NPG स्पेशल : प्रवासी मजदूरों के लिए फरिश्ता बनी भूपेश सरकार…. फ्री में भोजन और बस तो छोड़िये….पांव में चप्पल और बिना कार्ड के अनाज तक का इंतजाम कर रही है ये सरकार….मुख्यमंत्री की इस मेजबानी ने मजदूरों को बनाया मुरीद

Update: 2020-05-17 11:00 GMT

रायपुर 17 मई 2020। कोरोना संकट के इस दौर में जब कई राज्यों ने अपने ही मजदूरों को बेगाना बना दिया हैं, उस दौर में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल प्रवासी मजदूरों के लिए फरिश्ता बनकर सामने आये हैं। अपने राज्य के ना होते हुए भी अपनों से बढ़कर उनका ख्याल रख रहे हैं।

आज जब 500-1000 किलोमीटर का सफर तय कर प्रवासी अपने घरों को पैदल लौट रहे हैं…तो कई सरहदों से उनका सामना होता है…कहीं उनके बेजान जिस्म पर लाठियां बरसती है…तो कहीं भूखा पेट सिसकियां लेता नजर आता है….लेकिन छत्तीसगढ़ की सीमा में कदम रखते ही उनका सामना एक ऐसी आत्मीयता से होता है…जिसे देखकर हर मजदूर निहाल हो जाता हैं। दूसरे राज्यों में जिन पुलिसवालों के हाथों में डंडे होते हैं… यहां उन्ही खाकी वर्दी के हाथों में मजदूरों के लिए भोजन की थाली दिखती है…।

दूसरे राज्यों में जहां प्रशासन की टीम मजदूरों को खदेड़ती दिखती है…वहीं यहां सीमा पर तैनात सूबे के अफसर कर्मचारी मजदूरों का हाल पूछते हैं…तबीयत जानते हैं और फिर दो पल के लिए बिस्तर पर सुस्ता लेने का आग्रह करते हैं। इस मेहमाननवाजी ने वाकई में मजदूरों को छत्तीसगढ़ का मुरीद बना दिया है। ऐसा शायद मुमकीन ना हो पाता, अगर खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आत्मीयता ना दिखाई होती। खुद से आगे बढ़कर इस पुण्य कार्य की मॉनिटरिंग ना की होती।


मेजबानी तक तो ठीक है.. पैदल और सैंकड़ों मील का सफर तय करने वालों की खातिरदारी भी आने वाले लोगों को खाना खिलाने तक की बात तो समझ में आती है…लेकिन कौन ऐसा राज्य होगा जो इस बात की चिंता करे कि परदेस से यहां आये लोगों भूख लगी तो फिर ये क्या खायेंगे ?….कौन मुख्यमंत्री इस बात की परवाह करता है कि इन पैरों के छालों के लिए जूते-चप्पल ना मिले, तो फिर इनके कदम आगे कैसे बढ़ेंगे ?… ये सिर्फ सहानुभूति और संवेदना नहीं…एक सीएम की दूरदर्शी सोच हैं…एक मर्म है..और एक माटीपुत्र का अहसास है , जिसने इस दर्द को अपने गुजरते वक्त में करीब से जिया है।

आइये देखते हैं कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की वो संवेदनशील पहल, जिसने ये साबित किया कि छत्तीसगढ़ में कोई मजदूर मजबूर नहीं…बल्कि मेहमान बनकर रहेगा।

भोजन, वाहन और जूते-चप्पल के इंतजाम के निर्देश

जब से लॉकडाउन का दौर शुरू हुआ और दूसरे राज्यों ने मजदूरों को लेकर पल्ला झाड़ना शुरू किया…उस दौर में भूपेश बघेल इकलौते मुख्यमंत्री बनकर सामने आये, जिन्होंने खुले तौर पर इस बात का ऐलान किया कि किसी भी मजदूर को बेसहारा समझने की जरूरत नहीं। चाहे वो किसी प्रांत के हों उनके लिए छत्तीसगढ़ अपना है और वो पूरे अधिकार के साथ यहां रहें। फिर जब मजदूरों का अपने-अपने घरों की तरफ लौटना शुरू हुआ, तो फिर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मानवीयता दिखाते हुए खुले दिल से उनकी मदद के लिए सामने आये। राज्य सरकार के अफसरों को उन्होंने निर्देश दिया कि मजदूरों की तत्काल मदद करें, उनके खाने-ठहरने और सीमा तक छोड़ने का इंतजाम किया जाये। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ना सिर्फ निर्देश दिया, बल्कि खुद भी इस निर्देश के मद्देनजर इम्प्लीमेंटेशन का फीडबैक लेते रहे। नतीजा आज छत्तीसगढ़ मजदूरों के मददगार के तौर पर अव्वल राज्य बनकर सामने आया है।

जूता-चप्पल वितरण करने वाला देश का पहला राज्य

केंद्र सरकार के दावों को ठेंगा दिखाते हुए हर दिन लाखों मजदूर पैदल ही रास्ता नाप रहे हैं। कोई नंगे पैर हैं…तो किसी के चप्पल टूटे पड़े हैं। 40 डिग्री के तापमान में सड़कें तप रही है…पांव में फफोले पड़ रहे हैं…तो कई पैरों के घाव से मवाद रिस रहा है…ऐसे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रवासी मजदूरों के उस दर्द को महसूस करते हुए निर्देश दिया है कि उन्हें जूते-चप्पल मुहैय्या करायें, ताकि जख्म पर मरहम लगाया जा सके। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद छत्तीसगढ़ के सरहदी हिस्सों में मजदूरों के पैरों में अब चप्पल नजर आने लगे हैं। रायपुर, राजनांदगांव और कवर्धा में जूते चप्पल का वितरण शुरू कर दिया गया है।

हर दिन लाखों लोगों को भोजन

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मालूम था कि प्रवासी मजदूरों के लिए जो कुछ वो करना चाहते हैं, वो सिर्फ सरकार या सरकारी महकमे के बूते का नहीं है, लिहाजा उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से मददगारों का आह्वान किया…उनसे अनुरोध किया कि संकट की इस घड़ी में वो मजदूरों के लिए संवेदना दिखायें…उनकी मदद करें, भोजन-पानी का इंतजाम करे। मुख्यमंत्री के इस अनुरोध ने चमत्कारिक असर दिखाया… प्रदेश में जगह-जगह स्वयंसेवी संगठनों ने जिला प्रशासन के साथ सहयोग के लिए आगे आये। आज स्थिति ये है कि प्रदेश में हर दिन लाखों लोगों को फ्री में भोजन कराया जा रहा है। राजधानी के टाटीबंध में तो अकेला ही ये आंकड़ा हजारों में होता है.. इसके अलावा हर जिलों में भी इस तरह के कई इंतजाम किये गये हैं।

सीमा तक छोड़ने के लिए फ्री में बस सेवा

भोजन और रेस्ट रूम के अलावे फ्री में बसों की व्यवस्था की गयी है, ताकि उन्हें राज्यों की सीमा तक छोड़ा जा सके। छत्तीसगढ़ के राज्नांदगांव-महाराष्ट्र बोर्डर पर, जहां सबसे ज्यादा भीड़ लग रही है, वहां से करीब 100 बसों का इंतजाम किया गया है, ताकि वो सभी महाराष्ट्र, आंघ्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों के विभिन्न जिलों की सीमा तक आसानी से पहुंच सकें। बाघनदी बार्डर पर पहुंचने वाले अधिकांश प्रवासी श्रमिक झारखण्ड, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल के है, जो छत्तीसगढ़ होते हुए अपने गृह राज्य जा रहे हैं। उनके लिए भी वाहनों की व्यवस्था राज्य सरकार करा रही है, ताकि वो पैदल चलने को मजबूर ना हों।

बिना राशन कार्ड के 5 किलो अन्न की व्यवस्था

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अन्य राज्यों से वापस आए ऐसे प्रवासी व्यक्तियों जो राज्य व केंद्र की किसी भी योजना के अंतर्गत राशनकार्डधारी नहीं है, उन्हें मई एवं जून माह में प्रति सदस्य 5 किलो खाद्यान निःशुल्क देने का निर्देश दिया है। इस योजना के तहत अन्य राज्यों से वापस आए छत्तीसगढ़ के ऐसे प्रवासी व्यक्ति ही राशन सामग्री के लिए पात्र हांेगें जिनके नाम पर राज्य में कोई राशनकार्ड अब तक जारी न किया गया हो तथा किसी अन्य राशनकार्ड में इनका नाम सदस्य के रूप में दर्ज न हो। जारी परिपत्र में जिला प्रशासन द्वारा पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, राजस्व विभाग एवं श्रम विभाग के जिला अधिकारियों के द्वारा पात्र प्रवासी व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें सूचीबद्ध करने की कार्यवाही करने को कहा गया है।

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