भारत में हाथियों की आबादी तेजी से सिकुड़ रही: 19 साल में 45 हजार से घटकर अब महज 27 हजार हाथी रह गए

Update: 2022-11-06 13:31 GMT

Elephant

रमेश शर्मा, रायपुर

छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड में पिछले कई वर्षों से जंगलों में उत्पात के लिए कुख्यात हो चुके हाथियों को लेकर सर्वत्र चिंता है। प्रोजेक्ट टाईगर की तर्ज पर #प्रोजेक्ट एलीफेंट  में ऐसे लोग रखे गए हैं जो वन्यजीव-जंतुओं के मामले में जानकार हैं और पर्यावरण के विनाश के कारणों पर लगातार चिंता करते रहे हैं।

इस तरह की खबर जब भी आती है कि छत्तीसगढ में धरमजयगढ़ या रायगढ़ के कुछ इलाकों में हाथियों ने जम कर उत्पात मचाया है तो मेरी तरह और भी कई लोग इस समस्या की तह में जाने की कोशिश करते हैं| कोशिश में पता चलता है कि हाथियों के भड़कने के सटीक कारण हैं| जंगल काटे जा रहे हैं और उनका विचरण -चारा क्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है| एक पूरा कारीडोर है जिसमे हाथी लगातार आते-जाते रहते हैं| यह कारीडोर झारखंड से शुरू होता और उड़ीसा मेंविलीन होता है| हाथी इस अंचल में शायद हजारों वर्षों से हैं| उनके उत्पात के शिकार वे ग्रामीण बनते हैं जो इस कारीडोर के आसपास बसे हैं| हाथी उनकी बस्तियों में जा घुसते हैं और झोपड़ियां उजाड़ कर सारा सामान जमींदोज कर देते हैं| दुखद यह भी है कि वे लोगों को अपनी सूंड से उठा कर जमीन पर पटक देते हैं| सैकड़ों लोग हाथियों के कोप के चलते मारे गए हैं| मारे जा रहे हैं। लोगों में गहरा रोष है और इस इलाके में हाथियों को भगाने के लिए जो उपाय किये जाते हैं उससे हाथी और भड़कते हैं। शोरगुल, पटाखे फोड़ना या उन पर हथियारों से हमला करना और भीड़ के साथ उनको उकसाना इत्यादि सारे उपाय एक ऐसी स्थिति को जन्म दे रहे है जिसमे वर्गभेद और पलटवार के रक्तरंजित प्रतिशोध में हाथी समाज को इंसानों के प्रति क्रुद्ध है। हाथी अब इंसान को देखते ही भड़कते हैं और सबसे पहले हमला कर देते हैं| समस्या बेहद गंभीर हो चुकी है। इसमें वन महकमा सिर्फ मारे गए लोगों के निमित्त मुआवजा देने और नुकसान की भरपाई में ही हर साल लाखों रूपये खर्च कर रहा है|मरने वाले इंसानों के संख्या भी हजारों में पंहुच गयी है।

सबसे पहले तो यह देखने वाली बात है कि हाथी कहाँ हमले कर रहे हैं? वे जंगल में हमले कर रहे हैं। जंगल में उनका नैसर्गिक अधिकार है और इंसान ने उसके अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण किया है जिसके जवाब में हाथी अब इंसानी बस्तियों पर हमले कर रहे हैं। जो जंगल का क़ानून  समझते हैं वे जानते हैं कि अगर भालू ने शेर पर हमला किया तो सारे शेर भालुओं के दुश्मन माने जाते हैं| इसी तरह किसी भी जानवर ने अपनी नैसर्गिक परम्परा तोड़ कर किसी दूसरे जानवर को निशाना बनाया तो उसका पूरा समाज निशाने पर रहता है| यह बात इंसानी समाज पर भी लागू हो रही है| हाथी मनुष्य को अपना दुश्मन समझ बैठे हैं तो इसके कारणों पर गौर करके उपाय ढूंढे जाने चाहियें| न कि हाथियों को मार दिया जाना चाहिए जैसा कि हो रहा है| इससे जंगल में इंसान का जीना मुश्किल हो जाएगा| वैसे भी हम जंगलों को उजाड़ कर कंक्रीट का जंगल बना रहे है जिसमे हम तो एक नए विनाशकारी दौर में मन मसोस कर रह रहे हैं लेकिन शायद.. हाथी नहीं रह सकते| कोई भी वन्यजीव नही रह सकता| शहरों में पालतू और आवारा कुत्ते रहते हैं मगर सड़क पर किसी कुत्ते पर गाडी चढ़ा दी जाए तो सारे कुत्ते हरेक वाहन के पीछे भूंकते हुए दौड़ते हैं| आजकल पर्यावरण से गिद्धों के और कौओं के गायब होने की चिंता जताई जाती है| हाथियों को लेकर भी हालात बेहद गंभीर है| देश भर में सीमित हाथी रह गए हैं और इनमे छत्तीसगढ़ कारीडोर में भी संख्या घट रही| हम एक तरफ देश भर में गणेशोत्सव में हाथी के प्रतिरूप गणपति बप्पा की पूजा करते हैं| दूसरी तरफ उनको उनके कीमती दांतों के लिए संसारचंद जैसे तस्करों के हाथों मार दिया जाता है| #sansar Chand की 2014 में मौत हो गई। तस्करी के कई मामलों का वह अपराधी था।

मैं अक्सर जब भी 'हाथी मेरे साथी' का गाना सुनता हूँ तो हालात पर सोचने के लिए विवश हो जाता हूँ -

....नफरत की दुनिया को छोड़ के, प्यार की दुनिया में,

खुश रहना मेरे यार...

जब जानवर कोई इंसान को मारे..

कहते हैं दुनिया में वहशी उसे सारे..

इक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है ..चुप क्यूं है संसार ...

खुश रहना मेरे यार...

स्मरण शक्ति और बुद्धिमानी के मामले में हाथी का कोई मुकाबला नहीं है। इनकी खासियत है कि हाथी मातृ सत्ता के प्रतीक हैं। सबसे बड़ी बुजर्ग हथिनी ही अपने झुंड को नियंत्रित करती है। हाथी चाहे कितना ही बलशाली क्यों न हो, उसे भी अपने की लीडर की बात माननी होती है।

हाथी काफी शक्तिशाली होते हैं जिनसे शेर भी टकराने से डरता है लेकिन हाथी मधुमक्खियों से डरते हैं। विशालकाय हाथी के शरीर को दिन में 300 किलो खाने और 160 किलो तक पानी की आवश्यकता होती है।

जलवायु परिवर्तन, मानव दखल के कारण कंक्रीट में तब्दील होते जंगल, बंद होते कॉरिडोर, जंगलों में चारे का अभाव और पानी की कमी के कारण इनकी आबादी पर संकट है।

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