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Supreme Court News: वन भूमि पर कब्जा: सुप्रीम कोर्ट का अब तक का सबसे बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी जांच

Supreme Court News: उत्तराखंड के वन भूमि में अवैध कब्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और नाराजगी सामने आई है। नाराज कोर्ट ने कहा कि हजारों एकड़ वन भूमि पर लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से अवैध कब्जा कर लिया। चिंता की बात ये कि इस दौरान राज्य सरकार मूक दर्शक बनी रही। अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। सीजेआई की डिवीजन बेंच ने कहा कि इस पूरे की निगरानी सुप्रीम कोर्ट करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान में लेकर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है।

Supreme Court News: वन भूमि पर कब्जा: सुप्रीम कोर्ट का अब तक का सबसे बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी जांच
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SUPREME COURT NEWS

By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: दिल्ली। उत्तराखंड के वन भूमि में अवैध कब्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और नाराजगी सामने आई है। नाराज कोर्ट ने कहा कि हजारों एकड़ वन भूमि पर लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से अवैध कब्जा कर लिया। चिंता की बात ये कि इस दौरान राज्य सरकार मूक दर्शक बनी रही। अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। सीजेआई की डिवीजन बेंच ने कहा कि इस पूरे की निगरानी सुप्रीम कोर्ट करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान में लेकर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है।

चीफ़ जस्टिसऑफ इंडिया सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की डिवीजीन बेंच में जनहित याचिका की सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को स्वत: संज्ञान में लेते हुए जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है। पीआईएल की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने टिप्पणी की कि हजारों एकड़ वन भूमि को निजी व्यक्तियों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से हड़प लिया गया। अचरज की बात ये कि राज्य प्रशासन और वन विभाग के अफसरों ने इस पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की। वन भूमि पर कब्जा करने वालों के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई नहीं की गई है। दस्तावेजों से साफ हो रहा है कि वन भूमि पर लोगों ने वर्षों से योजनाबद्ध तरीके से कब्जा किया जा रहा है। राज्य सरकार और विभागीय अधिकारी रोकने में पूरी तरह विफल रहे। राज्य मशीनरी की विफलता और निष्क्रियता के चलते अवैध कब्जों को बढ़ावा मिला है। नाराज सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के चीफ सिकरेट्री और पीसीसीएफ को जांच समिति का गठन करने और मामले से जुड़े तथ्यों की जांच कर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि विवादित भूमि से संबंधित किसी भी निजी व्यक्ति या संस्था को भूमि का हस्तांतरण, गिरवी रखना या किसी भी प्रकार के तृतीय-पक्ष अधिकार बनाने की अनुमति नहीं होगी। कोर्ट ने निर्देशित किया है कि संबंधित क्षेत्र में किसी भी प्रकार का नया निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य शासन को निर्देश जारी किया है,आवासीय मकानों को छोड़कर शेष सभी खाली भूमि का कब्जा तुरंत वन विभाग और संबंधित जिलाधिकारी द्वारा लिया जाए, ताकि वन भूमि की स्थिति को सुरक्षित रखा जा सके।

यह विवाद लगभग 2866 एकड़ भूमि से संबंधित है, जिसे पहले सरकारी वन भूमि के रूप में अधिसूचित किया गया था। आरोप है कि इस भूमि का एक हिस्सा ऋषिकेश स्थित एक संस्था पशु लोक सेवा समिति को लीज पर दिया गया था। बाद में समिति द्वारा इस भूमि के अलग-अलग हिस्से अपने सदस्यों को आवंटित कर दिए गए। रिकॉर्ड के अनुसार, समिति और उसके सदस्यों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ, जिसके परिणामस्वरूप एक “संदिग्ध और मिलीभगतपूर्ण” समझौता डिक्री पारित की गई। इसके पश्चात, समिति के परिसमापन (liquidation) के दौरान 23 अक्टूबर 1984 को एक सरेंडर डीड के माध्यम से लगभग 594 एकड़ भूमि वन विभाग को वापस सौंप दी गई। यह आदेश अंतिम रूप से प्रभावी हो गया था। कुछ लोगों द्वारा यह दावा किया गया कि उन्होंने वर्ष 2001 के आसपास उक्त भूमि पर कब्जा कर लिया था। इन्हीं दावों और परिस्थितियों को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि वन भूमि पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जा हुआ है और राज्य के अधिकारियों ने समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले की निगरानी स्वयं करेगा और वन भूमि की सुरक्षा तथा कानून के शासन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करता रहेगा।

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