छत्तीसगढ़ की सियासत थ्रिलर फ़िल्म से भी ज्यादा सस्पेंस भरी… सियासी संक्रमण लंबा खींचा तो कांग्रेस को होगा नुकसान

Update: 2021-08-31 09:41 GMT

रायपुर 31 अगस्त 2021।….वो कहते हैं ना कि सियासत में सस्पेंस तो रहता है! …..लेकिन छत्तीसगढ़ की सियासत तो थ्रिलर फिल्म से भी ज्यादा गहरी सस्पेंस वाली बन गयी है। फिल्म भी तो 3 घंटे में खत्म हो जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ की सियासत में 7 दिन से चला आ रहा सस्पेंस ना जाने कब…कहां और किस मोड़ पर जाकर खत्म होगा। शक नहीं कि, छत्तीसगढ़ में जो सियासी हालात अब के हैं, वो शायद अब से पहले कभी नहीं बने। हर जगह असमंजस…हर तरफ अटकलें…हर ओर उधेड़बुन….दिल्ली की तरफ नेताओं के बढ़ते कदम और दिल्ली से नेताओं के रायपुर पहुंचने की चर्चाओं से छत्तीसगढ़ की सियासत हिलोरे मारने लगती है। पिछले सप्ताह जब छत्तीसगढ़ की राजनीति दिल्ली पहुंची थी, तो लगा था कि राहुल गांधी से मुलाकात के बाद सब कुछ साफ हो जायेगा, लेकिन इसके उलट हालात पर सस्पेंस और भी गहरा गया।

राहुल गांधी भी इस हफ्ते छत्तीसगढ़ दौरे पर आने वाले हैं, लेकिन आज मंगलवार तक उनका कोई कार्यक्रम नहीं आया है। इससे अलग 3 सितंबर को अजय माकन का रायपुर दौरा जरूर फिक्स हो गया है। हालांकि, पीसीसी ने साफ कर दिया है कि माकन रायपुर में राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर केंद्र सरकार के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस करने आ रहे हैं। जैसे कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लखनऊ जा रहे हैं।
बहरहाल, 24 अगस्त को जब भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव सियासी कयासों के बीच साथ-साथ राहुल गांधी के बंगले पहुंचे थे, उसी दिन से छत्तीसगढ़ में सबकुछ सुस्त सा पड़ गया, लेकिन 27 की मीटिंग के बाद तो मानों पूरा प्रदेश ही ठहर गया। हां, ये बात दीगर है कि, इन हालातों पर छत्तीसगढ़ की सियासत ना तो मुंह खोल रही है …और ना ही इन सब पर ब्यूरोक्रेसी कुछ बोल रही है….हालात समझा जा सकता है कि प्रदेशवासियों की स्थिति हो रही होगी। खामोशी को लेकर सोशल मीडिया पर कार्टून, मीम्स और श्लोगन जरूर बानगी बयां कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक गहरा सन्नाटा पसर गया है।

मंत्रालय, विभागाध्यक्ष भवन समेत जिला कार्यालयों में भी लग रहा सब कुछ ठहर गया है। हफ्ते भर से फाइलों का मूवमेंट एकदम ठप है। नया काम तो दूर रूटीन के काम को भी अफसरों ने किनारे कर दिया है। सब जगह एक ही लाइन है…सियासत की दिशा देख लें।
उधर, टीएस सिंहदेव का दिल्ली जाना, परिवारिक कार्यक्रमों में शामिल होना भी इस वक्त में छत्तीसगढ़ में एक बड़ी बहस और एक बड़ी चर्चा का हिस्सा हो गया है…जाहिर है ये एक सियासत की शून्यता की तरफ इशारा कर रहा है, जिन पर आलाकमान की नजरें शायद नहीं गयी है। अगर इस सस्पेंस को और ज्यादा लंबा खींचा गया, निश्चित ही छत्तीसगढ़ के नजरिये से एक बड़ा ही राजनीतिक संक्रमण का काल बन जायेगा। और कुल मिलाकर इससे कांग्रेस पार्टी का नुकसान होगा। पार्टी के लोग ही कहने लगे हैं, 50 सीट लेकर भाजपा ने 15 साल निष्कंटक राज किया। और कांग्रेस को 70 सीटें मिलने के बाद भी छत्तीसगढ़ अजीब अनिश्चितता में डूबा हुआ है। विधायकों को भी चिंता सता रही…हालात ऐसे ही रहे तो विधानसभा चुनाव के दौरान जनता को क्या जवाब देंगे। 18 महीने बाद आखिरकार जनता-जनार्दन के दरवाजे पर जाना ही होगा।

 

Tags:    

Similar News