जाको राखे साइयां मार सके न कोय...65 फीट गहरे बोरवेल में गले तक पानी में 104 घंटे तक डूबे राहुल ने मौत को दी मात

10 साल के दिव्यांग की जीवटता से हर कोई हैरान। कई बार निढाल हुआ, लेकिन हार नहीं मानी।

Update: 2022-06-14 21:13 GMT

रायपुर, 15 जून 2022। इन आंखों में देखिए...जो आत्मविश्वास और जीवटता दिख रही है, उसे देखकर कोई अनुमान लगा सकता है कि 10 साल के इस बच्चे ने 104 घंटे 65 फीट गहरे बोरवेल में बिताए हैं। ऐसा बोरवेल जिसमें शुरुआती कुछ घंटे कीचड़ और बाद में बाहर निकलते तक कभी कंधे और कभी गले तक पानी भरा था। उसी छोटी सी जगह में पानी में एक सांप भी था। इस मासूम ने चार रातें इसी हाल में बिताई। पेट भरने के लिए सिर्फ कुछ केले, फ्रूटी और ओआरएस मिला। हम आप शायद ऐसी किसी परिस्थिति में 104 क्या 4 घंटे भी रह पाने की कल्पना नहीं कर सकते। यह कर दिखाया जांजगीर जिले के मालखरौदा ब्लॉक के पिहरिद गांव के राहुल साहू ने। राहुल ने जिस हिम्मत और जज्बे से मौत को मात दी, यह बात चरितार्थ हो गई, 'जाको राखे साइयां मार सके न कोय।'


(राहुल की दादी से वीडियो कॉल पर बात करते सीएम भूपेश बघेल।)

राहुल साहू...10 साल का एक ऐसा बालक, जो बोल नहीं सकता, सुन नहीं सकता...समझ नहीं सकता। आज अपनी जिजीविषा के कारण देश ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों तक जाना जा रहा है। 104 घंटे पहले जाकर देखें तो राहुल घरवालों के लिए खास बच्चा था, जिसकी पूरी जिम्मेदारी घरवालों की थी। शुक्रवार को खेलते-खेलते वह अपनी ही बाड़ी के पीछे बने बोरवेल में गिर गया। बोरवेल की गहराई 80 फीट थी, जिसमें राहुल 65 फीट पर एक पत्थर पर फंसा था। आमतौर पर बोरवेल जैसे होते हैं, उससे अलग जिस जगह राहुल फंसा था, वहां इतनी जगह थी कि राहुल बैठ पा रहा था। जब राहुल गिरा, तब लगभग चार बजे थे। घरवालों को पता चला और पुलिस तक खबर पहुंची।


(कलेक्टर जितेंद्र शुक्ला ने राहुल के छोटे भाई ऋषभ को माला पहनाकर सम्मानित किया। ऋषभ ही अपने भाई को केला खाने, जूस पीने के लिए आवाज लगाता था और उस जादुई आवाज पर राहुल खाता-पीता था।)

मालखरौदा थाने में जब यह खबर पहुंची, तब वहां से बिना देर किए पुलिस टीम निकली। कलेक्टर जितेंद्र शुक्ला और एसपी विजय अग्रवाल को भी जानकारी दी गई। वे भी जानते थे कि यह बेहद सेंसेटिव केस है, इसलिए बिना देर किए वे भी पहुंचे। अब यहां से पुलिस और प्रशासन की जुगलबंदी से रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ। छत्तीसगढ़ में इस तरह का यह पहला मामला था, लेकिन कोई चूक करने के बजाय तत्काल SDRF और NDRF को खबर दी गई। SDRF के डायरेक्टर मयंक श्रीवास्तव ने टीम भेजी और खुद भी मौके के लिए रवाना हुए। आईजी रतनलाल डांगी भी पिहरिद पहुंच गए। यह सब जुटते-जुटते रात हो गई। ऑक्सीजन सिलेंडर से लेकर कैमरे तक, रेस्क्यू के लिए जो बेसिक जरूरत थी, वह जुटा ली गई थी।

पहली रात (शुक्रवार) में ही यह उम्मीद थी कि ऑपरेशन सक्सेसफुल रहेगा, लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि ऐसी चार रातें इसी उम्मीद में बीतेगी कि ऑपरेशन सक्सेसफुल होने को ही है। लोकल लोगों को छोड़ दें तो दूसरे शहर से जो लोग गए थे, वे भी यही सोचकर गए थे कि सुबह तक राहुल बाहर आ जाएगा। जब गड्ढा खोदने की शुरुआत हुई और पत्थरों से सामना हुआ, तब पता चला कि बोरवेल के पैरलल 65 फीट गड्ढा खोदने में शनिवार की शाम हो जाएगी। लेकिन यह हकीकत से काफी दूर था। 65 फीट गड्ढा खोदने में सोमवार की शाम हो गई। इसके बाद सुरंग बनाने और राहुल तक पहुंचने में मंगलवार की रात हो गई। आखिरकार मंगलवार रात करीब 12 बजे राहुल मौत को मात देकर बाहर आया।


(NDRF के जवान जो लगातार राहुल पर कैमरे के जरिए नजर रख रहे थे।)

फोन की फॉर्मेलिटी नहीं, वीडियो कॉल पर कलेक्टर-एसपी और घरवालों से की बात

अमूमन ऐसे मामलों में यह देखा जाता है कि मुख्यमंत्री फोन पर जानकारी लेने और हरसंभव कोशिश करने का रटा-रटाया जवाब-सोशल मीडिया पोस्ट कर अपनी जिम्मेदारी खत्म कर लेते हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं था। सीएम भूपेश बघेल को जब यह खबर मिली, तब वे हरियाणा राज्यसभा चुनाव के ऑब्जर्वर के रूप में चंडीगढ़ में थे। उन्होंने अधिकारियों को जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए। इसके बाद अगले दिन सुबह सीधे वीडियो कॉल पर कलेक्टर-एसपी से जुड़ गए। घरवालों से भी बात की और भरोसा दिलाया कि हरसंभव कोशिश करेंगे। इसके बाद वे लगातार वीडियो कॉल पर मौके पर चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन को देखते रहे। राहुल की दादी को भरोसा दिलाया कि नाती को निकाल लेंगे। जब राहुल हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गया, तब भी दादी से बात कर बताया कि जो कहा, वो कर दिखाया। सीएम ने ट्वीट किया, 'रास्ते अगर चट्टानी थे, तो इरादे हमारे फौलादी थे।' सीएम ने एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, एसईसीएल, छत्तीसगढ़ राज्य पुलिस, भारतीय सेना, चिकित्सा दल और प्रशासनिक अधिकारियों समेत बचाव दल में शामिल हर टीम और हर व्यक्ति को शुभकामनाएं दी है।

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