Chhattisgarh ke lokgeet aur loknritya: छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकनृत्य और लोकगीत। सुर, लय और थाप का अनोखा मेल...

Chhattisgarh ke lokgeet aur loknritya: छत्तीसगढ़ अपनी पारंपरिक लोकगीत और लोक नृत्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां के ग्रामीण समुदाय और आदिवासियों में नृत्य और संगीत का काफी महत्व है।

Update: 2025-10-07 07:39 GMT

Chhattisgarh ke lokgeet aur loknritya: छत्तीसगढ़ अपनी पारंपरिक लोकगीत और लोक नृत्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां के ग्रामीण समुदाय और आदिवासियों में नृत्य और संगीत का काफी महत्व है। इनका इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है। आदिवासियों में नृत्य और संगीत इनकी पूजा का हिस्सा होती है, जिनमें पंडवानी, राउत नाचा, सुआ आदि शामिल है। छत्तीसगढ़ में 43 जनजातियाँ पाई जाती है जो अपनी अनूठी कला के माध्यम से प्रकृति के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करती हैं।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत

छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में यहां की कहानियो, कथाओं और धार्मिक संदेशों का संगम मिलता है। यह गीत ग्रामीण अंचल और आदिवासी समुदायों के जीवन से गहराई से जुड़े होते हैं। साथ ही इन लोकगीतों के साथ उपयोग में आने वाले वाद्य यंत्र जैसे बांसुरी, तानपुरा, ढोलक और तमूरा आदि भी इस लोकगीतों में जान डाल देते हैं। नीचे प्रमुख लोकगीतों की सूची दी गई है।

पंडवानी

पंडवानी छत्तीसगढ़ का सबसे प्रसिद्ध लोकगीत है, जो महाभारत की कथाओं पर आधारित है। यह गीत-नाट्य शैली में प्रस्तुत किया जाता है। जिसमें मुख्य गायक तानपुरा और तबले के साथ कथा को गायन और अभिनय के माध्यम से जीवंत करता है। पंडवानी दो शैलियों में गाई जाती है: वेदमती (बैठकर) और कपालिक (खड़े होकर)। तीजन बाई, झाड़ूराम देवांगन और पुनाराम निषाद जैसे कलाकारों ने इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। पंडवानी का मुख्य नायक भीम को माना जाता है

चंदैनी

चंदैनी गीत लोरिक और चंदा की प्रेम कथा पर आधारित हैं, जो छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य का हिस्सा हैं। ये गीत प्रेम, वीरता और सामाजिक बंधनों की कहानियाँ बयान करते हैं। ममता चंद्राकर और भैयालाल जैसे गायकों ने इस शैली को लोकप्रिय बनाया। चंदैनी गीत रंग-बिरंगे परिधानों और नाटकीय प्रस्तुति के साथ मंच पर जीवंत होते हैं।

भरथरी

भरथरी गीत राजा भरथरी की लोककथाओं पर आधारित हैं, जो त्याग, वैराग्य और आध्यात्मिकता की कहानियाँ सुनाते हैं। ये गीत छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं और धार्मिक आयोजनों में गाए जाते हैं। श्रीमती सुरूज बाई खांडे,जगदीश प्रसाद और हेमलता पटेल जैसे गायकों ने इस शैली को जीवित रखा है।

लोरिक-चंदा

लोरिक-चंदा गीत प्रेम और युद्ध की गाथाएँ हैं, जो उत्तर भारत की लोक परंपराओं से प्रभावित हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ी शैली में ढलकर अनूठी बन गई हैं। ये गीत नाट्य मंचों पर गायन और अभिनय के साथ प्रस्तुत होते हैं। स्थानीय कलाकार और चंदैनी मंडलियाँ इन्हें ग्रामीण मेलों और सामुदायिक आयोजनों में प्रस्तुत करती हैं। ये गीत प्रेम और वीरता की भावनाओं को उजागर करते हैं, जो छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं।

धनकुल

धनकुल गीत आदिवासी समुदायों के बीच लोकप्रिय हैं, जो प्रकृति और सामुदायिक जीवन से प्रेरित हैं। धनकुल गीत फसल उत्सवों और आदिवासी समारोहों में गाए जाते हैं, जो प्रकृति के प्रति श्रद्धा और सामुदायिक एकता को दर्शाते हैं। यह मुख्यतः हलबा जनजाति में गाया जाता है। धनकुल एक प्रकार का वाद्य यंत्र भी है जिसे धनुष, सुपा और हंडी के माध्यम से बनाया जाता है।

भोजली

भोजली गीत हरियाली अमावस्या के दौरान गाए जाते हैं। ये गीत विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं द्वारा गाए जाते हैं और सामाजिक एकता को बढ़ावा देते हैं। भोजली गीत अगस्त-सितंबर के महीने में आयोजित होने वाले भोजली त्यौहार के दौरान प्रस्तुत किए जाते हैं,

बाँस गीत

छत्तीसगढ़ में बांस गीत मुख्यतः राउत और यादव समुदाय द्वारा गाया जाता है। इसमें एक बांस की तीन फीट लंबे वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है जिसे बजाते हुए मधुर ध्वनियां निकलते हैं। बांस गीत में एक गायक होता है और उसके साथ दो व्यक्ति बांस को बजाने वाले होते हैं

छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ के इतिहास में नृत्य, आदिवासी जीवन शैली का एक हिस्सा रहा है। यह मनोरंजन के साथ-साथ प्रकृति पूजा का भी साधन था। नीचे प्रमुख लोकनृत्यों की सूची दी गई है।

पंथी नृत्य

पंथी नृत्य सतनामी समुदाय का प्रतीकात्मक नृत्य है। 19वीं शताब्दी में गुरु घासीदास के सामाजिक सुधारों से प्रेरित होकर यह नृत्य महिलाओं और पुरुषों द्वारा सफेद धोती-कुर्ता के साथ प्रस्तुत किया जाता है। तालबद्ध कदम और गीत इसकी विशेषता हैं। यह नृत्य माघ पूर्णिमा पर गुरु घासीदास जयंती के अवसर पर बड़े उत्साह से किया जाता है।


राउत नाचा

राउत नाचा यादव समुदाय का पारंपरिक नृत्य है। जो भगवान कृष्ण की कथाओं और महाभारत के युद्ध दृश्यों से प्रेरित है। नर्तक तलवारें लहराते हैं और गाय-बैल की खाल से बनी वेशभूषा पहनते हैं। कबीर और तुलसीदास के दोहे इस नृत्य का हिस्सा हैं। यह सात दिनों तक चलने वाला नृत्य दीवाली के बाद गोवर्धन पूजा से देवउठनी एकादशी तक प्रस्तुत किया जाता है।




कर्मा नृत्य

कर्मा नृत्य गोंड, बैगा और उरांव जनजातियों का प्रमुख नृत्य है। जो 11वीं शताब्दी से कर्मा वृक्ष की पूजा से जुड़ा है। पुरुष और महिलाएँ रंग-बिरंगे परिधानों, पंखों और घुंघरुओं के साथ कर्मा शाखा के चारों ओर घेरा बनाकर नृत्य करते हैं। यह नृत्य भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दौरान किया जाता है।



सुआ नृत्य

सुआ नृत्य, जिसे 'छत्तीसगढ़ का गरबा' कहा जाता है। यह गोंड आदिवासियों द्वारा शिव-पार्वती की पूजा के लिए किया जाता है। महिलाएँ मिट्टी के तोते को केंद्र में रखकर ताली बजाते हुए नृत्य करती हैं और प्रेम गीत गाए जाते हैं। यह नृत्य गौरी विवाह और दीवाली के अवसर पर प्रस्तुत किया जाता है, जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।


सैला नृत्य

सैला नृत्य सरगुजा और बैतूल क्षेत्र का स्टिक डांस है, जो फसल कटाई के बाद किया जाता है। नर्तक बांस की छड़ियों से थाप देते हुए वृत्ताकार गति में नृत्य करते हैं। मांदर जैसे वाद्य यंत्र इसकी लय को बढ़ाते हैं। यह नृत्य अगहन मास और दशहरा के दौरान प्रस्तुत किया जाता है।



गेंड़ी नृत्य

गेंड़ी नृत्य छत्तीसगढ़ का मनोरंजनकारी नृत्य है, जिसमें नर्तक बांस की छड़ियों पर संतुलन बनाते हुए नृत्य करते हैं। यह नृत्य आदिवासी संगीत और परिधानों के साथ प्रस्तुत किया जाता है। शादी-विवाह और फसल उत्सवों के दौरान यह नृत्य विशेष रूप से लोकप्रिय है।


ककसार नृत्य

ककसार नृत्य बस्तर और सरगुजा क्षेत्र का नृत्य है, जो मुख्यतया मुरिया जनजाति द्वारा किया जाता है। पुरुष और महिलाएं नर्तक लयबद्ध मुद्राओं में प्रदर्शन करते हैं। इस नृत्य को करने की कोई विशेष तिथि नहीं है परंतु यह वर्षा ऋतु में किया जाता है। मुरिया जनजाति द्वारा अपने कुल देवता को प्रसन्न करने के लिए यह नृत्य किया जाता है।


सरहुल नृत्य

यह नृत्य उरांव जनजाति का प्रमुख नृत्य है। यह नृत्य चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन साल वृक्ष में फूल आने की खुशी में किया जाता है। इसमें युवक और युक्तियां एक साथ भाग लेती हैं। इस नृत्य में मांदर और झांझ को प्रमुख वाद्य यंत्र के रूप में उपयोग किया जाता है।



गौर नृत्य

बस्तर की प्रमुख पहचान के रूप में यह नृत्य विश्व प्रसिद्ध है। मारिया जनजाति द्वारा यह नृत्य किया जाता है, जिसमें युवक सिर पर गौर के सींग और कौड़ियों से सजा मुकुट पहनकर नृत्य करते हैं। मुख्य रूप से यह नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है। महिलाएं भी इस नृत्य में शामिल होती हैं।


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