भारत में रोज 450 आत्महत्याएं: नेशनल सुसाइड प्रीवेंशन स्ट्रैटिजी का क्या है लक्ष्य, पढ़िए NPG की खास पड़ताल

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Update: 2022-12-26 12:21 GMT

दिव्या सिंह@npg.news

देश में आत्महत्या की दर साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। अत्यधिक आत्मकेंद्रित जीवन, शिक्षा तथा करियर में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा, प्रेम में विफलता, उम्मीदों के मुताबिक नतीजे न मिलना जैसे अनेक कारणों से उपजे तनाव में लोग खुद पर नियंत्रण खो रहे हैं और बेशकीमती जान यूं ही गंवा रहे हैं। हालत ये है कि इसी साल कोटा में 16 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। अभिनेत्री तुनिशा का केस ताज़ा ही है।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में हर रोज़ औसतन 450 लोग यानि करीब 18 व्यक्ति हर घंटे आत्महत्या कर रहे हैं। इस बढ़ती दर को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने आत्महत्या रोकथाम को पाठ्यक्रम में शामिल करने का लक्ष्य रखा है।'राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति' के तहत इसके विधिवत योजना भी बनाई गई है।

देश में अमीर- गरीब, बच्चे -युवा -बुज़ुर्ग, शिक्षित-अशिक्षित, शहरी-ग्रामीण सभी वर्गों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है। अपनी-अपनी तरह का तनाव हर किसी को है लेकिन जो लोग उस तनाव का प्रबंधन नहीं कर पा रहे हैं, जिन्हें किसी अपने की उस कठिन मनोदशा में सही सलाह और देखरेख नहीं मिल पा रही है, वे आत्महत्या का मार्ग चुन रहे हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट पढ़िए

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में 2020 में आत्महत्या के कुल 1,53,052 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में सात प्रतिशत अधिक कुल 1,64,033 मामले दर्ज किए गए यानि औसतन लगभग 450 आत्महत्या रोजाना या हर घंटे करीब 18 केस। महाराष्ट्र में आत्महत्या के सर्वाधिक मामले दर्ज हैं। तमिलनाडु और मध्य प्रदेश दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे।

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

मनोचिकित्सक डॉ. जीपी गुरुराज कहते हैं" कि इतने कठोर निर्णय लेने के लिए उन्हें धक्का देने वाली कुछ परिस्थितियों में गंभीर अवसाद, दर्दनाक तनाव, पारस्परिक समस्याएं, असफल विवाह, बेरोजगारी, वित्तीय मुद्दे, शैक्षणिक विफलता जैसी अनेक वजहें शामिल होती हैं। छात्रों के लिए कम उम्र में और क्षमता से अधिक मानसिक तनाव झेलने से यह ट्रेंड बढ़ रहा है।...

हर कोई मेरे बिना बेहतर होगा, मेरा अस्तित्व व्यर्थ है, मेरे जीवन में कोई उम्मीद नहीं बची है... जैसे विचार उन्हें आत्महत्या की ओर प्रवृत्त कर रहे हैं। "

वे कहते हैं यदि उस समय वे अपने परिजन या मित्र से खुलकर बात करें, तो वह कठिन पल बीत जाएगा और इंसान खुद पर नियंत्रण कर सकने में सक्षम हो जाएगा। साथ ही जब तक मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता नहीं बढ़ती, लोग मनोचिकित्सक के पास जाने में शर्मिंदगी महसूस करना नहीं छोड़ते, तब तक चीजें बदल नहीं सकती हैं।

क्या है सरकार की 'राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति'

आत्महत्या पर रोक लगाने की दिशा में पहल करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश में अपनी तरह की पहली 'राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति' की घोषणा पिछले दिनों की है। इसके अंतर्गत साल 2030 तक आत्महत्या के कारण मृत्युदर को 10 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

तनाव प्रबंधन, आत्महत्या निवारण पाठ्यक्रम में शामिल करने की है योजना

सरकार ने इस घोषणा में आत्महत्या रोकथाम को पाठ्यक्रम में शामिल करने का भी लक्ष्य रखा है। योजना के तहत अगले आठ वर्षों के भीतर सभी शिक्षण संस्थानों में इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा, जिससे प्राथमिक स्तर पर बच्चों के इस बारे में शिक्षित किया जा सके। लक्ष्य के मुताबिक आत्महत्याओं के मामलों को लेकर जिम्मेदार मीडिया रिपोर्टिंग और आत्महत्या के साधनों तक पहुंच को प्रतिबंधित करने के लिए भी दिशानिर्देश तैयार करने की योजना बनाई जाएगी।

मनोचिकित्सक और विषय विशेषज्ञों की राय है कि निस्संदेह सरकार के इस प्रयास के सार्थक परिणाम आएंगे क्योंकि बच्चो को इस संबंध में समझने और परिस्थितियों को फेस करना सीखने का मौका मिलेगा।

दीपिका पादुकोण, इलियाना डिक्रूज, अर्जुन कपूर जैसे कलाकारों ने स्वीकारा है कि जीवन के एक क्षण में उन्हें भी आत्महत्या के विचार परेशान कर रहे थे लेकिन अपनों का साथ पाकर वे उस जटिल मानसिक परिस्थिति से बाहर आने में सफल हो गए। डाॅक्टर कहते हैं कि इस तरह के विचार आना अजीब नहीं है। परिस्थितियाँ किसी को भी आत्महत्या के विषय में सोचने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। लेकिन याद रखना चाहिए कि ज़िन्दगी अनमोल है और सिर्फ आपकी नहीं है। आप के जाने के बाद अपनों के मायूस चेहरे को इमेजिन करें, परिस्थितियों से जूझें, मनोचिकित्सक की मदद लें और विचारों के इस दुश्चक्र से बाहर आएं। ज़िदगी जीने के लिए मिली है, क्षणिक आवेश में गंवाने के लिए नहीं।

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