धनतेरस क्या है, क्यों और कब मनाया जाता है, जानिए इससे जुड़ी धार्मिक कथा
NPG DESK I धनतेरस का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 22 अक्टूबर 2022 को पड़ने जा रहा है। धनतेरस के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और आरोग्य का आशीर्वाद प्रदान करने वाले धनवंतरि की विशेष पूजा का विधान है। इस दिन को किसी भी प्रकार का सामान आदि खरीदने के लिए अत्यंत ही शुभ माना जाता है।
धनतेरस का मुहूर्त
इस दिन भगवान धनवंतरी की पूजा का मुहूर्त रात 07.10 से रात 08.24 मिनत तक है। पूजा की अवधि 1 घंटा 14 मिनट रहेगी। वैसे तो पंचाग के अनुसार धनतेरस 22 अक्टूबर को मनाया जायेंगा, लेकिन 23 अक्टूबर को भी त्रयोदशी तिथि होने की वजह से 23 को भी धनतेरस और नरक चतुर्दशी रहेगा।
इस दिन त्रिपुष्कर योग बन रहा है। सर्वार्थसिद्धि योग - Oct 23 06:31 AM से Oct 23 02:34 PM, अमृतसिद्धि योग - Oct 23 02:34 PM से Oct 24 06:31 AM, सर्वार्थसिद्धि योग - Oct 23 02:34 PM से Oct 24 06:31 AM धनतेरस पर प्रदोष काल - 22 अक्टूबर 2022 को शाम 05.52 से रात 08.24 मिनट तक है। वृषभ काल 07.10 से रात 09.06 तक है।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है और इसी के साथ पंच दिवसीय दीप पर्व शुरू हो जाता है। इसके अगले दिन अनंत चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी फिर मूल पर्व दीपावली, इसके बाद गोवर्धन पूजा और अंत में होती है यम द्वितीया जिसे भाई दूज भी कहा जाता है। हमारे धर्मग्रंथों में सभी पर्वों की अलग-अलग कथाएं हैं।
धनतेरस क्या है
पुराणों के अनुसार देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन पर भगवान धनवंतरि हाथों में स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनवंतरि ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अमर बना दिया। धनवंतरि के दो दिन बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
भगवान धनवंतरि देवताओं के वैद्य कहे जाते हैं। इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। मान्यता है कि भगवान धनवंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरि का अवतार लिया था।
धनतेरस की कथा
धनतेरस पर की एक और कथा है। काॢतक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञस्थल पर पहुंच गये। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे, इनकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं। वह देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।
बलि ने गुरु शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गये।
इस वजह से कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन शुक्राचार्य की चाल समझ गये। वामन ने अपने हाथ में रखी कुशा को कमंडल में प्रवेश कराया कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी। शुक्राचार्य छटपटाकर कमंडल से निकल आये। इसी बीच बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि दान कर दी। इसके बाद भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी नाप ली और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया।
बलि दान में अपना सबकुछ गंवा बैठे थे। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना अधिक धन-संपत्ति देवताओं को मिल गयी। कहा जाता है कि इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस पर्व मनाया जाता है। आधुनिक युग में इसीलिए इसे धन का पर्व मान लिया गया और इसी वजह से लोग इस दिन धन-संपदा खरीदते हैं। देश में हर जगह जहां-जहां यह पर्व मनाया जाता है, बाजार जगमगा उठते हैं। आभूषण, बर्तन, वाहन, घरेलू सामान, वस्त्र आदि की खरीदारी की जाती है। इस दिन देव वैद्य धनवंतरि की पूजा भी होती है।