जितिया (जीवित्पुत्रिका) व्रत 2022 कब है, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Update: 2022-08-26 00:30 GMT
जितिया (जीवित्पुत्रिका) व्रत 2022 कब है, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
  • whatsapp icon

रायपुर I हिंदू धर्म में हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। यह व्रत सप्तमी से लेकर नवमी तिथि तक चलता है। जितिया पर्व महिलाओं के लिए बेहद खास होता है।यह व्रत संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है। इसका वर्णन महाभारत काल में भी मिलता है। इस साल 2022 में जीतिया व्रत 18 सितंबर को मनाया जाएगा।

जितिया (जीवित्पुत्रिका) व्रत शुभ मुहूर्त

सिंतबर को नहाय खाय के साथ जितिया व्रत की शुरूआत होगी। उसके बाद 18 सितंबर को व्रत रखा जाएगा। जीवित्पुत्रिका व्रत तिथि प्रारंभ: 17 सितंबर दोपहर 02:14 बजे से 18 सितंबर दोपहर 04:32 बजे तक रहेगा।

इसके बाद पारण – 19 सितंबर को सुबह 6:10 से सूर्योदय के बाद रहेगा

जितिया व्रत का महत्व

जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, लेकिन वे द्रोपदी की पांच संतानें थे। फिर अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली।

अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।

जितिया व्रत की विधि

जितिया का व्रत 3 दिनों तक चलता है। पहले दिन नहाए खाए होता है दूसरे दिन खर जूयूतिया, व तीसरे दिन पारण होता है। नहाए खाए वाले दिन मडुआ की रोटी नोनी का साग, सत्पुतिया, खीरा, दही चूरा खाकर व्रत किया जाता है। नहाए खाए वाले दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। अष्टमी तिथि जिस दिन जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत होता है जिसे खर जितिया कहते हैं। उस दिन स्नान आदि करके जीमूत वाहन देवता की पूजा की जाती है।

अष्टमी तिथि को प्रदोष काल में जीमूत वाहन देवता की पूजा की जाती है। देवता की कुशा से निर्मित प्रतिमा बनाई जाती है।

इस दिन मिट्टी का गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है उनके माथे पर टीका किया जाता है।

उनको एक लाल धागे से बनी माला चढ़ाई जाती है जिस पर जीमूत वाहन देवता का लॉकेट लगा हो। व उस लाकेट में महिलाएं उतनी गांठ लगाती हैं जितने उनके पुत्र होते हैं व एक गांठ जयूत महाराज ( जीमूत वाहन) के लिए भी लगाया जाता है ।

जीमूत वाहन देवता की पूजा करने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। कथा सुनते वक्त हाथ में अक्षत व सिक्का अवश्य लें। इस दिन सात सत्पुतिया के पत्ते पर या पान के पत्ते पर प्रसाद का भोजन निकाल कर के घर के चारों तरफ या छत पर चील व सियारिन के लिए रखा जाता है। जीमूत वाहन देवता की पूजा अर्चना करने के बाद जो लाल धागे की माला चढ़ाई जाती है उसमें से एक माला अपने पुत्र को व एक माला अपने गले में धारण की जाती है।

व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है ।

Tags:    

Similar News