Ram Lala Live Today : प्रभु श्री रामलला की दिव्य जागृति आरती और बालक राम का मनमोहक श्रृंगार दर्शन, देखें प्रभु का सुंदर स्वरूप
Ram Lala Live Today : अयोध्या के पावन क्षितिज पर आज सुबह एक अलौकिक दृश्य तब देखने को मिला, जब ब्रह्म मुहूर्त में नव्य-भव्य मंदिर के कपाट खुलते ही पूरी नगरी जय श्री राम के जयकारों से गूँज उठी।
Ram Lala Live Today : प्रभु श्री रामलला की दिव्य जागृति आरती और बालक राम का मनमोहक श्रृंगार दर्शन, देखें प्रभु का सुंदर स्वरूप
Ayodhya Ram Mandir Live : अयोध्या : 26 दिसंबर 2025 अयोध्या के पावन क्षितिज पर आज सुबह एक अलौकिक दृश्य तब देखने को मिला, जब ब्रह्म मुहूर्त में नव्य-भव्य मंदिर के कपाट खुलते ही पूरी नगरी जय श्री राम के जयकारों से गूँज उठी। शीतल मंद बयार और मंत्रोच्चार के बीच पुजारी जी ने बड़े ही प्रेम और वात्सल्य भाव से बालक राम को निद्रा से जगाकर जागृति आरती की रस्म को आरंभ किया। कड़ाके की ठंड के बावजूद भक्तों का उत्साह चरम पर था और जैसे ही शंखों की मधुर ध्वनि के साथ आरती की लौ प्रज्वलित हुई, रामलला का मासूम चेहरा दिव्य आभा से चमक उठा। आज सुबह प्रभु का जल और सुगंधित द्रव्यों से अभिषेक करने के पश्चात उन्हें विशेष राजसी वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित किया गया, जो उनके बाल-स्वरूप की कोमलता को और भी बढ़ा रहे थे।
Ayodhya Ram Mandir Live : आरती की पवित्र ज्योति जब विग्रह के चरणों से होते हुए प्रभु के मनमोहक मुखारविंद पर पहुँची, तो ऐसा आभास हो रहा था मानो साक्षात श्री हरि विष्णु अयोध्या की गोद में बालक रूप में भक्तों को दर्शन दे रहे हों। मंदिर प्रांगण में मौजूद हर श्रद्धालु की आँखें भक्ति के आंसुओं से नम थीं और हृदय में एक असीम शांति का संचार हो रहा था। आज की इस मंगलमय सुबह में हुई जागृति आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि करोड़ों सनातनियों की आस्था का जीवंत प्रमाण बनी। शंख, डमरू और घंटियों की गूँज ने सुबह की उस बेला को इतना ऊर्जावान बना दिया कि पूरी अयोध्या नगरी भक्ति के रस में सराबोर नजर आई।
Ayodhya Ram Mandir Live : रामलला की दिनभर की आरतियों का क्रम
रामलला की सेवा में दिनभर में पाँच प्रमुख आरतियां की जाती हैं, जो शास्त्रोक्त विधि से संपन्न होती हैं। सबसे पहले 'जागृति आरती' होती है, जिसके बाद सुबह प्रभु को भोग लगाकर 'श्रृंगार आरती' की जाती है। दोपहर के समय जब सूर्य अपने शिखर पर होते हैं, तब प्रभु को राजभोग अर्पित कर 'मध्याह्न आरती' संपन्न होती है। संध्याकाल में जब दिन और रात का मिलन होता है, तब 'संध्या आरती' का आयोजन किया जाता है, जिसकी भव्यता देखने लायक होती है। अंत में, रात्रि के समय प्रभु को विश्राम देने के लिए 'शयन आरती' की जाती है। इन सभी आरतियों के माध्यम से भक्त प्रभु के बाल स्वरूप की सेवा और उनके विभिन्न रूपों का दर्शन कर अपनी आत्मा को धन्य करते हैं।
प्रभु श्री राम की अनंत महिमा
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की महिमा शब्दों की सीमा से परे है। वे केवल एक राजा नहीं, बल्कि आदर्श पुत्र, आदर्श भाई और एक आदर्श शासक के जीवंत प्रतीक हैं। राम का नाम ही अपने आप में एक महामंत्र है, जो मनुष्य को भवसागर से पार लगाने की शक्ति रखता है। उनकी महिमा उनके धैर्य और न्यायप्रियता में छिपी है, जिन्होंने धर्म की स्थापना के लिए राजपाट का त्याग कर वनवास स्वीकार किया। राम जी का चरित्र हमें सिखाता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपनी मर्यादा और सत्य का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए। वे शबरी के जूठे बेर खाकर प्रेम का संदेश देते हैं और केवट को गले लगाकर सामाजिक समरसता की मिसाल पेश करते हैं।
प्रभु राम की कृपा जिस पर हो जाए, उसके जीवन के सभी संकट और अंधकार स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। 'राम राज्य' की संकल्पना आज भी विश्व के लिए सुशासन का सबसे बड़ा उदाहरण है, जहाँ हर प्राणी सुखी और निर्भय था। उनकी महिमा का गान करते हुए तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना की, जो आज भी हर घर में संस्कारों की ज्योति जला रही है। श्री राम केवल अयोध्या के नहीं, बल्कि ब्रह्मांड के कण-कण में रचे-बसे हैं। उनकी भक्ति मनुष्य को संयम, सेवा और समर्पण का मार्ग दिखाती है। राम के चरणों में शरण लेना ही जीवन की वास्तविक सार्थकता है, क्योंकि जहाँ राम हैं, वहीं विजय और शांति है।
श्री राम जन्मभूमि मंदिर का इतिहास: सदियों का संघर्ष और आस्था की विजय
अयोध्या की पावन धरा पर निर्मित श्री राम जन्मभूमि मंदिर केवल एक धार्मिक ढांचा नहीं, बल्कि भारतीय चेतना और करोड़ों सनातनियों के पांच सौ वर्षों के अटूट धैर्य की विजय गाथा है। पौराणिक काल की बात करें तो अयोध्या वह नगरी है जिसे स्वयं देवताओं ने बसाया था। मान्यता है कि त्रेता युग के बाद, प्रभु राम के पुत्र कुश ने सबसे पहले अपने पिता की जन्मस्थली पर भव्य मंदिर बनवाया था। बाद में, उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने अपनी दिव्य दृष्टि से इस लुप्त प्राय तीर्थ को पुनः खोजा और यहाँ 84 स्तंभों वाला एक विशाल मंदिर निर्मित किया, जो सदियों तक अपनी आभा बिखेरता रहा।
इतिहास का काला अध्याय 1528 में शुरू हुआ, जब मुगल आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने इस सांस्कृतिक धरोहर पर प्रहार किया। प्राचीन मंदिर के ध्वंसावशेषों पर एक विवादित ढांचे का निर्माण किया गया, जिसका उद्देश्य केवल एक इमारत बनाना नहीं, बल्कि एक जीवंत सभ्यता के आत्मसम्मान को चोट पहुँचाना था। यहीं से शुरू हुआ वह संघर्ष जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहा। निहत्थे संतों, राजाओं और आम भक्तों ने इस पवित्र भूमि को मुक्त कराने के लिए समय-समय पर अनेकों युद्ध लड़े। रिकॉर्ड बताते हैं कि इस भूमि के लिए लगभग 76 बार छोटे-बड़े संघर्ष हुए, जिनमें अनगिनत भक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
आधुनिक युग में, यह संघर्ष कानूनी गलियारों तक पहुँचा। 1949 में विवादित ढांचे के भीतर प्रभु रामलला के प्रकट होने के बाद इस आंदोलन ने नई धार पकड़ी। 1980 के दशक में 'विश्व हिंदू परिषद' और 'राम जन्मभूमि न्यास' के नेतृत्व में शुरू हुए जन-आंदोलन ने इसे घर-घर की लड़ाई बना दिया। साल 1992 की घटना ने इस विवाद को एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा कर दिया। कानूनी लड़ाई दशकों तक दस्तावेजों, गवाहों और पुरातात्विक सबूतों के बीच उलझी रही। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की खुदाई में मिले मंदिर के अवशेषों ने यह सिद्ध कर दिया कि विवादित ढांचे के नीचे वास्तव में एक भव्य हिंदू मंदिर विद्यमान था।
न्याय की घड़ी अंततः 9 नवंबर 2019 को आई, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक और सर्वसम्मत फैसला सुनाते हुए पूरी भूमि रामलला विराजमान को सौंप दी। यह सत्य की जीत थी। 5 अगस्त 2020 को भूमि पूजन के बाद, नागर शैली में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। बिना लोहे के इस्तेमाल के, केवल बंसी पहाड़पुर के पत्थरों से बना यह मंदिर आज आधुनिक इंजीनियरिंग और प्राचीन वास्तुकला का संगम है। 22 जनवरी 2024 को हुई 'प्राण प्रतिष्ठा' ने न केवल प्रभु को उनके सिंहासन पर बैठाया, बल्कि भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का शंखनाद भी किया। आज यह भव्य मंदिर विश्व के करोड़ों लोगों के लिए न्याय, सत्य और मर्यादा का सबसे बड़ा केंद्र है।