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SupremCourt News: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: ट्रिब्यूनल रिफार्म एक्ट 2021 को किया रद्द

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में ट्रिब्यूनल रिफार्म एक्ट 2021 को रद्द कर दिया है। खंडपीठ ने साफ कहा है कि यह न्यायिक स्वतंत्रता का सीधेतौर पर उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि यह कानून न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथककरण जैसे मूल संवैधानिक सिद्धांतों का गंभीर उल्लंघन करता है।

SupremCourt News: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: ट्रिब्यूनल रिफार्म एक्ट 2021 को किया रद्द
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SUPREME COURT NEWS

By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल रिफार्म एक्ट 2021 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा है कि यह कानून ट्रिब्यूनलों के सदस्यों की नियुक्ति,कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित है। खंडपीठ ने कहा मौजूदा कानून न्यायिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण जैसे मूल संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के.विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने कहा कि केंद्र सरकार ने अदालत के पूर्व के निर्देशों का पालन न करते हुए बार-बार उन्हीं प्रावधानों को दोहराया, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक घोषित कर चुका है। अदालत ने इसे कानूनी निर्णयों को दरकिनार करने की विधायी कोशिश करार दिया। खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि मौजूदा अधिनियम संविधान की मूल आत्मा के विपरीत है। कोर्ट ने कहा, यह उन ही प्रावधानों को पुनः लागू करता है, जिसे अदालत ने पहले ही अस्वीकार कर दिया था। इस तरह की विधायी पुनर्रचना न्यायिक निर्णयों को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास है जो संविधान व्यवस्था में किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।

खंडपीठ ने कहा कि जब तक संसद नया कानून नहीं लाती, तब तक मद्रास बार एसोसिएशन मामो में दिए गए निर्देश ही प्रभावी रूप से लागू रहेंगे। कोर्ट ने याद दिलाया कि 50 वर्ष की न्यूनतम आयु, चार वर्ष का संक्षिप्त कार्यकाल, अध्यक्ष और सदस्यों के लिए आयु-सीमा तथा सर्च-कम-सेलेक्शन कमेटी द्वारा प्रत्येक पद के लिए दो नाम भेजने जैसे प्रावधान पहले भी असंवैधानिक घोषित किए जा चुके हैं। ये उपाय न केवल मनमाने हैं बल्कि न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करने वाले हैं।

मद्रास बार एसोसिएशन की याचिका पर, सुप्रीम कोर्ट का आया फैसला

मद्रास बार एसोसिएशन ने इस कानून को चुनौती देते हुए 2021 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह निर्धारित कर दिया कि ट्रिब्यूनल सदस्यों का कार्यकाल कम से कम पांच वर्ष होना चाहिए और 10 वर्ष के अनुभव वाले वकीलों को पात्रता से बाहर नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद 2021 का अधिनियम इन निर्देशों के विपरीत दिशा में गया। अदालत ने केंद्र सरकार को चार महीने के भीतर राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग गठित करने का निर्देश भी दिया। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे सभी नियुक्ति आदेश वैध रहेंगे जो चयन प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद, लेकिन अधिनियम लागू होने के पश्चात जारी किए गए। ऐसे मामलों में सेवा शर्तें पुराने कानूनों और अदालत के पूर्व निर्णयों के अनुसार ही लागू होंगी, न कि 2021 के अधिनियम के अनुसार।

खंडपीठ ने अपने फैसले में यह कहा

खंडपीठ ने कहा कि जब न्यायपालिका किसी प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर देती है, तो संसद उन्हीं खामियों के साथ प्रावधान को पुनः लागू नहीं कर सकती। उसे संविधान के अनुरूप सुधार करने होंगे, न कि केवल पुराने कानून को नए नाम से दोहराना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता केवल हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि ट्रिब्यूनलों और अधीनस्थ न्यायपालिका की संरचना और कार्यप्रणाली में भी यह सिद्धांत सर्वोपरि है। 

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