Bailadila: छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी बैलाडीला के नंदीराज को देख रह जाएंगे हैरान, आकाश नगर में बादल भी करते हैं अठखेलियां, शुद्ध लौह अयस्क का भी खजाना

छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी बैलाडीला के नंदीराज को प्रकृति ने भर-भरकर सुंदरता बख्शी है। यहां की नैसर्गिक खूबसूरती ऐसी है कि आपको लगेगा कि जन्नत बस यहीं है। पहले छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी बलरामपुर के गौरलाटा को माना जाता था, लेकिन बाद में रिसर्च में ये बात सामने आई कि सबसे ऊंची चोटी नंदीराज शिखर है। आइए हम आपको बताते हैं बैलाडीला और इसकी सबसे ऊंची चोटी नंदीराज के बारे में...

Update: 2024-08-03 13:10 GMT

रायपुर, एनपीजी न्यूज। छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी बैलाडीला के नंदीराज को प्रकृति ने भर-भरकर सुंदरता बख्शी है। यहां की नैसर्गिक खूबसूरती ऐसी है कि आपको लगेगा कि जन्नत बस यहीं है। पहले छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी बलरामपुर के गौरलाटा को माना जाता था, लेकिन कुछ साल पहले भगोलविद् प्रोफेसर पीएल चंद्राकर ने बताया था कि बस्तर के बैलाडीला स्थित नंदीराज शिखर सबसे ऊंची चोटी है।

छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी है नंदीराज शिखर

जहां बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के लहसुन पाट स्थित गौरलाटा पर्वत की ऊंचाई 1,244 मीटर है, वहीं बस्तर के बैलाडीला स्थित नंदीराज शिखर की ऊंचाई इससे 23 मीटर अधिक 1,267 मीटर है। इस बात को तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा स्वीकार करने के बाद ये साफ हो गया कि नंदीराज ही सबसे ऊंची चोटी है। हालांकि अभी भी जानकारी के अभाव में कई लोग गौरलाटा को ही ऊंची चोटी बता देते हैं। कुछ किताबों में भी गौरलाटा का ही जिक्र ऊंची चोटी के तौर पर है।


बैलाडीला अपने शुद्ध लौह अयस्क के लिए पूरी दुनिया में है मशहूर

बहरहाल हम अब बात करते हैं बैलाडीला की.. बैलाडीला अपने लौह अयस्क के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहां के लौह अयस्क ने द्वितीय विश्व युद्ध में तबाह हो चुके जापान की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मदद की। साथ ही छत्तीसगढ़ में सैकड़ों स्पंज आयरन प्लांट इसकी बदौलत चल रहे हैं। बैलाडीला घने वनों से आच्छादित है। इसकी गगनचुंबी पहाड़ियों के चलते यहां का मौसम सालभर सुहाना बना रहता है।

कूबड़ की तरह आकृति होने के चलते नाम पड़ा बैलाडीला

नंदीराज पर्वत की आकृति बैल के कूबड़ की तरह है, इसी वजह से इस इलाके का नाम बैलाडीला पड़ा। बैलाडीला जैव विविधताओं से परिपूर्ण है। नंदीराज को बस्तर के आदिवासी अपना देवस्थल मानते हैं। बैलाडीला बस्तर का मस्तक माना जाता है। यह पर्वत समुद्र की सतह से 4 हजार 183 फुट ऊंचा है। केंद्र शासन की लौह अयस्क परियोजना के कारण बैलाडीला पूरी दुनिया में विख्यात है। यहां के लौह अयस्क में 65 प्रतिशत से अधिक यानी शुद्ध लौह तत्व है। इसका उत्खनन किरंदुल और बचेली में होता है।


आकाश नगर बादलों के नगर से है विख्यात

साल 1966 में जब NMDC ने बचेली और किरंदुल से लौह अयस्क का खनन शुरू किया, तो उसने अपने कर्मचारियों के रहने के लिए बचेली में पहाड़ पर आकाश नगर और किरंदुल में पहाड़ पर कैलाश नगर बसाए थे। आकाश नगर बादलों के नगर के नाम से विख्यात है। हालांकि नक्सली घटनाओं के कारण आकाश नगर को बाद के सालों में खाली करा दिया गया और आम लोगों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

आकाश नगर में बादल होंगे आपके ठीक सामने

बैलाडीला की पहाड़ियां घने वनों से ढंकी हुई हैं, जिसके कारण यहां साल भर बारिश होती है। वहीं अधिक उंचाई के कारण पहाड़ियां बादलों से ढंकी रहती हैं। बारिश के समय में आकाश नगर का नजारा देखने लायक होता है। आपको दरवाजा खोलते ही बादल अपने सामने दिख जाएंगे। बचेली से पहाड़ पर स्थित आकाश नगर तक जाने की कुल दूरी 30 किलोमीटर है। यहां तक पहुंचने के लिए आपको घुमावदार घाटियां पार करनी होंगी।


वर्तमान में आम लोगों के लिए आकाश नगर में आना किया गया है प्रतिबंधित

वर्तमान में आम लोगों के लिए आकाश नगर में आना प्रतिबंधित कर दिया गया। हालांकि साल में केवल एक दिन विश्वकर्मा जयंती के दिन यहां जाया जा सकता है। फिर भी अगर आप यहां आने का मन बना रहे हों, तो पूरी जानकारी लेकर ही आएं। बाकी आप बैलाडीला, बचेली और बस्तर कभी घूम सकते हैं। जानकारी के मुताबिक, हर साल 17 सितंबर यानी विश्वकर्मा जयंती के दिन आकाश नगर सैलानियों के लिए खोला जाता है। लोग अपने चारपहिया वाहन से वहां तक पहुंच सकते हैं या फिर NMDC प्रबंधन द्वारा चलाए बस से भी वहां तक जा सकते हैं। रायपुर से बचेली की दूरी 450 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से आप यहां तक पहुंच सकते हैं।


कई नदियों का जनक भी है बैलाडीला पहाड़

बता दें कि बैलाडीला पर्वत संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से 130 किलोमीटर दूर दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा जिले में है। बैलाडीला की सबसे ऊंची चोटी का नाम नंदीराज है, लेकिन स्थानीय ग्रामीण इसे पितुररानी भी कहते हैं। बैलाडीला पहाड़ शंखिनी, डंकिनी, मलगेर और तालपेरू नदियों का जनक है। पर्वत की दो श्रेणियों के बीच एक मैदान है। मिंगाचल सहित आसपास की नदियों का उद्गम स्थल भी इसी पर्वत पर हैं।

3,385 फीट ऊंचे ढोलकल शिखर पर स्थापित विघ्नविनाशक भगवान गणेश की प्रतिमा

शंखिनी नदी के उद्गम स्थल से दक्षिण की ओर दो अलग-अलग झरने मिलते हैं। इन दो झरनों से दो नदियां निकलती हैं। इनका नाम मलगेरु और तालपेरु है। बैलाडीला पर्वत की 14 शाखाएं हैं, जिन्हें नंदपराज, बरहाडोंगरी कहा जाता है। बरहाडोंगरी दंतेवाड़ा और बीजापुर वन मार्गों पर है। इसे अब ढोलकल भी कहा जाता है। ढोलकल में बहुत प्राचीन भगवान गणेश जी की प्रतिमा भी है। 3,385 फीट ऊंचे ढोलकल शिखर पर स्थापित विघ्नविनाशक भगवान गणेश की प्रतिमा मध्य भारत की एकमात्र गणेश प्रतिमा है, जो इतनी ऊंचाई पर विराजित है।

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