Delhi High Court News: 'दहेज उत्पीड़न और दुष्कर्म के झूठे आरोप घोर क्रूरता' दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा- नहीं किया जा सकता इसे माफ
Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा है कि एक पत्नी द्वारा अपने पति के परिवार के सदस्यों के खिलाफ बलात्कार और दहेज उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाना अत्यधिक क्रूरता और तलाक का आधार है।
Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा है कि एक पत्नी द्वारा अपने पति के परिवार के सदस्यों के खिलाफ बलात्कार और दहेज उत्पीड़न के झूठे आरोप लगाना अत्यधिक क्रूरता और तलाक का आधार है। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी की ऐसी झूठी शिकायतें मानसिक क्रूरता के समान हैं और पति को इन आधारों पर तलाक लेने का अधिकार है।
अदालत ने कहा, ''इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि प्रतिवादी के परिवार के सदस्यों के खिलाफ न केवल दहेज उत्पीड़न बल्कि बलात्कार के गंभीर आरोप लगाये गये, जो झूठा पाया गया। यह अत्यधिक क्रूरता का कार्य है जिसके लिए कोई माफी नहीं हो सकती।''
विचाराधीन मामले में एक महिला ने मानसिक क्रूरता के आधार पर पति के पक्ष में तलाक मंजूर करने के पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की थी। उनकी 2012 में शादी हुई थी लेकिन वे 2014 से अलग रह रहे हैं। पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसके पति ने कभी भी उनकी शादी को मान्यता नहीं दी और दहेज उत्पीड़न के दावों के साथ-साथ पति के भाई पर बलात्कार का आरोप लगाया।
हालाँकि, अदालत ने पाया कि पति और उसके भाई को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था, और पत्नी ने एक माफी पत्र भी लिखा था जिसमें कहा गया था कि कोई उत्पीड़न नहीं हुआ था जैसा कि उसने पहले दावा किया था।
साथ ही, उसके इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं था कि शादी कभी सहवास के द्वारा पूर्ण नहीं हुई थी। अदालत ने कहा कि एक पति या पत्नी को दूसरे के साथ से वंचित करना क्रूरता का चरम कृत्य है और वैवाहिक रिश्ते की नींव सहवास और वैवाहिक संबंध है।
अदालत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि क्रूरता का मूल्यांकन उसकी प्रकृति की बजाय उसके प्रभाव के आधार पर किया जाना चाहिए। इसमें शामिल पक्षों की शारीरिक और मानसिक स्थिति, उनकी सामाजिक स्थिति और एक पति या पत्नी के आचरण के दूसरे पर प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिए। इस मामले में, जहां दंपति लगभग नौ वर्षों से अलग रह रहे थे, अदालत ने वैवाहिक संबंध को समाप्त करने को उचित ठहराते हुए इसे अत्यधिक मानसिक क्रूरता का उदाहरण माना।
वर्ष 1973 के 'श्रीमती रीता निझावन बनाम श्री बाल किशन निझावन' मामले का हवाला देते हुये अदालत ने कहा कि इसमें देखा गया है कि विवाह को कायम रखने के लिए सहवास एक आवश्यक तत्व है।
अदालत ने कहा, “यहां दोनों पक्ष बमुश्किल लगभग 13 महीने तक एक साथ रह पाए हैं और अपने वैवाहिक रिश्ते को कायम रखने में सक्षम नहीं हैं। किसी जोड़े को एक-दूसरे के साथ और वैवाहिक रिश्ते से वंचित किया जाना क्रूरता का चरम कृत्य है, जैसा कि शीर्ष अदालत ने भी समर्थन किया है।'' महिला की अपील खारिज कर दी गई।