CG Election 2025: नगरीय निकाय चुनाव: मेयर की कुर्सी थी सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित, तब रामशरण बने मेयर... इस बार ओबीसी के लिए रिजर्व
CG Election 2025: बिलासपुर नगर निगम महापौर की कुर्सी ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई थी। ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण से साफ है कि सामान्य के अलावा अन्य वर्ग से आने वाले दावेदारों की राजनीतिक संभावनाएं एक झटके में खत्म हो गई है।
CG Election 2025: बिलासपुर। बिलासपुर नगर निगम महापौर की कुर्सी ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई थी। ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण से साफ है कि सामान्य के अलावा अन्य वर्ग से आने वाले दावेदारों की राजनीतिक संभावनाएं एक झटके में खत्म हो गई है। बीते निगम चुनाव में बिलासपुर नगर निगम के मेयर की कुर्सी सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित रखी गई थी। राजनीति ऐसी चली कि ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले रामशरण यादव मेयर बन गए। पर इस बस बार ऐसा नहीं है। मेयर की कुर्सी ओबीसी मुक्त है। मतलब साफ है कि ओबीसी वर्ग के पुरुष के अलावा महिला दावेदारों की सियासी संभावना जब तक टिकट की घोषणा नहीं कर दी जाती बलवती रहेंगी।
सोमवार को बिलासपुर सहित प्रदेश के सभी 14 नगर निगमों के महापौर पद के लिए आरक्षण की प्रक्रिया पूरी की गई। सुबह से ही सत्ता व विपक्षी दल के दिग्गजों के अलावा स्थानीय नेताओं व दावेदारी करने वाले दावेदारों की नजरें लगी रही। इस बात की अटकलें भी लगाई जा रही थी कि बीते चुनाव की तरह सामान्य वर्ग के लिए ही लाटरी निकल जाए। सामान्य वर्ग के लिए लाटरी निकलने का मतलब दोनों ही दलों मे दावेदारों की लंबी सूची और उसी अंदाज में सियासी जोर आजमाइश भी। मेयर पद के लिए आरक्षण की लाटरी निकलते ही इस तरह की संभावनाओं पर तत्काल विराम लग गया। बिलासपुर नगर निगम महापौर ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित होते ही सामान्य वर्ग के उन दावेदारों की राजनीतिक संभावनाओं पर विराम लग गया जो दावेदारी की सोच रहे थे या फिर भीतर ही भीतर अपने लिए संभावनाएं टटोलने के साथ ही निरापद स्थिति की तलाश में जुटे हुए थे। आरक्षण की लाटरी निकलते ही तस्वीर साफ हो गई थी। बिलासपुर नगर निगम महापौर की कुर्सी ओबीसी वर्ग के लिए तय कर दी गई है।
ओबीसी वर्ग के लिए मेयर की कुर्सी तय होते ही इस वर्ग से ताल्लुक रखने वाले दावेदारों की बांछे खिल गई है। हालांकि इनके लिए तब भी कोई विपरीत राजनीतिक परिस्थितियां नहीं बनने वाली थी,जबिक महापौर की कुर्सी सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हो जाती। तब भी इनकी राजनीतिक संभावनाएं जिंदा रहती है और उसी अंदाज में बलवति भी। इनके लिए दोनों ही परिस्थितियों में अपार संभावनाएं बनी रहती। ओबीसी वर्ग के दावेदार मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में अपने आपको ज्यादा सुरक्षित पा रहे हैं। कारण साफ है, सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण की स्थिति में दावेदारों की संख्या ना केवल बढ़ जाती वरन राजनीतिक रूप से प्रतिस्पर्धा भी काफी तेज हो जाती। मौजूदा परिस्थितियों में इस तरह की स्थिति नहीं बनने वाली है। इनके बीच दावेदारी होगी।
सोशल मीडिया में लाबिंग का दौर
मेयर का पद आरक्षित होते ही राजनीतक संभावनाएं टटोलने वाले दावेदार और समर्थक सोशल मीडिया में सक्रिय हो गए हैं। फोटो के साथ जीत की संभावनाएं भी जता रहे हैं और पार्टी की झोली में निगम डालने का दावा भी करते दिखाई दे रहे हैं।
सत्ता व विपक्षी दल के नेताओं की ओर लगी नजर
नगरीय निकाय चुनाव को लेकर अब सत्ता व विपक्षी दल के नेताओं की ओर वार्ड से लेकर मेयर चुनाव लड़ने की संभावनाएं टटोलने वाले दावेदारों की नजरें टिक गई है। हालांकि दोनों ही दलों के प्रमुख नेताओं की ओर से फिलहाल कोई इशारा नहीं किया जा रहा है। देखो और आगे बढ़ो की नीति पर काम करते दिखाई दे रहे हैं।