छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को स्मृद्ध करने भूपेश सरकार निभा रही अहम भूमिका...

Update: 2023-06-12 08:54 GMT

रायपुर 12 जून 2023। तुरतुरिया को लवकुश की जन्मभूमि के साथ ही इस क्षेत्र को प्रभु श्रीराम का ननिहाल के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही प्रभु श्रीराम ने वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया। जिसमें से 51 स्थल ऐसे हैं, जहां श्री राम ने भ्रमण के दौरान रुककर कुछ समय बिताया था। छत्तीसगढ़ सरकार ने राम वनगमन स्थलों में पर्यटन की दृष्टि से बलौदाबाजार जिले के माता गढ़ तुरतुरिया को शामिल किया गया है। प्रस्तावित स्थलों का वन विभाग के अनुसार वहां पहुंच मार्ग का उन्नयन, पर्यटक सुविधा केंद्र, वैदिक विलेज, पगोड़ा, मूलभूत सुविधा, वाटर फ्रंट डेवलपमेंट, विद्युतीकरण सहित अन्य कार्य कराए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में रामायणकालीन संस्कृति की झलक आज भी देखने को मिलती है। जिससे यह साबित तो होता है कि भगवान श्रीराम के अलावा माता सीता और लव-कुश का संबंध भी इसी प्रदेश से था। घने जंगलों के बीच स्थित माता गढ़ तुरतुरिया में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम इसी बात की याद दिलाता है कि रामायण काल में छत्तीसगढ़ का कितना महत्व रहा होगा। जनश्रुतियों के अनुसार त्रेतायुग में यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था और उन्होंने सीताजी को भगवान राम द्वारा त्याग देने पर आश्रय दिया था। तुरतुरिया छत्तीसगढ़ के सिरपुर-कसडोल मार्ग पर ठाकुरदिया नाम के स्थान से सात किलोमीटर की दूरी पर घने जंगल और पहाड़ों पर स्थित है। यह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 113 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसी क्षेत्र में महादेव शिवलिंग भी मिलते हैं, जो 8 वीं शताब्दी के हैं। यहीं पर माता सीता और लव-कुश की एक प्रतिमा भी नजर आती है, जो 13-14 वीं शताब्दी की बताई जाती है।


इसलिए तुरतुरिया पड़ा नाम

इस स्थल का नाम तुरतुरिया पडने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानो के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमे से उठने वाले बुलबुलो के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है। इसका जलप्रवाह एक लम्बी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक जलकुंड में गिरता है जिसका निर्माण प्राचीन ईटों से हुआ है। जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर एक गाय का मोख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दृष्टिगोचर होता है। गोमुख के दोनो ओर दो प्राचीन प्रस्तर की प्रतिमाए स्थापित है जो कि विष्णु जी की है इनमे से एक प्रतिमा खडी हुई स्थिति में है तथा दूसरी प्रतिमा में विष्णुजी को शेषनाग पर बैठे हुए दिखाया गया है। कुंड के समीप ही दो वीरो की प्राचीन पाषाण प्रतिमाए बनी हुई है जिनमें क्रमश: एक वीर एक सिंह को तलवार से मारते हुए प्रदर्शित किया गया है। दूसरी प्रतिमा में एक अन्य वीर को एक जानवर की गर्दन मरोडते हुए दिखाया गया है।


यहीं हुआ लव-कुश का जन्म

तुरतुरिया का यह क्षेत्र कई मायनों में खास है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसी तुरतुरिया धाम में माता सीता ने अपने बेटे लव और कुश को जन्म दिया था। इसका प्रमाण कई ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता जब गर्भ से थी तब श्री राम के कहने पर लक्ष्मण ने उन्हें वाल्मीकि के आश्रम में छोड़ दिया था। जिसके पश्चात माना जाता है कि माता सीता ने लव और कुश नाम के दो बालकों को जन्म दिया। जन्म के बाद दोनों का लालन-पालन, शिक्षा और दीक्षा वही तुरतुरिया धाम में किया गया और इन सभी में मुख्य हाथ वाल्मीकि का था। माता कौशल्या का जन्म स्थली के साथ साथ लव और कुश के जन्म स्थली होने के कारण और महर्षि वाल्मीकि के साधना स्थली होने के कारण इस पवित्र तुरतुरिया धाम की महत्व और भी बढ़ जाती है।

कभी नहीं सूखता गोमुख का जल

ऐसा माना जाता है कि माता सीता जब गर्भ से थी तब वह अपना नाम बदलकर इस तुरतुरिया घाट में रहती थी ताकि किसी को उनके यहां होने का पता ना चले। तुरतुरिया धाम में प्रवेश करते ही एक गोमुख दिखाई पड़ता है, गोमुख वैसा ही है जैसा कि दिल्ली के स्वामीनारायण अक्षरधाम का गोमुख। इस गोमुख की खास बात यह है कि इस गोमुख से बिना किसी विद्युत और बिना किसी यंत्र के लगातार एक समान वेग से जल बहता रहता है। इस गोमुख का पानी कभी नहीं सूखता माना जाता है कि यह पानी पास के ही वररंगा पहाड़ी से अनवरत बहती रहती है। इस पहाड़ी से बहने वाली पानी को गोमुख बनाकर एक स्थान पर इकट्ठा किया जाता है।

1914 में खुदाई में मिली मूर्तियां

प्राचीन काल में इस इलाके में खुदाई कराई गई थी। 1914 में अंग्रेज कमिश्नर एचएम लोरी ने सर्वप्रथम इस जगह पर खुदाई कराई। लारी को जब इस क्षेत्र के इतिहास के बारे में पता चला तो उसे विश्वास हो गया था कि इस जगह की खुदाई कराने के पश्चात यहां पर पुरानी मूर्तियां अवश्य मिलेगी जिसके जरिए वे पुराने जमाने के रहन-सहन का पता लगा सके। जिसके पश्चात उन्होंने यहां पर खुदाई कराई। खुदाई कराने के पश्चात लारी का शक सही हो गया और खुदाई के दौरान अनेकों पुरातात्विक मूर्तियां मिली जिनमें से कुछ मूर्तियों को आज भी इस तुरतुरिया धाम के मंदिर में देखा जा सकता है। तुरतुरिया में काफी संख्या में शिवलिंग हैं। इसके अतिरिक्त प्राचीन पाषाण स्तंभ भी काफी मात्रा में बिखरे पडे है। जिनमे कलात्मक खुदाई किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ शिलालेख भी यहां स्थापित है। कुछ प्राचीन बुध्द की प्रतिमाए भी यहां स्थापित है। कुछ भग्न मंदिरो के अवशेष भी मिलते हैं।

तीन संप्रदायों की संस्कृति का गवाह

तुरतुरिया में बौध्द, वैष्णव तथा शैव धर्म से संबंधित मूर्तियो का पाया जाना भी इस तथ्य को बल देता है कि यहां कभी इन तीनो संप्रदायो की मिलीजुली संस्कृति रही होगी। ऎसा माना जाता है कि यहां बौध्द विहार थे जिनमे बौध्द भिक्षुणियो का निवास था। सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है कि यह स्थल कभी बौध्द संस्कृति का केन्द्र रहा होगा। यहां से प्राप्त शिलालेखो की लिपि से ऎसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओ का समय 8-9 वी शताब्दी है। आज भी यहां स्त्री पुजारिनो की नियुक्ति होती है जो कि एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। पूस के महीने में यहां तीन दिनों का मेला लगता है तथा बडी संख्या में श्रध्दालु यहां आते हैं। धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

अश्वमेध के साथ लवकुश की मूर्ति

खुदाई के दौरान सीता एवं लव-कुश की खड़ी शिला भी खुदाई में मिली थी। जिससे राम-सीता के यहां आने रहने के प्रमाण मिलते हैं। वाल्मीकि आश्रम में ही लव कुश की एक मूर्ति घोड़े को पकड़े खड़े रहने की है। ये मूर्ति यहां खोदाई के दौरान मिली है। मंदिर के पुजारी पंडित रामबालक दास के अनुसार लव-कुश जिस घोड़े को पकड़े हैं वह अश्वमेघ का घोड़ा है। इन मूर्तियों को ही भगवान राम एवं सीता के यहां प्रवास का प्रमाण माना जाता है।

करीब 14 साल यहीं रहीं माता सीता

वाल्मीकि आश्रम तुरतुरिया के पुजारी रामबालक दास का कहना है कि करीब 12 से 14 साल तक माता सीता यहां रही हैं। लव कुश के बड़े होने पर युद्घ होने के बाद वाल्मीकिजी से मिलकर अयोध्या में यज्ञ होने के बाद सम्मिलित हुईं। पांच अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास होना काफी खुशी की बात है, मैंने भी सुना है कि रामवनगमन पथ के तहत तुरतुरिया को पर्यटन में चुना गया है लेकिन अभी यहां कुछ बना नहीं है और न ही कुछ बिगड़ा है। आप जैसा देख रहे है वैसा ज्यो का त्यों है। तुरतुरिया को छत्तीसगढ़ सरकार ने राम वनगमन पथ के तहत पर्यटन में शामिल किया गया है। हर दिन यहां 200 से 300 पर्यटक पहुंचते हैं।

वर देती है 'बालमदेही' नदी

मंदिरों के आसपास एक विशाल नदी बहती है। इस नदी को बलमदेही नदी के रूप में जाना जाता है। ग्रामीणों के अनुसार यहां कोई कुंआरी कन्या यदि वर की कामना करती है तो उसे अच्छा वर शीघ्र ही मिल जाता है। इसकी इसी चमत्कारिक खासियत के कारण इसका नाम बालम यानी पति और देहि यानी देने वाला बलमदेही पड़ा।

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