छत्तीसगढ़ में सूरजमुखी की खेती को मिली केन्द्र सरकार की सराहना, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कहा- छत्तीसगढ़ में खेती का स्वर्णिम अध्याय शुरू...

छत्तीसगढ़ में सूरजमुखी की खेती की केंद्र सरकार ने सराहना की है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में सूरजमुखी की खेती एक नये स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत है...

Update: 2025-04-27 16:23 GMT
छत्तीसगढ़ में सूरजमुखी की खेती को मिली केन्द्र सरकार की सराहना, केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कहा- छत्तीसगढ़ में खेती का स्वर्णिम अध्याय शुरू...
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रायपुर। छत्तीसगढ़ के सक्ती और कोडागांव सहित दूसरे जिलों में सूरजमुखी की खेती की केंद्र सरकार ने सराहना की है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर कहा है कि छत्तीसगढ़ में सूरजमुखी की खेती एक नये स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने से प्रेरित होकर छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले के घुइचुनवा गांव के रामायण मान्यवर जैसे किसान सूरजमुखी जैसी वैकल्पिक फसलें अपना रहे हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों के तहत पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर ये किसान अपनी आय बढ़ा रहे हैं, पानी पर निर्भरता कम कर रहे हैं और फसल उत्पादकता बढ़ा रहे हैं। सूरजमुखी की खेती करके, जो रबी, खरीफ और गर्मियों के मौसम में फलती-फूलती है, किसान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के राष्ट्रीय लक्ष्यों में योगदान करते हुए अधिकतम लाभ कमा रहे हैं।

कृषि में विविधता लाने और स्वदेशी तरीकों को बढ़ावा देने के प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान से किसानों को टिकाऊ, उच्च उपज वाली खेती की ओर बढ़ने में मदद मिल रही है, जिससे भारत का कृषि क्षेत्र मजबूत और अधिक आत्मनिर्भर बन रहा है।

इसी तरह छत्तीसगढ़ के कोडागांव जिले में सूरजमुखी की किस्म KBSH-78 की पहली सफल खेती का जश्न मनाया जा रहा है। इसके खिले हुए फूल किसानों के लिए नए अवसरों और राज्य में कृषि के भविष्य का संकेत देते हैं।

बेमेतरा में सूरजमुखी की फसल अपनाने से नरेश मृचंडे की आय में होगी बढ़ोत्तरी

बेमेतरा जिले के ग्राम हरदी के प्रगतिशील किसान नरेश मृचंडे ने पारंपरिक धान की खेती के स्थान पर सूरजमुखी की फसल अपनाकर एक नई दिशा की ओर कदम बढ़ाया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा किसानों के हित में चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं का सकारात्मक असर अब धरातल पर दिखाई देने लगा है।

कृषक मृचंडे के पास कुल 4.50 हेक्टेयर भूमि है, जिसमें वे अब तक खरीफ और रबी दोनों सीजन में धान की खेती करते थे। परंतु रबी मौसम में ग्रीष्मकालीन धान से लगातार हो रहे घाटे और गिरते जलस्तर ने उन्हें विकल्प तलाशने पर मजबूर किया। इस दौरान ग्राम कृषि विकास अधिकारी जेके चंद्राकर के मार्गदर्शन में उन्होंने NMEO-OS (नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल – ऑयल सीड्स) योजना के अंतर्गत सूरजमुखी की खेती करने का निर्णय लिया।

सरकार द्वारा दी गई सहायता जैसे बीज, सूक्ष्म पोषक तत्व, कीटनाशक और तकनीकी मार्गदर्शन ने नरेश जी का आत्मविश्वास बढ़ाया। उन्होंने 2 हेक्टेयर भूमि में सूरजमुखी की फसल लगाई, जिसमें स्वयं के घर में निर्मित कम्पोस्ट खाद का भी उपयोग किया। उचित खेत की तैयारी, समय पर निंदाई-गुड़ाई और कीट नियंत्रण के उपायों के चलते आज उनकी फसल में फूल आ चुके हैं और उपज की संभावनाएं काफी उत्साहजनक हैं।

मृचंडे का मानना है कि सूरजमुखी की खेती से कम लागत में अधिक मुनाफा संभव है, साथ ही इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। वे सभी किसानों से अपील करते हैं कि जल संकट को देखते हुए ग्रीष्मकालीन धान की जगह सूरजमुखी जैसी फसलें अपनाएं, जिससे जल संरक्षण भी हो और आर्थिक लाभ भी।उन्होंने यह भी साझा किया कि ग्रीष्मकालीन धान से उन्हें पहले भारी नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन अब सूरजमुखी की फसल से उनकी आय में निश्चित रूप से वृद्धि होगी। नरेश मृचंडे की यह सफलता, कृषि विविधीकरण और नवाचार को अपनाने की मिसाल है–जो आने वाले समय में अन्य किसानों को भी प्रेरित करेगी।


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