छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों ने खोजी चावल से एथेनाल और प्रोटीन निकालने की सस्ती तकनीक, इससे डबल मुनाफा...

Update: 2023-06-19 09:27 GMT

रायपुर. चावल से एथेनाल उत्पादन की तकनीक काफी महंगी है. यह एक विकल्प है, लेकिन वर्तमान तकनीक से मुनाफे से ज्यादा नुकसान होगा. छत्तीसगढ़ में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ऐसी सस्ती तकनीक से विकसित की है, जिससे एथेनाल ही नहीं, बल्कि प्रोटीन निकालकर लाभ कमाया जा सकता है. इससे बाइ प्रोडक्ट के रूप में कार्बन डाई ऑक्साइड भी मिलेगा और मवेशियों के लिए चारा भी प्राप्त होगा. इससे अलग आमदनी हो सकती है.

गोदामों में चावल सड़ने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने करीब 13 साल तल्ख टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि यदि सरकारी गोदामों में चावल को सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है तो गरीबों में बांट दिया जाए. दरअसल, ऐसी स्थिति इसलिए है, क्योंकि छत्तीसगढ़ सहित धान का उत्पादन करने वाले राज्यों के साथ-साथ पूरे देश में धान की खेती होती है. जाहिर है कि इसकी मात्रा इतनी अधिक है कि गोदामों से लेकर धान खरीदी केंद्र तक धान और चावल सड़ने की खबरें आती रहती हैं. इसी के साथ धान के खाद्यान्न के अलावा दूसरे विकल्पों पर विचार किया गया. इसमें एथेनाल एक अच्छा विकल्प बनकर उभरा. हालांकि यह प्रोजेक्ट कम लाभ देने वाला है, इसलिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रोटीन के विकल्प पर काम किया और उन्हें सफलता भी मिली है.

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के डायरेक्टर रिसर्च डॉ. वीके त्रिपाठी कहते हैं, पूरे भारत देश में और हमारे छत्तीसगढ़ में चावल का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है. पूरे विश्व में चावल के वैकल्पिक उपयोग पर वैज्ञानिक काम कर रहे हैं कि लोगों के खाने के अलावा किस तरह चावल का उपयोग कर आर्थिक लाभ कमाया जाए. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चावल से प्रोटीन अलग करने की सरल और सस्ती विधि की खोज की है.

हम एक किलो चावल या कनकी से लगभग 90 ग्राम प्रोटीन अलग करने में सफल हुए हैं. यदि 90 ग्राम प्रोटीन अलग कर लिया जाता है तो उसके बाद भी इससे 400 मिलीलीटर एथेनाल प्राप्त होता है. जहां चावल से सिर्फ एथेनाल निकालना लाभकारी नहीं है, वहीं पर चावल से यदि प्रोटीन अलग कर लिया जाए तो यह प्रोटीन की मात्रा शुद्ध लाभ के रूप में प्राप्त होगी और तब चावल से एथेनाल बनाने का उपक्रम लाभकारी होगा.

इसके साथ ही साथ इस प्रक्रिया में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस प्राप्त होती है. एक किलो चावल को प्रोसेस करने में लगभग साढ़े चार लीटर कार्बन डाई ऑक्साइड प्राप्त होती है। इसे कोल्ड्रिंक्स की फैक्ट्री में बेच सकते हैं. इससे अलग से लाभ प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा डिस्टलरी में वीडीएस तैयार होता है, जिसे मवेशियों के लिए चारा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं.

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11 किलो चावल या कनकी से एक किलो प्रोटीन और साढ़े चार लीटर एथेनाल प्राप्त होता है. इस प्रकार चावल का इस्तेमाल कर उससे चावल के बजाय तीन गुना तक अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है. इस विधि का पेटेंट कराने के लिए हमने अप्लाई किया है. रजिस्ट्रेशन नंबर मिल गया है. एक साल में पेटेंट मिल जाएगा, फिर लोगों के लिए व्यावसायिक उपयोग के लिए इस विधि को लॉन्च कर सकते हैं.

चावल से बना प्रोटीन पचाने में आसान

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट मॉलिक्यूलर बायोलॉजी और बायो टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉ. सतीश वेरुलकर और डॉ. शुभा बैनर्जी ने यह तरीका इजाद किया है. प्रयोग में यह बात सामने आई है कि चावल से बने प्रोटीन की डायजेस्टिबिलिटी 90 प्रतिशत ज्यादा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज के बाद छत्तीसगढ़ में प्रोटीन इंडस्ट्री स्थापित की जा सकती है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल करीब 30 हजार मीट्रिक चावल अतिशेष बच जाता है. दुनिया में प्रोटीन का 11 बिलियन डॉलर का मार्केट है, जिसमें भारत में 2 बिलियन डॉलर की खपत है. फिलहाल बाजार में व्हे और सोया प्रोटीन का शेयर सबसे अधिक है. ऐसे में प्लांट बेस्ड प्रोटीन की ज्यादा डिमांड के चलते ये खोज बेहद अहम जाती है. इस तकनीक से सौ रुपए के चावल को प्रोसेस कर 400 रुपए का प्रोटीन तैयार किया जा सकता है.

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