Chhattisgarh ke 5 Mashhoor Palace: छत्तीसगढ़ के 5 प्रसिद्ध राजमहल, जहां आज भी ज़िंदा है राजाओं की शान, जानिए इन महलों की अनकही कहानियां

Chhattisgarh ke 5 Mashhoor Palace: छत्तीसगढ़ की इस महान धरती पर कल्चुरी, काकतीय और मराठा जैसे कई बड़े–बड़े राजवंशों ने शासन किया। अपने इस शासन काल के दौरान उन्होंने अपनी स्थापत्य शैलियों का उपयोग करके अनेक राजमहल, मंदिर और कई अत्याधुनिक निर्माण कार्य करवाए, जो आज भी मौजूद है। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी ये महल और निर्माण कार्य आज तक अपनी ऐतिहासिकता बनाए हुए है। राजतंत्र समाप्त होने के बाद भी इन किलों और महलों को राजाओं के वंशजों द्वारा आज भी सहेज के रखा गया है। आइए जानते है छत्तीसगढ़ के प्रमुख राजमहलों के बारे में...

Update: 2025-12-20 13:58 GMT

Chhattisgarh ke 5 Mashhoor Palace: छत्तीसगढ़ की इस महान धरती पर कल्चुरी, काकतीय और मराठा जैसे कई बड़े–बड़े राजवंशों ने शासन किया। अपने इस शासन काल के दौरान उन्होंने अपनी स्थापत्य शैलियों का उपयोग करके अनेक राजमहल, मंदिर और कई अत्याधुनिक निर्माण कार्य करवाए, जो आज भी मौजूद है। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी ये महल और निर्माण कार्य आज तक अपनी ऐतिहासिकता बनाए हुए है। राजतंत्र समाप्त होने के बाद भी इन किलों और महलों को राजाओं के वंशजों द्वारा आज भी सहेज के रखा गया है। आइए जानते है छत्तीसगढ़ के प्रमुख राजमहलों के बारे में...

1. रतनपुर का किला

बिलासपुर जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रतनपुर का किला छत्तीसगढ़ का एक ऐतिहासिक धरोहर है। इस किले का निर्माण कलचुरी वंश के राजाओं ने 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच करवाया था। रतनपुर को माता महामाया की नगरी के रूप में भी जाना जाता है। रतनपुर का यह किला, गजकिला या हाथी किला के नाम से प्रसिद्ध है।

इस किले की वास्तुकला काफी अलग है। किले के चारों तरफ देखने पर लगता है कि यहां आक्रमणकारियों के लिए कई सुरक्षा घेरों का इंतजाम किया गया था। किले के अंदर लक्ष्मीनारायण मंदिर और जगन्नाथ जी का प्राचीन मंदिर आज भी देखा जा सकता हैं। इस किले की एक कलाकृति काफी फेमस है जिसमें रावण द्वारा अपना सिर काटकर महादेव को अर्पित करते हुए दिखाया गया है।

2. चैतुरगढ़ का किला

कोरबा जिले में स्थित चैतुरगढ़ किला छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ों में से एक है और इसे लाफागढ़ के नाम से भी जाना जाता है। यह किला पाली से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है। इस किले का निर्माण 1079 ईस्वी में राजा पृथ्वीदेव प्रथम ने 3060 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी की चोटी पर करवाया था। यह किला अपनी प्राकृतिक मजबूती के लिए प्रसिद्ध है।

इस किले को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षण प्राप्त है। किले के तीन मुख्य प्रवेश द्वार हैं जिन्हें मेनका, हुमकारा और सिंहद्वार के नाम से जाना जाता है। यहां प्रसिद्ध बारह हाथों वाली महिषासुर मर्दिनी मंदिर स्थित है साथ ही किले में चांदी के दरवाजे और पत्थरों के पिलर आज भी देखे जा सकते हैं।

3. बस्तर पैलेस

यह पैलेस राजा–महाराजाओं और अंग्रेजों के समय बस्तर राज्य का मुख्यालय हुआ करता था और जब बस्तर राज्य की राजधानी बारसूर से जगदलपुर में स्थानांतरित की गई थी तो यहां इसका निर्माण काकतीय वंश के शासक प्रवीर चंद भंजदेव ने 1890 में करवाया था। यह महल रामायण और महाभारत काल के प्राचीन कौशल देश की याद दिलाता है। इस महल में 50 कमरे, 3 सभागार और 1 दरबार हॉल मौजूद है। आदिवासी समाज इस महल को देवता की तरह पूजता है। इस पैलेस में छत्तीसगढ़ के अंतिम चीते का सर भी रखा हुआ है, जिसे कोरिया के महाराजा ने शिकार करके बस्तर के राजा को भेंट किया था।

4. कवर्धा महल

कबीरधाम जिले में सकरी नदी के तट पर स्थित कवर्धा महल इटालियन मार्बल से बना एक बेहतरीन निर्माण कार्य है। इस महल का निर्माण महाराजा धर्मराज सिंह ने 1936 से 1939 के बीच करवाया था। यह भव्य महल 11 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। इस भव्य महल में ऊपर एक खास गुंबद बना हुआ है, जिस पर सोने और चांदी से नक्काशी की गई है। कवर्धा महल के निकट ही भोरमदेव मंदिर स्थित है जिसका निर्माण फणी नागवंश के राजा गोपाल देव ने 11वीं शताब्दी में करवाया था।

5. कांकेर पैलेस

1937 में पुनर्निर्मित(फिर से बना) यह महल, सोमवंशी राजाओं की अत्यंत महत्वपूर्ण निशानी है। बस्तर क्षेत्र में स्थित इस महल में अंग्रेजी वास्तुकला और आदिवासी संस्कृति का प्रदर्शन साफ नजर आता है। वर्तमान में इस महल को हेरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है जहां पर्यटक शाही ठाठ–बाठ का अनुभव ले सकते हैं। 18वीं सदी में बने इस महल में अंग्रेजों ने भी निवास किया है। कांकेर पैलेस को पहले राधानिवास बगीचा के नाम से जाना जाता था और इसके अंतिम राजा महाराजा भानुप्रताप देव थे।

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