High Court News: कानून तोड़ने वालों पर होगी कड़ी कार्रवाई, बिना लाइसेंसी को बेचा 25 किलोग्राम विस्फोटक पदार्थ, हाई कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी, पढ़िए कोर्ट ने किन नियमों का पालन करने के दिए निर्देश

High Court News: विस्फोटक पदार्थ की बिक्री को लेकर हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने लाइसेंसधारक द्वारा गलत हाथों में विस्फोटक पदार्थों की बिक्री को लेकर नाराजगी जताई है। सिंगल बेंच ने निचली अदालत के फैसले का सही ठहराया है। बता दें कि यह मामला हाई कोर्ट में बीते ढाई दशक से लंबित था।

Update: 2025-08-11 06:56 GMT

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High Court News: बिलासपुर। विस्फोटक पदार्थ की बिक्री में गंभीरता बरतने और लाइसेंसधारकों को अतिरिक्त सावधानी बरतने को लेकर हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फेैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि यह वैधानिक दायित्व है कि आरोप तय करने के प्रारंभिक चरण में केवल परिकल्पना, कल्पना और दूरगामी कारणों के आधार पर हस्तक्षेप न किया जाए, जो कानूनन अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमे में बाधा डालने के समान है। यह कानूनी दायित्व है कि आरोप तय करने के प्रारंभिक चरण में, मात्र अनुमान, कल्पना व क्लिष्ट कल्पित आधार पर हस्तक्षेप न किया जाए, कानून में यह अभियुक्तों के विरूद्ध विचारण कार्यवाही को बाधित करने के समान है।

याचिकाकर्ता हुन्नैद हुसैन तैय्यब भाई बदरुद्दीन नामक फर्म का साझेदार है, जो विस्फोटक अधिनियम के तहत विस्फोटकों के कब्जे और बिक्री के लिए लाइसेंसधारी है। केजूराम देवांगन उक्त फर्म में कार्यरत है। लाइसेंस की शर्तों और विस्फोटक अधिनियम तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत, केजूराम उक्त फर्म में कार्यरत है।

फर्म विस्फोटकों को उन व्यक्तियों को बेच सकती है जिनके पास विस्फोटक ले जाने, रखने और उपयोग करने का लाइसेंस है। इसमें कोई विवाद नहीं है कि दुर्ग पुलिस थाने के कोडवा गांव के किशुमलाल भक्त के पास लाइसेंस संख्या 1927 वाला ऐसा ही लाइसेंस था, जिसे पुलिस ने जब्त कर लिया था। जांच के दौरान, पुलिस ने फर्म के संबंधित रजिस्टर भी जब्त किए हैं, जिनमें दर्ज है कि किशुनलाल भक्त को 25 किलोग्राम विस्फोटक स्पेशल जिलेटिन और 25 इलेक्ट्रिक डेटोनेटर बेचे गए थे। किशुनलाल भक्त के रजिस्टर में उक्त विस्फोटक की खरीद के संबंध में बिल संख्या, वाउचर संख्या और पास संख्या के साथ संबंधित प्रविष्टियाँ हैं, जिन्हें पुलिस ने अनुलग्नक-बी के अनुसार जब्त कर लिया था।

गुप्त सूचना पर, सक्षम प्राधिकारी ने सह-अभियुक्त दीपक कुमार और रामखिलावन के गोदाम परिसर में छापा मारा और उनके कब्जे से विस्फोटक बरामद किया। पूछताछ करने पर, उक्त सह-अभियुक्तों ने बताया कि वे इसे हुन्नैद हुसैन की फर्म से लाए थे। यह आरोप लगाया गया कि उनके पास उक्त विस्फोटक रखने का लाइसेंस नहीं था। यह आरोप लगाया गया है कि वर्तमान आवेदक और उपरोक्त दोनों नामित व्यक्ति विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 5 और विस्फोटक अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत दंडनीय अपराधों के दोषी हैं।

मामले की सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड, चार्जशीट पर उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 की धारा 5 और विस्फोटक अधिनियम की धारा 9 बी के तहत दंडनीय अपराध के लिए आवेदकों के खिलाफ आराेप तय कर दिया।

ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए जुन्नैद हुसैन ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। जस्टिस बीडी गुरु के सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि जब अभियोजन पक्ष ने किशुनलाल से जब्त किए गए दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किए और उन्हें न्यायालय से छिपाने का प्रयास किया, तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि किशुनलाल का बयान जानबूझकर केस डायरी के साथ प्रस्तुत नहीं किया गया। किसी भी स्थिति में, न्यायालय को यह अधिकार नहीं था कि वह जांच एजेंसी को किशुनलाल का बयान दर्ज करके आगे की जांच करने के लिए निर्देशित कर। अभियोजन पक्ष के विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए था और आरोप तय करते समय किशनलाल से जब्त किए गए दस्तावेज़ों को ध्यान में रखा जाना चाहिए था।

ढाई दशक से लंबित था मामला-

वर्तमान पुनरीक्षण वाद वर्ष 1997 में दायर किया गया था और न्यायालय ने 2 मई 1997 के आदेश द्वारा प्रतिवादी को नोटिस जारी किया था और सप्तम अपर सत्र न्यायाधीश, रायपुर के न्यायालय में लंबित कार्यवाही पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी। तब से यह मामला विचाराधीन है, अर्थात पिछले ढाई दशक से भी अधिक समय से।

हाई कोर्ट की गंभीर टिप्पणी-

मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि अभिलेख में उपलब्ध समस्त सामग्री और विशेष रूप से विस्फोटकों से संबंधित अपराधों की गंभीरता पर विचार करने के बाद, मेरी राय में, निचली अदालत ने याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप सही ढंग से निर्धारित किया है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ताओं ने विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

सिंगल बेंच ने कहा कि यह एक सामान्य कानून है कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप तय करते समय कोई कारण दर्ज करना आवश्यक नहीं है और उच्च न्यायालय को अभियुक्त के विरुद्ध आरोप तय करने के चरण में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। यहां यह उल्लेख करना उचित है कि मुकदमे की शुरुआत और आरंभिक चरण में अभियोजक द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले साक्ष्य की सत्यता, सच्चाई और प्रभाव का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन नहीं किया जाता है। यहां तक कि मुकदमे के उस चरण में न्यायाधीश के लिए भी यह अनिवार्य नहीं है कि वह विस्तार से विचार करे और संवेदनशील तराजू पर तौलें कि क्या तथ्य, यदि सिद्ध हो जाते हैं।


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