Chhattisgarh Private Schools: किधर हैं छत्तीसगढ़ के कलेक्टर? सिकरेट्री के लेटर के बाद भी प्रायवेट स्कूलों की वसूली पर कोई लगाम नहीं, जबलपुर में 11 स्कूल संचालक गिरफ्तार

Chhattisgarh Private Schools: स्कूल शिक्षा विभाग के सिकरेट्री सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने छत्तीसगढ़ के सभी कलेक्टरों को आरटीई में दाखिले में बड़ा खेला और मोटी फीस वसूली पर कार्रवाई करने पत्र लिखा था। उन्होंने धारा तक बताया था कि इसके तहत कार्रवाई कर सकते हैं। सिकरेट्री याने सरकार होता है। सरकार द्वारा कार्रवाई के लिए फ्री हैंड देने के बाद भी किसी भी प्रायवेट स्कूलों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ है। जबकि, स्कूलों की मनमानी से छत्तीसगढ़ में आरटीई में दाखिला पाए 25 हजार से अधिक छात्र स्कूल छोड़ चुके हैं।

Update: 2024-05-29 08:39 GMT

Chhattisgarh Private Schools: रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रायवेट स्कूलों द्वारा मोटी फीस और किताब, यूनिफार्म के नाम पर तगड़ा कमीशन वसूलने के बाद भी सीबीएसई 2024 के नतीजे खराब होने को एनपीजी न्यूज ने प्रमुखता से उठाया था। इसके बाद सरकार हरकत में आई। स्कूल शिक्षा विभाग के सिकरेट्री सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी ने सभी कलेक्टरों को पिछले हफ्ता पत्र लिखकर प्रायवेट स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने कहा था। परदेशी ने अपने पत्र में नियमों का हवाला दिया था कि इन धाराओं में कलेक्टर प्रायवेट स्कूलों के संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करें। उन्होंने बिलासपुर हाई कोर्ट में दाखिल पीआईएल और उस पर आए फैसले का भी उद्धरण देते हुए बताया कि आप कार्रवाई करें। राइट टू एडमिशन में स्कूलों द्वारा परेशान होकर बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने स्कूल छोड़ दिया है। उसका पता लगाकर कार्रवाई करें। मगर छत्तीसगढ़ के 33 में से एक भी जिले के कलेक्टर नहीं जागे। न ही अभी तक किसी कलेक्टर ने प्रायवेट स्कूलों की बैठक बुलाई। एक्शन की बात तो दूर।

साहसिक कार्रवाई

मध्यप्रदेश के जबलपुर के कलेक्टर दीपक सक्सेना ने प्रायवेट स्कूलों पर शिकंजा कसते हुए न केवल 81 करोड़ की रिकवरी करवा कर अभिभावकों को सौंप दिया है बल्कि व्यापक अनियमितता बरतने वाले 11 बड़े स्कूलों के संचालकों को गिरफ्तार कर लिया गया है। कलेक्टर ने मीडिया को बताया कि जबलपुर में 1000 से अधिक प्रायवेट स्कूल हैं। इनमेंं से सिर्फ 50 की जांच की गई है। बाकी स्कूलों की भी जांच की जा रही। कलेक्टर की कार्रवाई से मध्यप्रदेश के शिक्षा माफियाओं में हड़कंप मच गया है।

प्रॉफिट मेकिंग संस्था नहीं

प्रायवेट स्कूलों की मनमानी और अनाप-शनाप वसूली पर दाखिल पीआईएल पर सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाई कोर्ट ने कहा था कि प्रायवेट स्कूल प्रॉफिट कमाने वाली संस्था नहीं हैं। सेवा इनका पहला दायित्व होना चाहिए। गरीब विद्यार्थियों से वसूली बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।

कार्रवाई कलेक्टर ही

सरकार का काम होता है पॉलिसी बनाना, आदेश देना, उसके क्रियान्वयन का काम जिले के कलेक्टरों का होता है। जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ के सारे प्रायवेट स्कूल वसूली में लगे हैं। मगर आज तक किसी के खिलाफ भी कार्रवाई नहीं हुई। खासकर, पॉश कल्चर वाले स्कूल, जिनमें बच्चों को पढ़ाकर लोग गौरवान्वित महसूस करते हैं, उन स्कूलों में आरटीई का बुरा हाल है। सिस्टम के प्रेशर में प्रायवेट स्कूल पहले साल तो दाखिला दे देते हैं मगर बाद में गरीब विद्यार्थियों के खिलाफ ऐसा माहौल क्रियेट कर देते हैं कि बच्चा स्कूल छोड़कर चला जाता है।

यूनिफार्म, जूते की बजाए पैसा

आरटीई के तहत दाखिला लिए बच्चों के एवज में सरकार प्रायवेट स्कूलों को पैसे देती है। हाल ही में 184 करोड़ दिया गया है, वह इसी का हिस्सा था। इस पैसे से स्कूलों को यूनिफार्म, जूते, किताब, कॉपी खरीदकर देना है। मगर स्कूल वाले खरीदने की बजाए कैश दे देते हैं। कैश इसलिए देते हैं कि सरकार का अपना रेट होता है और बड़े स्कूलों के जूता ढाई-तीन हजार से नीचे नहीं आते। इसलिए, स्कूल वाले होशियारी करके पैसे दे देते हैं। और फिर उन्हें कहा जाता है इस ब्रांड का ही जूता पहनकर आना है। गरीब विद्यार्थियों की वह स्थिति नहीं होती कि वह तीन हजार का जूता और महंगे यूनिफार्म खरीद सकें। लिहाजा, वह स्कूल छोड़ देता है।

सरकार का शिकंजा

प्रायवेट स्कूलों की मनमानी और प्रताड़ना के बाद छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं मगर आज तक कभी इस पर न किसी ने संज्ञान लिया और न ही कोई कार्रवाई हुई। आम आदमी लूटता और परेशान होता रहा, आरटीई अधिनियम का माखौल उडाया जाता रहा। मगर अब छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार इस पर गंभीर हुई है। कलेक्टरों को इस पर कार्रवाई करने पत्र लिखा गया है।

स्कूल शिक्षा में ताकतवर लॉबी

छत्तीसगढ़ में प्रायवेट स्कूलों की लॉबी इतनी तगड़ी है कि सरकार या उसका कोई नुमाइंदा उधर देखने का साहस नहीं कर पाया। छत्तीसगढ़ में 50 के करीब पॉश प्रायवेट स्कूल होंगे। इन स्कूलों में बड़े लोगों के बच्चे पढ़ते हैं या फिर उनकी उपर में पहुंच ऐसी है कि सिस्टम हाथ खड़ा कर देता है।

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