राज्योत्सव छत्तीसगढ़ विशेष: ये हैं छत्तीसगढ़ की आन, बान और शान...जिन्होंने दिलाई छत्तीसगढ़ को विश्व पटल पर पहचान
राज्योत्सव छत्तीसगढ़ विशेष: ये हैं छत्तीसगढ़ की आन, बान और शान...
दिव्या सिंह
NPG DESK I "हमर छत्तीसगढ़" - बहुत प्यारा है ना ये संबोधन और हम बहुत गर्व से इसका प्रयोग करते हैं। छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया सन 2000 में एक नवंबर के दिन। लेकिन युवा छत्तीसगढ़ की विरासत सैकड़ों साल पुरानी है। बात चाहे धान की हो, धर्म की हो या अर्थ की। लोककला की हो या स्थापत्य कला की या फिर हो प्राकृतिक सौंदर्य की तलाश,ज़िक्र होते ही देश-दुनिया में सम्मान पा लेता है "छत्तीसगढ़"। आज हम अपने इस लेख में प्रदेश की ऐसी ही कुछ खास उपलब्धियों को समेटने और सहेजने की कोशिश कर रहे हैं। आशा करते हैं इस लेख के साथ आगे बढ़ते हुए आप भी खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे।
धान
छत्तीसगढ़ की पहचान है "धान"। छत्तीसगढ़ में धान की ज्यादा पैदावार के साथ ही धान की कई किस्मों के कारण इसे धान का कटोरा कहा जाता है। छतीसगढ़ के कुल कृषि रकबे के करीब 88 फीसदी से अधिक भाग में धान की खेती की जाती है और यहाँ 20,000 से अधिक धान की किस्मों की खेती की जाती है। यहां के एक धान जीराफूल के दीवाने देश ही नहीं, दुनिया भर में हैं। सरगुजा के इस धान को GI टैग भी मिल चुका है। जीरा फूल धान बेहद पतला और छोटा होता है। इस धान के चावल की खुशबू और मिठास की तो बात ही निराली है।अगर किसी घर में जीराफूल चावल को पकाया जा रहा है तो उसके आसपास के घरों तक इसकी खुशबू पहुंच जाती है।ज़ाहिर है ख्याति और चावल के शौकीनों का प्यार तो इसे मिलना ही था।
पंडवानी
"पंडवानी और तीजन बाई" एक-दूसरे का पर्याय ही समझ लीजिए इन्हें। देश क्या, दुनिया जानती है इनके बारे में और इनके ज़िक्र के साथ सम्मान मिलता रहा है छत्तीसगढ़ को।
पंडवानी छत्तीसगढ़ी लोक-गायन शैली है, जिसका अर्थ है पांडववाणी - अर्थात यह पांडवकथा है। इसमें महाकाव्य महाभारत के पांडवों की कथा सुनाई जाती है, जिसमें भीम मुख्य किरदार होता है। ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार जाति के कलाकार सुनाते हैं। तीजन बाई के साथ ऋतु वर्मा, खूबलाल यादव, जेना बाई, रामाधार सिन्हा आदि प्रमुख पंडवानी कलाकार हैं।
भरथरी
आंचलिक परम्परा में आध्यात्मिक लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित राजा भर्तहरि के जीवन वृत्त, नीति और उपदेशों को लोक शैली में प्रस्तुति है - भरथरी। छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन की पुरानी परम्परा को सुरुजबाई खांडे ने रोचक लोक शैली में प्रस्तुत कर विशेष पहचान बनाई। उन्होंने सोवियत रूस में हुए 'भारत महोत्सव' तक भरथरी को पहुंचाया।
भिलाई स्टील प्लांट
छत्तीसगढ़ की पहचान है औद्योगिक नगरी भिलाई और इसका स्टील प्लांट। यह एकमात्र ऐसा स्टील प्लांट है जिसे सबसे अधिक दस बार प्रधानमंत्री ट्राफी से नवाज़ा गया है। देश के कोने-कोने में भिलाई स्टील प्लांट की बनाई रेल पटरी बिछी हुई है।यह प्लांट सेना के अनेक महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए आवश्यक स्टील प्लेट उपलब्ध कराता है।
बम्लेश्वरी मंदिर
राजनांदगांव में डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरूपा मां बमलेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर आस्था का केंद्र है जहां दूर-दूर से भक्तों के जत्थे सिर नवाने आते हैं।नवरात्रि के दौरान तो यहां आस्था का सैलाब उमड़ता है।1,600 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित माँ बमलेश्वरी देवी मंदिर की ख्याति देश भर में है।
दंतेश्वरी मंदिर
कहते हैं कि यह वह स्थान हैं जहां पर देवी सती का दांत गिरा था इसीलिए इस स्थान का नाम दंतेश्वरी है। इसे देश का 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाड़ा में होने के बावजूद भी भक्तगण यहां आना नहीं छोड़ते।डंकिनी और शंखिनी नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर अपनी समृद्ध वास्तुकला, मूर्तिकला और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के कारण जाना जाता है। यहां नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंशीय काल की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं।इसे तांत्रिकों की स्थली भी कहा जाता है।
हबीब तनवीर और उनके नाटक
भारत के मशहूर पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर का जन्म रायपुर में हुआ था। उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार चरणदास चोर शामिल है। उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित किया था। हबीब तनवीर को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड, पद्मश्री अवार्ड, पद्म विभूषण जैसे सम्मान मिले। वे 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी रहे। उनका नाटक चरणदास चोर एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला पहला भारतीय नाटक बना।
डोकरा शिल्प
आदिवासियों के डोकरा आर्ट को छत्तीसगढ़ की शान कहा जाता है। बस्तर में बनाए जाने वाले डोकरा आर्ट की मूर्तियों की डिमांड देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। बस्तर का बेल मेटल और डोकरा आर्ट पूरे देश में प्रसिद्ध है खासकर डोकरा आर्ट की मूर्तियों की काफी डिमांड है। देश के बड़े महानगरों में बकायदा डोकरा आर्ट के शोरूम भी हैं।इन शोरूमों में आदिवासियों के बनाए डोकरा आर्ट की मूर्तियों की काफी डिमांड रहती है। दुनिया भर में लोग इन मूर्तियों को अपने लिविंग रूम में सजाना पसंद करते हैं।
चित्रकोट जलप्रपात
इसे भारत का नियाग्रा फॉल्स कहा जाता है। यह भारत का सबसे चौड़ा जलप्रपात है। इन्द्रावती नदी में छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के जगदलपुर शहर से 38 किलोमीटर की दुरी पर चित्रकोट जलप्रपात स्थित है जिसकी चौड़ाई 985 फीट और 95 फीट है, ऊँचाई से गिरते हुए खूबसूरत दृश्य का निर्माण करती है जिसे देखने के लिए पर्यटक दूर दूर से इसकी ओर खींचे चले आते हैं।
सिरपुर
ऐतिहासिक नगर सिरपुर के नाम अतीत के कई महत्वपूर्ण पन्ने दर्ज हैं। यह प्राचीन नगर राज्य के महासमुंद जिले का अभिन्न अंग है। यहां से होकर गुजरती महानदी इस पूरे क्षेत्र को संवारने का काम करती है। माना जाता है कि गौतम बुद्ध के काल के दौरान यह एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था, इसलिए आज भी यहां बौद्ध धर्म से जुड़े कई महत्वपूर्ण साक्ष्य देखे जा सकते हैं।
बौद्ध धर्म को लेकर छठी से दसवी शताब्दी के मध्य इन नगर की भूमिक अग्रणी बताई जाती है। इस स्थल के धार्मिक महत्व के कारण यहां दलाई लामा का आगमन भी हो चुका है। बुद्ध विहार, लक्ष्मण मंदिर, पुरातत्व संग्रहालय, बलेश्वर मंदिर की मौजूदगी सिरपुर को दुनिया भर में नाम दिलवाती है।
पंथी नृत्य
पंथी छत्तीसगढ़ का एक ऐसा लोक नृत्य है, जिसमें आध्यात्मिकता की गहराई तो है ही, साथ ही भक्त की भावनाओं का ज्वार भी है। इसमें जितनी सादगी है, उतना ही आकर्षण और मनोरंजन भी है। पंथी नृत्य की यही विशेषताएँ इसे अनूठा बनाती हैं। देवदास बंजारे के अलावा पुरानिक चेलक, दिलीप बंजारे, करमचंद कोसरिया आदि ने पंथी नृत्य के द्वारा देश-दुनिया में छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया।
सुआ गीत और नृत्य
सुआ गीत की जो शैली आज सबसे ज्यादा प्रचलित है,उसे धुन में पिरोने का श्रेय श्री आशाराम निशाद को जाता है।सुआ गीत में महिलाएं बाँस की टोकनी मे भरे धान के ऊपर सुआ अर्थात तोते कि प्रतिमा रखती हैं और उसके चारों ओर वृत्ताकार स्थिति में नाचती गाती हैं। महिलाएं बड़े सहज रुप से इस गीत के माध्यम से अपनी मनोदशा को व्यक्त करती हैं। इसीलिये ये गीत बड़े मार्मिक होते हैं।सुआ नृत्य ने कई वर्ल्ड रिकार्ड अपने नाम किए।
तेंदूपत्ता
छत्तीसगढ़ भारत का एक अग्रणी राज्य है, जो सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले तेंदु ( डायोस्पायरोस मेलानॉक्सिलॉन ) के पत्तों का उत्पादन करता है। तेंदू के पत्तों का उपयोग बीड़ी (सिगरेट का ग्रामीण रूप) रैपर के रूप में किया जाता है। प्रदेश में तेंदूपत्ता का उत्पादन सालाना लगभग 16.72 लाख मानक बैग है, जो देश के कुल तेंदू पत्ते उत्पादन का लगभग 20% है।
हमारे छत्तीसगढ़ के पास ऐसी ही और न जाने कितनी चीजें हैं जिन्हें एक बार में समेटना कठिन है। इन सब ने मिलकर छत्तीसगढ़ को ऐसे राज्य की पहचान दी है, जो नया होकर भी संपन्न है, विरासत से समृद्ध है और है देश-दुनिया के आकर्षण का केंद्र। आइए अपने प्रदेश के स्थापना दिवस को धूमधाम से मनाते हैं।