तुलसी विवाह का महत्व: जानिए कितने बजे है शुभ मुहूर्त.... घर से दरिद्रता दूर करने के लिए पत्तों को छूकर बोले ये मंत्र.... इस कथा का पाठ करने से वैवाहिक जीवन होता है सुखमय...

Update: 2021-11-14 09:42 GMT

नईदिल्ली 14 नवंबर 2021 I देवउठनी एकादशी के पावन दिन भगवान शालीग्राम और माता तुलसी का विवाह किया जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन का बहुत अधिक महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शालीग्राम और माता तुलसी का विवाह करने से वैवाहिक जीवन सुखमय हो जाता है। इस पावन दिन विधि- विधान से पूजा- अर्चना कर ये व्रतहिंदू धर्म में तुलसी पूजा (Tulsi Puja) और तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2021) का विशेष महत्व है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तुलसी और शालीग्राम विवाह का प्रावधान है. इस एकादशी के दिन पूरे विधि-विधान के साथ तुलसी विवाह किया जाता है. कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन देव उठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी पड़ती है। इस अवसर पर भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप के साथ माता तुलसी का विवाह भी किया जाता है। इस साल 2021 में एकादशी तिथि दो दिन पड़ने से तुलसी विवाह और देव उठनी एकादशी की डेट को लेकर भ्रम हो रहा है। इस बार एकादशी तिथि 14 नवंबर को सुबह 5 बजकर 48 मिनट पर शुरू हो जाएगी, जिस वजह से एकादशी व्रत 14 नवंबर को ही रखा जाएगा। विशेषज्ञ विद्वानों के अनुसार एकादशी तिथि सूर्योदय से पहले लगने पर एकादशी व्रत उसी दिन होता है। एकादशी व्रत का पारण 15 नवंबर, सोमवार को होगा लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रविवार को तुलसी तोड़ना वर्जित है। ऐसा भी मत है कि जिस दिन एकादशी तिथि समाप्त होकर द्वादशी तिथि का आरंभ हो रहा हो उसी दिन प्रबोधिउत्सव के साथ तुलसी विवाह करना चाहिए। यहां जानिए तुलसी विवाह के जुड़े मुहूर्त और पूजा विधि।

बन रहा यह शुभ संयोग............

तुलसी विवाह के दिन हर्षण योग का शुभ संयोग बन रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर्षण योग 15 नवंबर की देर रात 1 बजकर 44 मिनट तक रहेगा0 ज्योतिष के अनुसार शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए हर्षण योग को अत्यंत उत्तम माना गया है. शालिग्राम पत्थर गंडकी नदी से प्राप्त होता है। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी. तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं।

एकादशी तिथि प्रारम्भ - 14 नवम्बर, 2021 को सुबह 05:48 बजे

एकादशी तिथि समाप्त - 15 नवम्बर, 2021 को सुबह 06:39 बजे

भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया। लेकिन भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे, अतः वृंदा के शाप को जीवित रखने के लिए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया। भगवान विष्णु को दिया शाप वापस लेने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई. वृंदा के राख से तुलसी का पौधा निकला। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसी घटना को याद रखने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।

तुलसी मंत्र.........

'महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते'

कहते हैं इस मंत्र का जाप नियमित रूप से तुलसी के पत्ते या पौधे को छूते हुए करना चाहिए. इससे व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं.

मंत्र का जाप करने से पहले रखें इन बातों का ध्यान..........

-कहते हैं कि तुलसी मंत्र का जाप करने से पहले अपने ईष्टदेव की पूजा जरूर करें. इसके बाद ही तुलसी मंत्र का जाप करना चाहिए.

-तुलसी मंत्र का जाप करने से पहले तुलसी को प्रणाम करें और पौधे में शुद्ध जल अर्पित करें.

-इसके बाद तुलसी जी का श्रृंगार करें. श्रृंगार में हल्दी और सिंदूर चढ़ाएं.

-इसके बाद तुलसी जी के आगे घी का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं.

-फिर उनकी 7 बार परिक्रमा करें और ऊपर बताएं गए मंत्र का जाप करें.

-इसके बाद तुलसी जी को छूकर अपनी सभी मनोकामनाएं बोल दें.

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