Rashtrapati Bhavan: 340 कमरे और 17 साल.. पहले वायसराय हाउस के नाम से थी पहचान, निर्माण के लिए बिछाई गई थी रेल लाइन, जानिए राष्ट्रपति भवन में और क्या-क्या है खास..

भारत का राष्ट्रपति भवन दुनिया की भव्य इमारतों में शामिल है और वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। ये 330 एकड़ में बना हुआ है। 4 मंजिला राष्ट्रपति भवन में 340 कमरे हैं और इसे बनाने में लगभग 17 साल का समय लग गया। आइए जानते हैं कि इस भव्य इमारत की क्या-क्या खासियतें हैं?

Update: 2024-08-01 11:32 GMT

रायपुर, एनपीजी न्यूज। भारत का राष्ट्रपति भवन दुनिया की भव्य इमारतों में शामिल है और वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। ये 330 एकड़ में बना हुआ है। साल 1911 के दिल्ली दरबार में जब ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली लाने की घोषणा की गई, तब वायसराय के लिए नए घर की तलाश शुरू हुई।

ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस को नई राजधानी का खाका तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया था। वे दिल्ली की टाउन प्लानिंग कमिटी के सदस्य भी थे।

पहले वायसराय हाउस के नाम से जाना जाता था राष्ट्रपति भवन

निर्माण के समय इसे वायसराय हाउस कहा जाता था। 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, तो इसका नाम बदलकर गवर्नमेंट हाउस कर दिया गया। अंत में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल के दौरान इसका नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन कर दिया गया।


इसे बनने में लगभग 17 साल का समय लगा

4 मंजिला राष्ट्रपति भवन में 340 कमरे हैं और इसे बनाने में लगभग 17 साल का समय लग गया। इन सभी कमरों में हिमालय बेडरूम सबसे शानदार लग्जरी बेडरूम कहा जाता है। इसका निर्माण एडविन लेंसिएर ने किया था। इसमें 9 टेनिस कोर्ट, एक पोलो ग्राउंड, गोल्फ ग्राउंड्स और एक बेहद खूबसूरत मुगल गार्डन है। इसके अंदर ही एक क्रिकेट ग्राउंड भी बनाया गया है। भवन के निर्माण में 17 साल लग गए।

राष्ट्रपति भवन में हैं 340 कमरे

26 जनवरी 1950 को इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्थायी संस्था के रूप में बदल दिया गया। राष्ट्रपति भवन के निर्माण में लगभग 45 लाख ईंटें लगी हैं। इसमें कर्मचारियों का भी आवास है। 


राष्ट्रपति भवन के अंदर है एक स्कूल भी

राष्ट्रपति भवन के अंदर एक स्कूल भी है। इसे शुरुआत में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सर्वोदय विद्यालय कहा जाता था। इसका निर्माण 1946 में हुआ था, तो वहीं साल 1962 में केंद्र सरकार ने इस स्कूल को दिल्ली सरकार के अधीन कर दिया। साल 2019 में दिल्ली सरकार ने इसे केंद्रीय विद्यालय में तब्दील कर दिया, तब से इसे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विद्यालय कहा जाने लगा। राष्ट्रपति भवन के अंदर बने केंद्रीय विद्यालय में सामान्य केंद्रीय विद्यालय की तरह ही कोई भी एडमिशन के लिए अप्लाई कर सकता है।

रायसीना पहाड़ी पर बना है राष्ट्रपति भवन

एडविन लुटियंस और उनकी टीम ने पहले पूरी दिल्ली का मुआयना किया। उन्होंने पाया कि अगर दिल्ली के उत्तरी इलाके में वायसराय हाउस बनाया जाए, तो वहां हमेशा बाढ़ का खतरा रहेगा, क्योंकि वो इलाका यमुना से सटा था। यही वजह है कि उन्होंने दक्षिणी हिस्से में रायसीना हिल्स वाले इलाके पर वायसराय हाउस बनाने का मन बनाया था। ये इलाका ऊंचाई पर था, इसलिए भविष्य में ड्रेनेज या सीवर वगैरह की परेशानी का खतरा नहीं था।

जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह ने गिफ्ट की थी जमीन

जानकारी के मुताबिक, रायसीना हिल्स की जिस जमीन को वायसराय हाउस के लिए चुना गया, तब वह जयपुर के महाराजा के हिस्से में आती थी। जब वायसराय हाउस बनकर तैयार हुआ, तो सबसे आगे के हिस्से में खासतौर पर एक स्तंभ लगाया गया, जिसे जयपुर स्तंभ कहते हैं। इसे जयपुर के महाराजा सवाई माधो सिंह ने गिफ्ट किया था।

राष्ट्रपति भवन के निर्माण के लिए बिछाई गई रेल लाइन

राष्ट्रपति भवन यानी उस समय के वायसराय हाउस के लिए सबसे पहले रायसीना हिल्स को विस्फोटक के जरिए तोड़ा गया। इसके बाद जमीन समतल की गई। यहां तक भवन निर्माण सामग्री पहुंचाने के लिए एक खास रेलवे लाइन बिछाई गई। तत्कालीन गवर्नर जनरल और वायसराय लॉर्ड हार्डिंग चाहते थे कि इमारत 4 साल में बन जाए, लेकिन इसे बनाने में 17 साल से अधिक का समय लगा। साल 1928 के आखिर में ‘वायसराय हाउस’ बनकर तैयार हुआ। गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन इसमें रहने वाले पहले वायसराय बने।

भवन निर्माण में लगे थे करीब 23 हजार मजदूर

राष्ट्रपति भवन की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक यह करीब 2 लाख स्क्वायर फीट में फैला है। भवन के निर्माण में कुल 23 हजार मजदूर लगे थे, जिसमें से 3000 तो अकेले पत्थर काटने वाले थे।

सेंट्रल डोम है राष्ट्रपति भवन की बड़ी पहचान

राष्ट्रपति भवन की सबसे बड़ी पहचान सेंट्रल डोम है। ये सांची स्तूप की तरह दिखता है। ये गुंबद फोर कोर्ट के 55 फुट ऊपर भवन पर विराजमान है। राष्ट्रपति भवन में खंभों में घंटियों का डिजाइन बना हुआ है। इन्हें डेली ऑर्डर भी कहा जाता है। अंग्रेज ऐसा मानते थे कि अगर घंटियां स्थिर रहें, तो सत्ता स्थिर और लंबे वक्त तक चलेगी, इसलिए बड़ी संख्या में इन्हें यहां बनाया गया था।

मुगल गार्डन देखने हर साल आते हैं लाखों लोग

राष्ट्रपति भवन का मुगल गार्डन 15 एकड़ में फैला है। यहां इतने खूबसूरत फूल हैं, जो हमेशा से लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं। मुगल गार्डन में ब्रिटिश और इस्लामिक दोनों तरह की झलक मिलती है। इस गार्डन को बनाने के लिए एडविन लुटियंस ने जन्नत के बाग, कश्मीर के मुगल गार्डन के अलावा भारत और प्राचीन इरान के मध्यकाल के दौरान बनाए गए राजाओं के बागीचों का भी अध्ययन किया था। 1928 में यहां पेड़ लगाना शुरू किया गया। एक साल तक यहां पेड़ लगाने का काम शुरू हुआ.

मुगल गार्डन के फूलों के नाम महान लोगों के नाम पर

यहां के फूलों के नाम मदर टेरेसा, राजाराम मोहन राय, अब्राहम लिंकन, जॉन एफ कैनेडी, क्वीन ऐलिजाबेथ, जवाहर लाल नेहरू के अलावा महाभारत के अर्जुन, भीम समेत अन्य महान लोगों के नाम से जाने जाते हैं।

राष्ट्रपति भवन बनने में लगी थी इतनी लागत

राष्ट्रपति भवन बनाने में उस वक्त करीब 14 मिलियन रुपये की अनुमानित लागत आई थी। अगर आज के हिसाब से इसकी कीमत का आकलन किया जाए, तो यह लगभग 2.65 बिलियन होगी।

मार्बल हॉल में है चांदी का सिंहासन

मार्बल हॉल में किंग जॉर्ज और क्वीन मैरी की फोटो लगी हुई है। यहां पर एक चांदी का सिंहासन भी लगा हुआ है, जिसके पीछे की दीवारों पर पुराने वायसराय और गवर्नर की तस्वीरें लगी हुई हैं।

स्टेट डायनिंग हॉल में 104 लोगों के बैठने की व्यवस्था

राष्ट्रपति भवन में स्थित इस डाइनिंग हॉल में एक साथ 104 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। इसे बैंक्विट हॉल भी कहा जाता है। इस कमरे में भारत के सभी पूर्व राष्ट्रपतियों की तस्वीरें लगाई गई हैं।

एडविन लुटियंस ने राष्ट्रपति भवन की डिजाइन प्राचीन यूरोपीय शैली के मुताबिक तैयार की थी। डिजाइन में भारतीय वास्तु-शिल्प को भी शामिल किया गया। राष्ट्रपति भवन की मेन बिल्डिंग का निर्माण हारून-अल-रशीद ने किया, जबकि अगला हिस्सा सुजान सिंह और उनके बेटे शोभा सिंह ने किया, जो उस दौर में नामी कॉन्ट्रैक्टर थे। प्रेसिडेंट हाउस के ठीक सामने नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक भी बनाया गया। इसका निर्माण नामी आर्किटेक्ट हरबर्ट बेकर ने किया। 

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