Bilaspur News: 17 साल के एक बालक ने दुष्कर्म की सोची कैसे और फिर हत्या क्यों की, बनी पहेली...

घटना के वक्त उसकी मानसिक स्थिति कैसी थी। शारीरिक रूप से सक्षम था या नहीं। इससे भी इतर एक बड़ा सवाल यह कि आखिर उसने इस तरह की घटना को अंजाम देने सोचा भी कैसे। उस दौरान उसके मन में क्या चल रहा था। जैसे बहुत सवाल है। इसके लिए साइकोलाजिकल टेस्ट जरुरी है। इसी टेस्ट के जरिए पांच मनोवैज्ञानिकों की टीम पता लगाएगी।

Update: 2024-09-15 08:16 GMT

बिलासपुर। दुष्कर्म और हत्या के आरोपी बालक के उम्र और घटना के दौरान मानसिक और शारीरिक स्थिति को लेकर हाई कोर्ट में एक गंभीर मामला आया है। घटना के समय आरोपी बालक की उम्र 17 वर्ष से अधिक और 18 वर्ष से कम थी। कोर्ट ने एक से अधिक मनोवैज्ञानिक से जांच का निर्देश दिया है। तकरीबन डेढ़ साल पहले यह मामला जुवेनाइल जस्टिस के सामने आया। बच्चे की उम्र,घटना के समय उसकी मानसिकता और शारीरिक क्षमता की जांच को लेकर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने साइकोलाजिकल टेस्ट कराने का आदेश दिया था। बोर्ड के निर्देश पर साइकोलाजिकल टेस्ट करने और आरोपी बालक के मन:स्थिति का मूल्यांकन करने वाले मनोवैज्ञानिकों ने आरोपी बालक की मानसिक स्थिति और शारीरिक क्षमता को सही पाया था।

मनोवैज्ञानिक ने बोर्ड को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट के आधार पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने बाल न्यायालय में मुकदमा चलाने की अनुशंसा कर दी है। बाल न्यायालय में मुकदमा चलाने की प्रक्रिया के दौरान जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की अनुशंसा को चुनौती देते हुए आरोपी बालक के परिजनों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई। आरोपी बालक की ओर से परिजनों द्वारा पेश याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। हाई कोर्ट ने आरोपी बालक के मामले की सुनवाई बाल न्यायालय के बजाय ट्रायल कोर्ट को करने कहा है। साथ ही कोर्ट ने जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को आरोपी बालक की घटना के दौरान मानसिक स्थिति और शारीरिक क्षमता की जांच के लिए पांच सदस्यीय मनोवैज्ञानिकों की टीम से साइकोलाजिकल टेस्ट कराने का निर्देश दिया है।

क्या है मामला

रायपुर जिले के आरंग थाना क्षेत्र में दुष्कर्म और हत्या के मामले में पुलिस ने नाबालिग आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 376 और 511 के तहत जुर्म दर्ज किया था। इस मामले में एक नाबालिग को गिरफ्तार किया गया। आरोपी बालक अपराध के समय 18 वर्ष से कम उम्र का था। लिहाजा उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में पेश किया गया। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 15 के तहत बोर्ड ने आरोपी बालक के मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के लिए मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की मदद ली गई। मनोचिकित्सक ने पांच बिंदुओं पर जांच की और उसके सामान्य होने की रिपोर्ट दी। इसी रिपोर्ट के आधार पर बोर्ड ने आदेश दिया कि मामले की सुनवाई बाल न्यायालय में किया जाना उचित होगा।

राज्य सरकार ने मनोवैज्ञानिकों की रिपोर्ट को बताया सही

नाबालिग आरोपी की याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार ने जवाब पेश करते हुए कहा कि बोर्ड ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 की धारा 15 के अंतर्गत तय मापदंडों व प्रावधानों के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन किया। अपराध के समय आरोपी की आयु 17 वर्ष से अधिक और 18 वर्ष से कम थी। जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) मॉडल रूल्स 2016 के नियम 10इए के अनुसार मनोवैज्ञानिक की सहायता ली गई। रिपोर्ट में अपराध के समय आरोपी बालक की मानसिक स्थिति और शारीरिक क्षमता को सही पाया है।

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