Asian Palm Civet: फोटो में देखिए दुर्लभ प्रजाति के एशियन पाम सिवेट और पांच बच्चों का रेस्क्यू, दुनिया की सबसे महंगी कॉफी इसी सिवेट से बनती है...

Asian Palm Civet: छत्तीसगढ़ के कटघोरा में मादा एशियन पाम सिवेट और उसके पांच बच्चे का वन विभाग ने सफलतापूर्वक रेस्क्यू किया। इसमें नोवा नेचर वेलफेयर सोसायटी की भूमिका रही। मादा सिवेट रहवासी क्षेत्र में पहुंचकर बच्चा दिया था। बता दे, दुनिया की सबसे महंगी कॉफी एशियाई पाम सिवेट से बनाई जाती है। बाली के लुवाक में यह कॉफी बनती है।

Update: 2025-05-15 11:02 GMT

Asian Palm Civet: कोरबा। कोरबा जिला जैवविविधता से भरा हुआ है आए दिन दुर्लभ जीव मिलने की खबरें सामने आते रहती हैं ऐसा ही मामला कटघोरा वनमण्डल अंतर्गत आने वाले हरदी बाज़ार क्षेत्र के मुंडाली गाँव में दुर्लभ प्रजाति की एशियन पाम सिवेट का मिला। मानवीय रहवास में धान के कोठी में मादा सीवेट अपने बच्चों के साथ एक घर में रह रही थी। गांव वाले देखे तो उनके लिए यह डर और आश्चर्य का नजारा था। वह अपने बच्चों को छोड़ कर जाना नहीं चाह रही थी।

इसकी सूचना घर के मालिक केशव जैसवाल द्वारा वन विभाग को दिया गया। वन विभाग एवं नोवा नेचर वेलफेयर सोसायटी की संयुक्त टीम द्वारा एक सुनियोजित और सफल रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए घटना स्थल पहुंची।


यह रेस्क्यु ऑपरेशन कटघोरा वन मण्डल के वनमण्डलाधिकारी कुमार निशांत के निर्देशानुसार उप वन मण्डलाधिकारी चंद्रकांत के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ। इस रेस्क्यू कार्य में नोवा नेचर वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष एम. सूरज के नेतृत्व में जितेन्द्र सारथी,मयंक बागची एवं बबलू मारुवा ,रेंजर अशोक मान्यवर, डिप्टी सुखदेव सिंह मरकाम, महेंद्र देवेंगन, केशव जायसवाल ने सक्रिय रूप से भाग लिया।

सूचना मिलते ही टीम मौके पर पहुंची और पूरी सावधानी एवं मानवीय दृष्टिकोण के साथ सिवेट माता एवं उसके बच्चों को सुरक्षित तरीके से पकड़ा। यह कार्य अत्यंत संवेदनशीलता एवं विशेषज्ञता के साथ संपन्न किया गया ताकि जानवरों को कोई तनाव या हानि न हो।


रेस्क्यू के उपरांत मां सिवेट एवं उसके 5 बच्चों को निकटवर्ती सुरक्षित वन क्षेत्र में पुनः प्राकृतिक वातावरण में छोड़ दिया गया, जिससे वे अपने स्वाभाविक आवास में स्वतंत्र रूप से जीवन यापन कर सकें।

अफसरों का कहना है कि इस पूरे अभियान ने वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह घटना यह दर्शाती है कि जब प्रशासन, विशेषज्ञ संस्थाएं और स्थानीय समुदाय मिलकर कार्य करते हैं, तो न केवल मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावना कम होती है, बल्कि जैव विविधता के संरक्षण को भी मजबूती मिलती है।

वन विभाग एवं नोवा नेचर वेलफेयर सोसायटी के इस समन्वित प्रयास की स्थानीय ग्रामीणों, पर्यावरण प्रेमियों तथा वन्यजीव संरक्षण से जुड़े संगठनों द्वारा सराहना की जा रही है।

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