Mahakal Bhasma Aarti Live : उज्जैन से लाइव : जय श्री महाकाल के उद्घोष से गूंजी अवंतिका नगरी, साल के अंतिम शनिवार पर उमड़ी भक्तों की भारी भीड़, आप भी घर बैठे करें बाबा के दर्शन

Mahakal Bhasma Aarti Live : जय श्री महाकाल, उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकालेश्वर के दरबार में आज, 27 दिसंबर 2025 को अलसुबह होने वाली भस्म आरती का दृश्य अत्यंत मनमोहक और भक्तिमय रहा।

Update: 2025-12-27 00:59 GMT

Mahakal Bhasma Aarti Live : उज्जैन से लाइव : जय श्री महाकाल के उद्घोष से गूंजी अवंतिका नगरी, साल के अंतिम शनिवार पर उमड़ी भक्तों की भारी भीड़, आप भी घर बैठे करें बाबा के दर्शन

Mahakal Bhasma Aarti Live Today : उज्जैन : जय श्री महाकाल, उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकालेश्वर के दरबार में आज, 27 दिसंबर 2025 को अलसुबह होने वाली भस्म आरती का दृश्य अत्यंत मनमोहक और भक्तिमय रहा। अवंतिका नगरी में कड़ाके की ठंड के बावजूद भक्तों का उत्साह चरम पर था। तड़के सुबह जब पूरा शहर गहरी नींद में था, तब महाकाल मंदिर के पट जय श्री महाकाल के उद्घोष के साथ खोले गए।

Mahakal Bhasma Aarti Live Today : भस्म आरती का दिव्य प्रारंभ

महाकाल की भस्म आरती विश्व में अद्वितीय है क्योंकि यह केवल उज्जैन में ही संपन्न होती है। आज सुबह नियम अनुसार, सबसे पहले भगवान महाकाल का जलाभिषेक किया गया। इसके बाद दूध, दही, घी, शहद और शक्कर (पंचामृत) से बाबा का दिव्य अभिषेक हुआ। इस दौरान मंत्रोच्चार से पूरा गर्भ गृह गुंजायमान रहा। अभिषेक के पश्चात बाबा का विशेष श्रृंगार किया गया, जिसमें उन्हें भांग, चंदन और सूखे मेवों से सजाया गया। आज के श्रृंगार में बाबा का स्वरूप अत्यंत सौम्य और कल्याणकारी नजर आ रहा था।

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Mahakal Bhasma Aarti Live Today : भस्म अर्पण और मुख्य आरती

अभिषेक और श्रृंगार के बाद वह क्षण आया जिसका भक्त घंटों से इंतजार कर रहे थे—भस्म आरती। महानिर्वाणी अखाड़े के साधुओं द्वारा बाबा महाकाल को ताजी भस्म अर्पित की गई। जैसे ही भस्म की वर्षा बाबा पर हुई, पूरा परिसर डमरू और शंख की ध्वनि से गूंज उठा। भस्म आरती के दौरान भक्त "अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चंडाल का, काल उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का" के जयकारे लगा रहे थे। आरती की लौ और कपूर की सुगंध ने वातावरण को पूरी तरह आध्यात्मिक बना दिया।

भस्म आरती के पश्चात का प्रथम चरण: नित्य अभिषेक और पूजन

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में तड़के होने वाली भस्म आरती के तुरंत बाद भगवान का 'नित्य पूजन' आरंभ होता है। जैसे ही भस्म आरती संपन्न होती है, गर्भ गृह की विशेष सफाई की जाती है और बाबा महाकाल को शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है। इसके पश्चात पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से विधिपूर्वक अभिषेक किया जाता है। इस समय मंदिर के पुजारी वेदोक्त मंत्रों का पाठ करते हैं, जिससे पूरा वातावरण शुद्ध और ऊर्जामय हो जाता है। यह प्रक्रिया बाबा को दिनभर की अन्य पूजाओं के लिए तैयार करने का आधार होती है।

दोपहर की तहसील आरती और सतत जलधारा

दिन चढ़ने के साथ ही बाबा महाकाल की तहसील आरती (जिसे दोपहर की आरती भी कहते हैं) संपन्न होती है। यह आरती विशेष रूप से शासकीय व्यवस्था और लोक कल्याण की मंगलकामना के लिए की जाती है। इस दौरान मंदिर के ऊपर लगे चांदी के कलश से शिवलिंग पर सतत जलधारा प्रवाहित होती रहती है। माना जाता है कि शिव जी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी है, इसलिए उन्हें शीतल रखने के लिए गंगाजल और पवित्र जल की धारा पूरे दिन अर्पित की जाती है। भक्त इस समय कतारबद्ध होकर 'चलायमान दर्शन' का लाभ लेते हैं।

दशोपचार पूजन और आध्यात्मिक महत्व

भस्म आरती से लेकर दोपहर की आरती तक, बाबा का दशोपचार पूजन निरंतर चलता रहता है। इसमें दस विशेष उपचारों—पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध (चंदन), पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य—से महादेव की आराधना की जाती है। मंदिर की यह व्यवस्था इतनी सटीक है कि सुबह से लेकर रात तक पूजा का एक विशेष चक्र चलता है, जिसे 'अष्टयाम सेवा' का हिस्सा माना जाता है। भस्म आरती के बाद होने वाली ये सभी पूजाएं भक्त के मन को शांति प्रदान करती हैं और यह दर्शाती हैं कि काल के अधिपति महाकाल की सेवा कभी भी विश्राम नहीं लेती।

संध्या और शयन आरती की तैयारी

जैसे ही सूरज ढलता है, मंदिर में संध्या पूजन की तैयारी शुरू हो जाती है। दिनभर की इन पूजाओं के बाद बाबा का रूप पुन: बदला जाता है और फिर सांध्य आरती के माध्यम से उनकी महिमा का गुणगान होता है। अंत में 'शयन आरती' होती है, जिसके बाद बाबा को विश्राम कराया जाता है। 27 दिसंबर जैसे विशेष दिनों पर, जब श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है, इन पूजाओं का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि हर आरती के साथ मंदिर की ऊर्जा और बढ़ती जाती है।

श्रद्धालुओं की व्यवस्था और माहौल

आज 27 दिसंबर होने के कारण साल के अंत की छुट्टियों की वजह से मंदिर परिसर में काफी भीड़ देखी गई। प्रशासन ने 'चलायमान भस्म आरती' की व्यवस्था की थी ताकि अधिक से अधिक लोग बाबा के दर्शन कर सकें। मंदिर के नंदी हॉल से लेकर कार्तिकेय और गणेश मंडपम तक भक्तों की लंबी कतारें लगी रहीं। सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे और श्रद्धालुओं के लिए गर्म पानी व अन्य बुनियादी सुविधाएं भी सुनिश्चित की गई थीं।

घर बैठे करें दर्शन

जो भक्त उज्जैन नहीं पहुंच पाए हैं, उनके लिए मंदिर समिति ने ऑनलाइन दर्शन की व्यवस्था की है। डिजिटल माध्यमों के जरिए लाखों श्रद्धालु घर बैठे बाबा महाकाल की आरती और श्रृंगार का लाभ उठा रहे हैं। माना जाता है कि साल के अंत में बाबा के दर्शन करने से आने वाला नया साल सुख-समृद्धि और शांति लेकर आता है।

आज की यह भस्म आरती न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान थी, बल्कि यह ऊर्जा और सकारात्मकता का वह स्रोत थी जिसे लेकर भक्त अपने घरों को लौटे। बाबा महाकाल के दर्शन मात्र से भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें आत्मिक शांति की अनुभूति होती है।


मंदिर का अत्यंत प्राचीन इतिहास

विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर के मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है, जिसका उल्लेख पुराणों और कालिदास के मेघदूत जैसे ग्रंथों में मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उज्जैन (अवंतिका) में दूषण नामक राक्षस का आतंक था, जिससे प्रजा को मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं भगवान शिव पृथ्वी फाड़कर प्रकट हुए थे और उसका संहार किया था। भक्तों की प्रार्थना पर वे यहीं लिंग रूप में स्थापित हो गए। महाकाल को "पृथ्वी का नाभि केंद्र" माना जाता है और यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है। तांत्रिक परंपरा में दक्षिण मुखी होना विशेष महत्व रखता है, यही कारण है कि महाकाल को मृत्यु का अधिपति और काल का रक्षक माना जाता है।

ऐतिहासिक रूप से, वर्तमान मंदिर संरचना के निर्माण और जीर्णोद्धार में कई राजवंशों का योगदान रहा है। 11वीं शताब्दी में परमार राजाओं के समय मंदिर अपने वैभव के शिखर पर था। हालांकि, 1234-35 ईस्वी में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण कर मंदिर को काफी नुकसान पहुँचाया और मूल शिवलिंग को क्षति पहुँचाने का प्रयास किया। इसके बाद लगभग 500 वर्षों तक मंदिर उपेक्षित रहा, लेकिन मराठा साम्राज्य के उत्कर्ष के साथ इसका भाग्य फिर बदला। 18वीं शताब्दी (1734 ईस्वी) में मराठा सेनापति राणोजी राव सिंधिया ने वर्तमान भव्य मंदिर का निर्माण कराया और प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित किया।

महाकाल मंदिर परिसर की वास्तुकला अनूठी है, जहाँ तीन स्तरों पर मंदिर बने हुए हैं। सबसे नीचे महाकालेश्वर, मध्य में ओंकारेश्वर और सबसे ऊपरी तल पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर स्थित है, जो केवल नागपंचमी के दिन साल में एक बार खुलता है। मंदिर के पास ही विशाल 'कोटि तीर्थ' कुंड है, जिसकी अपनी आध्यात्मिक महिमा है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 'श्री महाकाल लोक' कॉरिडोर का लोकार्पण किया गया, जिसने इस प्राचीन मंदिर को आधुनिक भव्यता और अत्याधुनिक सुविधाओं से जोड़ दिया है। आज यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति और स्थापत्य कला का एक जीवंत प्रतीक भी है।

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