CG NEWS: स्कूल शिक्षा विभाग का अनोखा अंदाज: पढ़ाई कम परीक्षा ज्यादा, तिमाही की परीक्षा का मिला नहीं रिजल्ट, बेसलाइन परीक्षा का आ गया अल्टीमेटम!
रायपुर। प्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग अब प्रयोगशाला बन गया है। यह कहे तो कहीं से गलत नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि इसका नुकसान किसी एक पक्ष को हो रहा है बल्कि पूरी पढ़ाई व्यवस्था रसातल में चली जाएगी यदि इसे रोका नहीं गया तो...दरअसल जहां पर रोक लगानी चाहिए वहां पर किसी का ध्यान ही नहीं है । अब से कुछ दिनों पहले ही NPG के खुलासे के बाद यह बात सामने आई थी कि माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा भेजा गया पर्चा पहले से ही सोशल मीडिया में वायरल है जिसके बाद पूरी प्रक्रिया पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया था और विभाग को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ क्योंकि जो प्रश्न पत्र ऑनलाइन भेजा गया था उसे अधिकांश स्कूलों ने प्रिंटआउट करा लिया था ऐसे में स्कूलों के करोड़ों रुपए पानी में चले गए और बाद में विभाग ने पत्र जारी करके उस प्रश्न पत्र का उपयोग न करने की बात कह कर इतिश्री कर ली, न तो किसी की जिम्मेदारी तय हुई और न ही किसी पर कार्रवाई की गाज गिरी।
इसके बाद आनन-फानन में स्कूल के शिक्षकों से ही प्रश्न पत्र तैयार करवा कर तिमाही परीक्षा ली गई. 10 तारीख को खत्म हुई परीक्षा के रिजल्ट भी अभी आए नहीं हैं कि एक और बेसलाइन परीक्षा का आयोजन कर दिया गया है सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर अब इस नई परीक्षा से ऐसा क्या हासिल कर लिया जाएगा और पढ़ाई कम परीक्षा ज्यादा की यह नीति कितनी कारगर है । बीते कुछ दिनों से इस प्रकार के प्रयोग ने जहां शिक्षकों को परेशान कर रखा है वही पालक भी हैरान परेशान हैं क्योंकि स्कूलों में पढ़ाई कम हो रही है और प्रयोग ज्यादा... 19 और 20 अक्टूबर को यह परीक्षा रखी गई है और उसके बाद इसका मूल्यांकन जिला शिक्षा अधिकारी अन्य संकुल के शिक्षकों से करा कर पत्रक प्रस्तुत करेंगे लेकिन बड़ा सवाल यह है कि उपचारात्मक शिक्षा के नाम पर प्रयोग होने के बजाय क्या यह बेहतर नहीं होता की स्कूलों में पढ़ाई व्यवस्था को पुख्ता बनाया जाए और नियमित पढ़ाई पर ही पूरा जोर लगाया जाता यही नहीं जिन प्रक्रियाओं में विभाग विभाग फेल हो रहा है उसकी जिम्मेदारी भी तय की जाए और कार्रवाई भी की जाए क्योंकि पेपर लीक जैसे बड़े मामले में जिस प्रकार की खानापूर्ति की गई और एक एफ आई आर तक दर्ज नहीं कराई गई वह अपने आप में आश्चर्यचकित कर देने वाला मामला है कि आखिरकार इस मामले को दबाया क्यों गया । एक छोटे से मामले में चपरासी से लेकर प्राचार्य तक की भूमिका तय करने वाले और उन्हें तत्काल करने वाले निलंबित करने वाले अधिकारी और सरकार ने आखिर इतने बड़े मामले में जिसमें राज्य की करोड़ों रुपए की पूंजी डूब गई ध्यान क्यों नहीं दिया..... सवाल वाजिब है और गंभीर भी क्योंकि जब तक ऊपर में कसावट नहीं होगी नीचे वालों से उम्मीद करना बेमानी है