History of umbrella: 4 हजार साल पुराना है छाते का इतिहास, भारत में भी राजा-रानी के सिर पर होता था छत्र, कभी फैशन तो कभी सम्मान का प्रतीक...

बारिश के मौसम में आपने अक्सर छाते का इस्तेमाल किया होगा, कड़ी धूप से भी छाते ने आपको कई बार बचाया होगा.. लेकिन क्या आपको पता है कि गर्मी और बारिश से बचाने वाले छाते का आखिर क्या इतिहास है? आज हम आपको छाते का इतिहास बताएंगे...

Update: 2024-07-13 13:26 GMT

रायपुर, एनपीजी न्यूज। बारिश के मौसम में आपने अक्सर छाते का इस्तेमाल किया होगा, कड़ी धूप से भी छाते ने आपको कई बार बचाया होगा.. लेकिन क्या आपको पता है कि गर्मी और बारिश से बचाने वाले छाते का आखिर क्या इतिहास है? आज हम आपको छाते के बारे में पूरी जानकारी देंगे कि छाता कबसे बनना शुरू हुआ, समय-समय पर इसका इस्तेमाल किन कारणों से होने लगा और आज जो छाते का स्वरूप है, वो कब आया?

करीब 4 हजार साल पुराना है छाते का इतिहास

छाते का इतिहास करीब 4 हजार साल पुराना है। एक वक्त ऐसा आया, जब छाते का इस्तेमाल केवल महिलाएं ही करती थीं। छाते का सबसे पहले इस्तेमाल मिस्र, ग्रीस, चीन में धूप से बचने के लिए लोगों ने करना शुरू किया। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, यूरोप में सबसे पहले छाते का इस्तेमाल यूनानियों ने किया था। वहीं बारिश से बचने के लिए छाते का सबसे पहले इस्तेमाल रोम में किया गया था।


भारत में राजाओं और रानियों के सिर पर होता था छाता

भारत में पुराने जमाने पर आपने अक्सर राजा-रानियों के सिर पर छत्र लगा हुआ देखा होगा। वे जब भी बाहर निकलते थे, तो दास-दासियां हाथ में छाता लिए रहते थे, ताकि उन्हें गर्मी या बारिश से बचाया जा सके। इसके अलावा छत्र सम्मान का प्रतीक भी माना जाता था। 

छाते को अंग्रेजी में अंब्रेला कहते हैं, जो अंब्रा शब्द से बना है

छाते को अंग्रेजी में अंब्रेला कहा जाता है। ये लैटिन भाषा के शब्द अंब्रा से बना है, जिसका अर्थ छाया होता है। दुनियाभर के सभी देशों में लोग छाते का इस्तेमाल करते हैं। मिस्र, ग्रीस और चीन की प्राचीन कला और कलाकृतियों में छतरियों के सबूत मिलते हैं। बारिश के पानी से बचने के लिए छातों का इस्तेमाल सबसे पहले रोम निवासियों ने किया था।


कभी केवल महिलाओं की चीज माना जाता था छाता

मध्य युग में यूरोप में छातों का इस्तेमाल बंद हो गया था, लेकिन 16वीं शताब्दी में इटली में एक बार फिर से इसका प्रचलन शुरू हो गया। कई राजाओं और संभ्रांत लोगों के शासन और सम्मान का भी इसे प्रतीक माने जाना लगा। धीरे-धीरे छाते का प्रचलन बढ़ने लगा। 17वीं शताब्दी में फ्रांस में इसका प्रचलन बढ़ गया। वहीं 18वीं शताब्दी में ये पूरे यूरोप में फैल गया, हालांकि उस दौरान केवल महिलाएं ही छाते का इस्तेमाल करती थीं। लोग इसे फैशन के तौर पर भी देखने लगे थे। 1850 के दौरान छातों को नया लुक देना शुरू हुआ। बाद में धीरे-धीरे महिला और पुरुष दोनों छाते का इस्तेमाल करने लगे। 


अंग्रेज व्यापारी ने छाते को बनाया लोकप्रिय

छातों को प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय जोनास हेनवे नाम के अंग्रेज व्यापारी को जाता है। वो एक अमीर व्यापारी था। इन्होंने साल 1750 में एक अभियान शुरू किया था। चाहे बारिश हो या धूप.. वे लंदन की सड़कों पर अपने छाते के साथ ही घूमते थे। शुरुआत में लोगों ने उनका मजाक बनाया, लेकिन धीरे-धीरे लोगों ने भी छाते को अपना लिया। इंग्लैंड में छातों का इस्तेमाल सबसे पहले जॉन हेरवे ने किया था। यहां तक कि अंग्रेज अफसर युद्ध में भी छातों का यूज करते थे। ड्यूक ऑफ वेलिंगटन तो छातों में तलवार छिपाकर रखते थे। लंदन में तो सज्जन की पहचान ही हाथ में छाता होता है। 

लंदन में साल 1830 में खोली गई थी छातों की दुकान

छाता फैशन के लिए भी लगाया जाता है। महारानी विक्टोरिया ने छातों में रंगीन रेशमी जालीदार कपड़े भी लगाए गए थे। लंदन में छातों की सबसे पहली दुकान साल 1830 में खोली गई थी और यह अभी भी लंदन में स्थित है। 1850 के दौरान छातों को नया लुक दिया जाने लगा। पहले पुरुषों के लिए सिर्फ काले रंग का छाता बनाया जाता था, लेकिन अब महिला-पुरुष सभी के लिए रंग-बिरंगे छाते बनाए जाने लगे हैं।

एशिया में 3000 साल पहले से छातों का इस्तेमाल

एशियाई देशों में 3000 साल पहले से छातों का इस्तेमाल होता आया है। ऐतिहासिक तस्वीरों में महाराजाओं के सिर पर छाते तानकर चलते अनुचर नजर आते हैं। कहा जाता है कि किसी जमाने में छाता शाही सम्मान का प्रतीक भी माना जाता था। मिस्र, यूनान, चीन के साथ ही भारत की प्राचीन कलाकृतियों में छाते की छवि ऐतिहासिक तस्वीरों में दिखाई देती है। भारत में जहां छतरी आम आदमी की जिंदगी का हिस्सा है, तो वहीं फिल्मों में भी छातों ने अपनी पूरी जगह बनाई है। ग्वालियर के सिंधिया घराने की बात हो, तो राजमहल के एक हिस्से में समाधि स्थल है, जहां छतरियों के नीचे सिंधिया राजवंश के दिवंगत सदस्यों की समाधियां हैं।

काला छाता एवरग्रीन

भले ही रंग-बिरंगी छतरियां मार्केट में आ गई हैं, लेकिन काले छाते का क्रेज कम नहीं हुआ है। सबसे ज्यादा बिक्री काले छाते की ही होती है। दरअसल काले रंग का छाता अल्ट्रा वॉयलेट किरणों को हमारी त्वचा तक पहुंचने नहीं देता और अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से 99 फीसदी तक सुरक्षा देता है। इसके अलावा यह छाता अंदर से सिल्वर रंग का बनाया जाता है, जिससे गर्म किरणें वापस छाते से बाहर चली जाती हैं। आज रेनकोट भले प्रचलन में हैं, लेकिन छाते की डिमांड पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है।

चीन में बना सबसे बड़ा छाता

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 23 मीटर व्यास और 14.4 मीटर लंबाई वाले छाते का नाम दर्ज है। ये दुनिया का सबसे बड़ा छाता है, जिसे चीन की एक कंपनी ने बनाया है। वहीं जापानी आईटी कंपनी ने डोनब्रेला नाम का छाता तैयार किया है। इसे हाथ से पकड़ने की जरूरत नहीं। यह अनोखा छाता एक एप से नियंत्रित होता है। इतना ही नहीं इसमें कई तरह के फंक्शन भी हैं।

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