PFI Ban Case: पीएफआई को सुप्रीम कोर्ट से झटका, बैन के खिलाफ दायर याचिका हुई खारिज

PFI Ban Case: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) ट्रिब्यूनल के उस आदेश के खिलाफ उसकी याचिका खारिज कर दी, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा संगठन पर लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध की पुष्टि की गई थी।

Update: 2023-11-06 07:56 GMT
PFI Ban Case: पीएफआई को सुप्रीम कोर्ट से झटका, बैन के खिलाफ दायर याचिका हुई खारिज
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PFI Ban Case: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) ट्रिब्यूनल के उस आदेश के खिलाफ उसकी याचिका खारिज कर दी, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा संगठन पर लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध की पुष्टि की गई थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने पीएफआई को मामले में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दी।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि पीएफआई के लिए यह सही होगा कि वह आदेश के खिलाफ पहले हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाए और इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पीएफआई की याचिका खारिज कर दी। पीएफआई ने यूएपीए ट्रिब्यूनल के 21 मार्च के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने संगठन पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के 27 सितंबर, 2022 के फैसले को बरकरार रखा था। केंद्र ने आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकवादी संगठनों के साथ कथित संबंधों और देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश के लिए पीएफआई पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था।

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (Popular Front of India) की स्थापना साल 2006 में केरल से नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF), कर्नाटक से फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु से एमएनपी को विलय करने के बाद केरल में की गई थी। ऐसी कई रिपोर्टें आई हैं जो बताती हैं कि पीएफआई देश में आतंकी फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग और मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने में शामिल है। यह भी आरोप है कि जब भारत में आतंकी संगठन सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो उसके सदस्य पीएफआई में शामिल हो गए। पीएफआई पर शुरू से ही सांप्रदायिक दंगे भड़काने और नफरत का माहौल पैदा करने का आरोप लगता रहा है। 2014 में राज्य सरकार द्वारा केरल हाई कोर्ट में दिए एक हलफनामे के अनुसार, पीएफआई कार्यकर्ता केरल में 27 राजनीतिक हत्याओं और 106 सांप्रदायिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार थे।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पीएफआई नेताओं को उनके भाषणों के कारण मीडिया का बहुत अधिक ध्यान मिलता है, जिसे कुछ लोग उत्तेजक मानते हैं। इस समूह का दावा है कि उसके पास एक बड़ा समर्थक आधार है, लेकिन इसे अब तक ज्यादा राजनीतिक सफलता नहीं मिली है। इसकी रजिस्टर राजनीतिक पार्टी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) ने केरल में स्थानीय चुनावों में भाग लिया है और मामूली सफलता हासिल की है, लेकिन कोई भी संसदीय सीट नहीं जीत पाई है।

पिछले साल की शुरुआत में, कर्नाटक सरकार ने पीएफआई पर राज्य के एक स्कूल में छात्राओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के बाद विरोध प्रदर्शन भड़काने का आरोप लगाया था। अधिकारियों ने कहा कि पीएफआई की छात्र और महिला शाखा कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया और नेशनल महिला फ्रंट ने इन हिजाब समर्थक प्रदर्शनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े हिंदू समूहों ने लंबे समय से पीएफआई पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग की थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने 27 सितंबर 2022 को इस पर 5 साल के लिए बैन लगा दिया था।

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