Kushotpatini Amavasya 2024 : इसी दिन विधिवत तरीके से उखाड़ा जाता है कुश...पूरे साल देवी-देवता और पितरों की पूजा के लिए किया जाता है इस्तेमाल

Kushotpatini Amavasya 2024 : पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या आज मनाई जा रही है। इसी भादो अमावस्या, कुश उत्पाटन, कुशोत्पाटिनी जैसे नामों से भी जानते हैं। कुशोत्पाटिनी अमावस्या का मतलब है कि कुश का उखाड़ना।

Update: 2024-08-31 09:26 GMT

Kushotpatini Amavasya  2024 :  कुशोत्पाटिनी अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाई जाती है। यह हर साल पोला पर्व के ही दिन पड़ता है। कुशोत्पाटिनी अमावस्या  02 सितम्बर को है. इसे भादो अमावस्या, कुश उत्पाटन, कुशोत्पाटिनी जैसे नामों से भी जानते हैं।

पंडित मनोज शुक्ला के अनुसार कुशोत्पाटिनी अमावस्या का मतलब है कि कुश का उखाड़ना। आज के दिन कुश को विधिवत तरीके से उखाड़ा जाता है। इस कुश का इस्तेमाल पूरे साल देवी-देवता और पितरों की पूजा के लिए किया जाता है।

इसके अलावा शादी-विवाह, मांगलिक कार्यों आदि में किया जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन स्नान-दान करने का विशेष महत्व है। जानिए कुश का महत्व और कुश से जुड़े नियम।


कुश का महत्व




शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि कुश की उत्पत्ति भगवान विष्णु के रोम से हुआ है। कुश का मूल ब्रह्मा, मध्ये विष्णु और अग्रभाव शिव का जानना चाहिए। इसी कारण तुलसी की तरह कुश भी कभी बासी नहीं होता है। इसका इस्तेमाल बार-बार किया जा सकता है।

कुश की उत्पत्ति की कथा

मत्स्य पुराण में कुश की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर अपने परम भक्त प्रहलाद की प्राणों की रक्षा के लिए हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध किया था तो फिर से धरती को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थी। भगवान वराह अवतार ने जब अपने शरीर पर लगे पानी को झटका तब उनके शरीर के कुछ बाल पृथ्वी पर आकर गिरा और कुश का रूप धारण कर लिया। तभी से कुश को पवित्र माना जाता है।

इस तरह तोड़े कुश




शास्त्रों में कुश को तोड़ने के भी कुछ नियम बताए गए हैं जिसके अनुसार, कुश तोड़ने से पहले उनसे क्षमायाचना जरूर करें। इसके साथ ही प्रार्थना करते हुए कहे कि हे कुश  आप मेरे निमंत्रण को स्वीकार करें और मेरे साथ मेरे घर चलें। फिर 'ऊं ह्रूं फट् स्वाहा' मंत्र का जाप करते हुए कुश को उखाड़ना लें और उसे अपने साथ घर ले आएं और एक साल तक घर पर रखें और मांगलिक नामों के साथ पितरों का श्राद्ध  में इस्तेमाल कर सकते हैं। 

 शास्त्रों में 10 प्रकार की कुशा का वर्णन दिया गया है

कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।

गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।

 माना जाता है कि घास के इन 10 प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो, इस दिन कर लेनी चाहिए। 

 नियम और तरीका : 

 - कुशा निकालने के लिए या इस कर्म के लिए सूर्योदय का समय सबसे उचित रहता है।

- उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए और मंत्रोच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से एक बार में ही कुश को निकालना चाहिए। 

 इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण किया जाता है-

विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।

नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।

 - कुशा उखाड़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि घास को सिर्फ हाथ से ही एकत्रित करना चाहिए, इसे किसी औजार से नहीं काटना चाहिए। 

 - उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिए, आगे का भाग टूटा हुआ न हो। 

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