Bilaspur High Court: बिलासपुर हाई कोर्ट ने कहा- आम लोगों के हित के लिए बनाए गए नियम से किसी व्यक्ति विशेष को दिक्कत है, तो यह नियमों काे रद्द करने का आधार नहीं हो सकता

Bilaspur High Court: Bilaspur High Court- पदोन्नति के लिए बनाए गए नियमों को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह फैसला न्याय दृष्टांत AFR भी बन गया है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि आम लोगों के हितों की भलाई के लिए यदि नियम/अधिसूचना/संशोधन किए जा रहे हैं,अगर इससे किसी व्यक्ति विशेष को तकलीफ हो रही है,तब ऐसी स्थिति में नियमों काे रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। पढ़िए पदोन्नति को लेकर दायर याचिका पर डिवीजन बेंच ने क्या फैसला सुनाया है।

Update: 2025-04-11 10:07 GMT
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बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि किसी पद पर नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यताएं नियोक्ता को तय करनी होती हैं। नियोक्ता किसी भी तरह की वरीयता देने सहित अतिरिक्त या वांछनीय योग्यताएं निर्धारित कर सकता है। नियोक्ता ही यह तय करने के लिए सबसे उपयुक्त है कि उनकी जरूरतों और काम की प्रकृति के अनुसार उम्मीदवार में क्या योग्यताएं होनी चाहिए। इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ न्यायालयीन कर्मचारियों की याचिका को डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया है।

डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि न्यायालय पात्रता की शर्तें निर्धारित नहीं कर सकता। विज्ञापन/अधिसूचना को फिर से लिखकर वांछनीय योग्यताओं को आवश्यक पात्रता के बराबर मानने के मामले में वह गहराई से विचार नहीं कर सकता। समतुल्यता के प्रश्न भी न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर होंगे। यदि विज्ञापन/अधिसूचना की भाषा और नियम स्पष्ट हैं, तो न्यायालय उस पर निर्णय नहीं दे सकता। यदि विज्ञापन/अधिसूचना में कोई अस्पष्टता है या यह किसी नियम या कानून के विपरीत है, तो मामले को उचित आदेशों के बाद नियुक्ति प्राधिकारी के पास वापस जाना होगा, ताकि आगे की कार्यवाही की जा सके।

0 क्या है मामला

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के कर्मचारी भीम बलि यादव सहित 15 अन्य कर्मचारियों ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से बिलासपुर हाई कोर्ट में अर्जेंट हियरिंग की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने पदोन्नति नियमों को चुनौती दी थी। अपनी याचिका में कहा था कि पदोन्नति पर विचार करने के लिए केवल प्रासंगिक सेवा नियम, 2003 और 2015 में निर्धारित पदोन्नति के नियम ही लागू होंगे। याचिकाकर्ताओं ने 2017 में अधिसूचित पदोन्नति नियम मानदंडों में संशोधन के लिए 24.02.2022 के विवादित नोटिस को रद्द करने की मांग की थी। नियम 2003 के साथ नियम 2015 में परिकल्पित अनुभव और योग्यता मानदंडों के आधार पर याचिकाकर्ता ने श्रेणी-IV से सहायक ग्रेड-III में पदोन्नति देने की मांग की थी।

0 इसे लेकर बनी विवाद की स्थिति

सहायक ग्रेड- III के 69 रिक्त पदों पर पदोन्नति के लिए लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षा 05.03.2022 को सुबह 11 बजे से हाई कोर्ट परिसर बोदरी, बिलासपुर में आयोजित की जानी थी। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय सेवा (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और आचरण) नियम, 2017 (इसके बाद 'नियम, 2017') के क्रम संख्या 11, प्रथम अनुसूची, वर्ग- III में लाए गए संशोधन को चुनौती दी थी, जिसके द्वारा सहायक ग्रेड- III में पदोन्नति के लिए स्थापना के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के रूप में कार्यरत याचिकाकर्ताओं की पदोन्नति के मानदंड/मानदंडों को ग्रेड- III में पदोन्नति के प्रावधानों के विपरीत संशोधित किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में

वर्ष 2003 में पहली बार बनाए गए नियम अर्थात् छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय स्थापना (नियुक्ति और सेवा की शर्तें) नियम, 2003 (इसके बाद नियम, 2003) के साथ पठित राजपत्र अधिसूचना संख्या 5488/II-15-19/2002 दिनांक 10 दिसंबर 2003 के तहत लागू करने की मांग की थी।

0 याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच के सामने दिया ये तर्क

याचिकाकर्ताओं को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया था और उनके अनुसार उन्होंने बिना किसी पदोन्नति के समान वेतन और पदों पर 15-20 वर्ष की सेवा की है।

याचिकाकर्ताओं से संबंधित सेवा नियम वर्ष 2003 में राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से तैयार और प्रकाशित किए गए थे, अर्थात नियम, 2003 जिसके द्वारा भाग-V क्रम संख्या 7(ए) के अंतर्गत चतुर्थ श्रेणी से सहायक ग्रेड-III में पदोन्नति के मानदंड निर्धारित किए गए थे। उक्त नियमों के अनुसार, याचिकाकर्ता स्नातक या उच्चतर माध्यमिक परीक्षा हिंदी या अंग्रेजी टंकण परीक्षा उत्तीर्ण की शैक्षणिक योग्यता के साथ अपने मौजूदा पद पर दो वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद पदोन्नति के हकदार थे। नए नियम अर्थात नियम, 2017 के निर्माण के बाद इसमें पुनः परिवर्तन किया गया है, जिसके तहत अर्हता प्राप्त करने के लिए अधिक कठोरता के साथ लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षण मानदंड का प्रावधान शामिल किया गया है।

0 संशोधन को लेकर दर्ज कराई आपत्ति

पदोन्नति के संशोधित मानदंड वापस लिए जा सकते हैं और याचिकाकर्ताओं की उम्मीदवारी पर वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति के लिए विचार किया जा सकता है जैसा कि पहले माना जाता था। हालांकि, याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधित्व पर विचार किए बिना, लिखित परीक्षा और कौशल परीक्षण के लिए विवादित नोटिस जारी किया गया है। याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति के समय प्रचलित पुराने पदोन्नति नियम यानी नियम, 2003 को उनकी पदोन्नति के लिए विचार किया जाना चाहिए और किसी भी बाद के संशोधन को पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं दिया जा सकता है।

0 हाई कोर्ट की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ने रखी अपनी बात

नियम, 2003 में निर्धारित किया गया है कि सहायक ग्रेड-III के 75% पद प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से सीधी भर्ती द्वारा भरे जाएंगे और 25% पद योग्यता-सह-वरिष्ठता के आधार पर योग्य नियमित वर्ग-IV या आकस्मिक भुगतान वाले कर्मचारियों में से पदोन्नति द्वारा भरे जाएंगे, जिन्होंने प्रतिष्ठान में न्यूनतम 2 वर्ष की सेवा पूरी कर ली है और न्यूनतम योग्यता और अनुभव भी निर्धारित किया गया था। उक्त नियमों को 2015 में संशोधित किया गया और 75% को घटाकर 70% कर दिया गया और 25% को घटाकर 20% कर दिया गया और 10% पदों को नियुक्ति की तिथि से न्यूनतम 7 वर्ष का कार्य अनुभव रखने वाले चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों में से केवल योग्यता के आधार पर सीमित प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से पदोन्नति द्वारा भरने का निर्देश दिया गया था।

0 संशोधन के बाद बनी ऐसी स्थिति

09.01.2015 को संशोधन किया गया, जिसके द्वारा पहली बार तृतीय श्रेणी कर्मचारियों के 10% पदों को केवल योग्यता के आधार पर प्रतियोगी परीक्षा द्वारा भरने का निर्देश दिया गया और 7 वर्ष का अनुभव भी शामिल किया गया। 2015 के उक्त संशोधन को याचिकाकर्ताओं ने कभी चुनौती नहीं दी। इसके बाद, नियम, 2017 को 10.02.2017 को अधिसूचित किया गया और नियम 27 में समाप्ति के बारे में बात की गई है। उक्त प्रावधान के अनुसार, नियम, 2003 लागू होना बंद हो गए हैं। नियम, 2017 में सहायक ग्रेड- III के 75% पद प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से सीधी भर्ती के लिए आरक्षित किए गए हैं और 25% पद पदोन्नति के लिए आरक्षित किए गए हैं।

0 योग्यता का आकलन करने कौशल परीक्षण और कौशल परीक्षण किया है प्रारंभ

अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच को बताया कि कुछ याचिकाकर्ताओं को नियमों के अनुसार अपेक्षित सेवा पूरी करने के बाद समयमान वेतन दिया गया है ,और उनमें से कुछ को नियमों के अनुसार अगले पद पर पदोन्नत भी किया गया है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सभी याचिकाकर्ता बिना किसी पदोन्नति के एक ही वेतन और पद पर 15 से 20 वर्ष की सेवा दे रहे हैं। उनका कहना है कि नियमों में संशोधन पहले के उदाहरणों और लिखित प्रावधान को देखते हुए किया गया है। उपयुक्त पदों के लिए उम्मीदवारों की योग्यता का आकलन करने के लिए कौशल परीक्षण और कौशल परीक्षण शुरू किया गया है। दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया है।

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