शैलजा पाइक (Shailaja Paik) भारत की एक प्रसिद्ध इतिहासकार हैं। उन्होंने दलित महिलाओं के जीवन, जाति, लिंग और यौनिकता पर गहन शोध किया है।

शैलजा पाइक पहली दलित महिला हैं जिन्हें मैकआर्थर फेलोशिप से सम्मानित किया गया है। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
यह पुरस्कार "जीनियस ग्रांट" के नाम से भी जाना जाता है। इसमें $800,000 (लगभग 6 करोड़ 72 लाख रुपये) दिए जाते हैं ताकि व्यक्ति अपने काम को आगे बढ़ा सके।
शैलजा पाइक का शोध दलित महिलाओं के जीवन में जाति, लिंग और यौनिकता से जुड़ी समस्याओं पर केंद्रित है।
शैलजा पाइक का बचपन पुणे, महाराष्ट्र के एक झुग्गी (स्लम) इलाके में बीता। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी शिक्षा प्राप्त की।
शैलजा पाइक के परिवार ने शिक्षा को बहुत महत्व दिया, भले ही उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। शिक्षा ही उनकी ताकत बनी।
शैलजा पाइक ने पुणे विश्वविद्यालय से BA (बीए) और MA (एमए) की डिग्री प्राप्त की। उनकी शिक्षा की यात्रा यहीं से शुरू हुई।
शैलजा पाइक ने 2007 में यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक से PhD (पीएचडी) की डिग्री हासिल की। यह उनके जीवन का बड़ा मील का पत्थर था।
उन्होंने येल यूनिवर्सिटी और यूनियन कॉलेज में अध्यापन किया। यह उनके करियर में एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा।
आज शैलजा पाइक सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में इतिहास यानी हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं। वे वहां समाजशास्त्र और इतिहास पढ़ाती हैं।
उनकी पहली किताब का नाम "दलित विमेंस एजुकेशन इन मॉडर्न इंडिया" है। यह किताब दलित महिलाओं की शिक्षा पर आधारित है।
उनकी दूसरी किताब "द वल्गैरिटी ऑफ कास्ट" 2022 में प्रकाशित हुई। इसमें जाति की समस्याओं पर गहराई से चर्चा की गई है।
शैलजा पाइक का शोध दलित महिलाओं के संघर्षों को उजागर करता है। उनके काम से समाज में जागरूकता फैली है।
शैलजा पाइक कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं। वे जाति और लिंग भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में एक मजबूत आवाज़ हैं।
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