Matar Tihar Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ की संस्कृति का आईना है मातर तिहार, यादव समाज के उत्सव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं अन्य समाजों के लोग...

Update: 2023-11-14 12:36 GMT

Matar Tihar Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ की संस्कृति का अपना अनोखा ही रंग है। यहां दिवाली और गोवर्धन पूजा के बाद जिस उत्सव को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है वह है 'मातर तिहार '। मातर तिहार में मातृ शक्ति की अराधना की जाती है। वेदों में कहा गया है 'गावो विश्वस्य मातरः... अर्थात् गाय सम्पूर्ण विश्व की माता है। मातर उत्सव के दिन यादव समाज विशेष रूप से गौ माता की पूजा करता है। गौ माता को जो भोग लगाया जाता है वही प्रसाद के रूप में समाज के लोगों और आगंतुकों में बांटा जाता है। राउत लोग विशेष वेशभूषा धारण कर नृत्य करते हैं।दोहा पाठ होता है। लाठियां भांज कर करतब दिखाए जाते हैं। मड़ई मेले का भी आयोजन होता है। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ी रंग में रंगा उत्सवी माहौल 'मातर तिहार' के अवसर पर देखने को मिलता है। आइए जानते हैं इस तिहार यानी त्योहार से जुड़ी खास परंपराएं।

मातृशक्ति की उपासना का त्योहार है 'मातर'

'मातर ' मातृ शक्ति की उपासना का पर्व है। मातर का अर्थ है मा+तर, अर्थात माता की शक्ति को जगाना, उसकी महत्ता को स्वीकारना और सम्मान देना। छत्तीसगढ़ में मातर तिहार के अवसर पर गौमाता की पूजा की जाती है। मुख्यतः यादव समाज, गौपालक इस दिन गौमाता के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं।

खुड़हर देव की होती है स्थापना

मातर लोक उत्सव की शुरुआत गोवर्धन पूजा के दिन 'खुड़हर देव' की स्थापना के साथ होती है जिन्हें नक्काशीदार लकड़ी से बनाया जाता है। मातर के मौके पर राउत 'मड़ई' लेकर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते हैं। यह मड़ई बांस से बनाई जाती है जिसे खूब सजाया जाता है। समाज का विश्वास है कि मड़ई में आदिशक्ति का वास होता है जो गांववासियों की तमाम दुख-तकलीफ़ों से रक्षा करती हैं। गांव-गांव में मड़ई मेलों की शुरुआत इसके बाद ही होती है।

गायों को बांधी जाती है सोहाई

देवताओं के पूजन के बाद गांवों में गौधन को एक स्थान पर एकत्रित किया जाता है। उन्हें भी सजाया जाता है। उनके पैरों में सोहाई बांधी जाती है। इस मौके पर एक और अनोखी परंपरा है। बड़े-बड़े कुम्हड़ों को गायों के पैरों के बीच धकेल दिया जाता है जो उनके पैरों की ठोकर से फट जाते हैं। इसी कुम्हड़े से बाद में सब्जी बनाई जाती है। इस मौके पर गौमाता को खिचड़ी खिलाई जाती है और उनके बाद समाज और आगंतुकों को खिचड़ी के साथ कुम्हड़े की सब्जी परोसी जाती है। साथ में चावल की खीर, चौसेला आदि भी परोसा जाता है।

राउत करते हैं नृत्य,पढ़ते हैं दोहे

इस अवसर पर राउत बंधुओं का पहनावा देखने लायक होता है। रंगबिरंगे परिधानों में सजे राउत बंधू सिर पर साफा बांधते हैं। मोरपंख और कौड़ी से श्रृंगार करते हैं। गढ़वा बाजा की धुन पर कबीर -रहीम के दोहों को स्थानीय बोली में गाते हैं। जिससे उत्साहित करने वाल उत्सवी माहौल बनता है।

दिखाए जाते हैं लाठी के करतब

मातर का खास आकर्षण है लाठियों के करतब। राउत तेंदू की सजी हुई लाठी भांज कर अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हैं। जिसे 'अंखरा विद्या' कहा जाता है। इसके अलावा तलवारबाजी और आग से जुड़े करतब दिखाने की भी परंपरा है जिसमें युवा और उम्रदराज भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इस तरह अनोखे अंदाज़ में छत्तीसगढ़ का अनोखा मातर तिहार मनाया जाता है जिसमें यादव समाज के अलावा अन्य समाजों के लोग भी भाग लेते हैं और मड़ई मेलों का आनंद उठाते हैं।

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