैं। जबकि हम सभी जानते हैं कि "आज का कर्म कल का भविष्य" । तत्काल देखने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन कल का हमारा भविष्य आज के कर्मो के आधार पर ही निर्धारित होगा। हमारे महापुरुषों ने कहा भी है कि हमारा यह शरीर ही मरता है हमारी आत्मा का विनाश नहीं होता। लोभ और मोह के वशीभूत होकर हम कोई कृत्य करेंगे तो कोई भी सुखी नहीं रह सकता। यही नियति रहेगी, तो संपन्न होते हुए भी वह दुखी रहेगा। भरा-पूरा परिवार भी आपस में लड़ते-झगड़ते, झंझट करते नजर आएंगे। सीता जी के कहने पर कंचन मृग के पीछे जिस तरह रामचन्द्र जी गए थे, जबकि वह भी जानते थे कि सोने का मृग होता नहीं है, लेकिन फिर भी वह उनके जिद के चलते गए और सारी समस्याएँ उसके बाद ही शुरू हुयीं। तो बंधुओं! हमलोग भी कहीं-न-कहीं उस कंचन-मृग के पीछे अपने, अपने परिवार को, अपने समाज को, अपने राष्ट्र को उसी में झोंक दे रहे हैं। यह भी एक प्रकार का देशद्रोह है। लोग इसको देशद्रोह इसलिए नहीं कहते कि इस पर जबरदस्ती जनस्वीकृति की मुहर लगवा दी गयी है कि हाँ यह सब किया जा सकता है, यह तो सिस्टम है। यहाँ इतने सालों से हमारा आना-जाना कहीं व्यर्थ न हो जाय, इसीलिए मैं यह सब आपलोगों से कह रहा हूँ। यह शरीर ही जाएगी, वह आत्मा अजर-अमर है, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इतनी सी बात यदि हमें समझ में आ जाएगी तो हो सकता है कि हम अपने भविष्य को उज्जवल बना सकें। और संत-महात्माओं की बात है तो उनका भी शरीर नहीं रहा इस पृथ्वी पर, लेकिन वह कहते हैं कि जिस तरह हमलोग कपड़ा बदलते हैं वैसे ही वह अपनी शरीर को बदल देते हैं। शरीर त्याग होने पर वह सर्वत्र विद्यमान रहते हैं। शरीर छूटने के बाद वह सबके और भी करीब हो जाते हैं। इतने करीब हो जाते हैं कि हमारे चक्षु उनको देख नहीं पाते, और हमारी बुद्धि भी उसको नहीं समझ पाती। हालाँकि यह विषय मन, बुद्धि, वाणी के परे है। उसमें कुछ होता नहीं, जैसे अघोर के बारे कह रहे थे कि उसमें कोई फुरना नहीं होती, उसमें कुछ नहीं होता। बस हमलोग कहते हैं कि उस परा-प्रकृति की प्रकृति में अपनी प्रकृति को देखने का प्रयत्न करें। लेकिन यही नहीं हो पाता। यह बहुत ही सहज लगता है लेकिन वह उतना ही कठिन है। जो जितना ही आसान है वह बरतने में, करने में, समझने में उतना ही कठिन लगता है। जीवात्मा और परमात्मा के बीच की उस माया में हमलोग भरम रहे हैं। हम ये नहीं कह रहे हैं की आप सब कुछ छोड़ के जंगल में चले जाईये। आपलोग आगे बढ़िए, सबकुछ करिए, लेकिन वह ईश्वरनिहित ऐश्वर्य को अपने खयाल में रखकर वह सब करिए। क्योंकि बहुत से गृहस्थ भी संत-महापुरुष हुए हैं जिन्होंने उस माया में रहते हुए, सब कुछ करते हुए उस पद को प्राप्त किया है। तो हम क्यों वंचित रहें उससे। इतना दूर से आते हैं, अपना श्रम-शक्ति सबकुछ लगाते हैं, यहाँ पर जो कुछ है वह आपलोगों के श्रम से ही उपस्थित है। सामूहिक शक्ति के साथ जो प्रार्थना होती है वह सुनी जाती है और उससे सरकारें भी भय खाती हैं। मुस्लिम समाज को आपलोग देखते होंगे कि वह एकत्रित रहते हैं तो सरकार भी डरती है उनसे। और हमलोग सब तितर-बितर रहते हैं। तो यह धर्मग्रंथ अधूरे हैं या हमें समझना होगा, सोचना होगा और यह हमारी ग्रंथावली भी कहती है। वह पूर्ण तभी होगा जब हम अपने विवेक का इस्तेमाल करेंगे। जैसे कई लोग भूत की भावना करते हैं तो उनको वह भूत भी दिखाई देने लगता है, कई लोग माँ भगवती की ईश्वर की, शिव की भावना करते हैं तो उनको वह ईश्वर भी दिखाई देने लगते हैं। आपका बट-विश्वास, समर्पण और श्रद्धा से उन महापुरुष का भी दर्शन हो जाता है जो अपनी शरीर छोड़कर चले गए हैं। हमने अपनी इन आँखों से उन सदाशिव को देखा है इसीलिए हम अपनी इस शरीर के प्रति थोड़ा मोह रखते हैं। ताकि हमारा शरीर छूटने पर हम भी तद्रूप हो जायँ। जैसे वह भृंगी होती है एक रेंगने वाले कीड़े को ले जाकर मिट्टी का घर बना के उसमे बंद कर देती है और भ्रीं-भ्रीं की आवाज करती है। वह कीड़ा सिर्फ उसी की आवाज को सुनता है और वह उसको डंक मार के, डरा के रखती है, जिसके चलते कुछ दिनों के बाद वह उसी के तद्रूप होकर बाहर निकलता है। फिर वह भी यही कार्य करता है। तो हमारे उस अज्ञात गुरु की दया-करुणा ही हमें इस भवसागर से पार ले जा सकती है। हम मंत्र्रत रहें, क्रियारत रहें, अपने पर दया करना सीखें, नहीं तो बहुत लोग आये और गए, हमलोग भी एक दिन चले जायेंगे। हमारे नवयुवकों को भरमाकर उनको नशे का आदि बना दिया जा रहा है। आपलोग जागरूक हों और समाज में जागरूकता को बढ़ाएं। आप ऐसे स्कूल-कालेजों में अपने बच्चों का दाखिला न दिलायें या फिर आप अपने को इतना मजबूत बना लें कि कीचड़ में कमल की भांति खिले रहें। हम चाहेंगे कि आप उस महापुरुष की वाणियों का अवलंबन लेकर समाज की ऐसी विपरीत परिस्थितियों में कीचड़ में कमल के सदृश हों। तो समाज के तथाकथित अगुवा, नेता लोगों के बरगलाने में आप न आवें। साधुताई में कोई जाति-भेद, ऊँच-नीच नहीं होता है। आप अपने विवेक बुद्धि का उपयोग करें। आपका स्वानुशासन में रहना. शील ,शालीनता का पालन करना सबको अच्छा लगता है। लेकिन आगंतुक विचारों के प्रभाव में कुछ-न-कुछ उपद्रवी दिमाग के हो ही जाते हैं। अंत में पूज्य बाबा ने कहा कि हमारी बातें आपको अच्छी लगे तो अवश्य उन पर चलें, नहीं अच्छा लगे तो छोड़ भी सकते हैं।

इस गोष्ठी की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य सेवाओं के अवकाशप्राप्त अपर निदेशक डॉ० वी०पी० सिंह ने की। वक्ताओं में भोपाल यूनिवर्सिटी के अवकाशप्राप्त वाईस चांसलर डॉ० एस०एस० सिंह, जौनपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता के०डी० सिंह, अवकाशप्राप्त कर्नल लोकेन्द्र सिंह विष्ट, भोलानाथ त्रिपाठी एवं श्रीमती अनूप सिन्हा थीं। यशवंत नाथ शाहदेव ने मंगलाचरण किया और डॉ० बामदेव पाण्डेय ने गोष्ठी का संचालन किया। श्री सर्वेश्वरी समूह प्रधान कार्यालय के व्यवस्थापक हरिहर यादव ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

गोष्ठी के उपरांत दोपहर 1:30 बजे से पूज्यपाद औघड़ बाबा गुरुपद संभव राम जी ने परमपूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी की समाधि की पांच परिक्रमा करते हुए "अघोरान्ना परो मन्त्रः नास्ति तत्त्वं गुरोः परम्" का चौबीस (24) घंटे के अखंड संकीर्तन का शुभारम्भ किया।

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