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Supreme Court News: सेशन जज ने खटखटाया SC का दरवाजा: याचिकाकर्ता जज की विधिक क्षमता पर सवाल उठाने वाला MP हाई कोर्ट के आदेश पर रोक

Supreme Court News: सेशन जज ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा: याचिकाकर्ता जज की विधिक क्षमता पर सवाल उठाने वाला MP हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक..

Supreme Court News: सेशन जज ने खटखटाया SC का दरवाजा: याचिकाकर्ता जज की विधिक क्षमता पर सवाल उठाने वाला MP हाई कोर्ट के आदेश पर रोक
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SUPREME COURT NEWS

By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सेशन जज की विधिक क्षमता और फैसले पर कड़ी टिप्पणी करते हुए सवाल उठाया है। हाई कोर्ट की टिप्पणी से आहत सेशन जज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट आदेश को स्थगित करते हुए नोटिस जारी किया है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता सेशन जज की विधिक क्षमता पर सवाल उठाते हुए प्रतिकूल टिप्पणी कर दी है। हाई कोर्ट ने मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष रखने का आदेश जारी किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि चीफ जस्टिस के समक्ष प्रकरण को रखने के बाद यह तय किया जा सके कि संबंधित ज्यूडिशियल अफसर को प्रशिक्षण के लिए भेजा जाना चाहिए या नहीं। मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ता न्यायाधीश की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया है।

मई 2023 में संजू वडीवा के खिलाफ आईपीसी की धारा 376(2)(n), 376(3), 506 तथा पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(ल), 5(ज)(ii) एवं 6 के तहत पुलिस ने अपराध दर्ज किया था। मामले की सुनवाई याचिकाकर्ता सेशन जज की अदालत में हुई। सेशन जज ने साक्ष्यों के परीक्षण और सुनवाई के बाद आरोपी को दोषसिद्ध ठहराते हुए सजा सुनाई थी। सेशन जज के फैसले को चुनौती देते हुए संजू वडीवा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को बरी कर दिया। इस फैसले के साथ ही हाई कोर्ट ने एक और आदेश पारित किया। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता सेशन जज की विधिक क्षमता पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की, संबंधित जज को साक्ष्यों की जरा भी समझ नहीं है। हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि संबंधित ज्यूडिशियल अफसर प्रथम दृष्टया एडिशनल सेशन जज के रूप में कार्य करने के लिए उपयुक्त नहीं है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष रखने का निर्देश जारी किया था।

सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

हाई कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद सेशन जज ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। कड़ी टिप्पणी के बाद उन्हें हटाए जाने या संभावित कार्रवाई को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है। याचिकाकर्ता सेशन जज ने अपनी याचिका में कहा है, उनका मूल निर्णय विस्तृ, तथ्यात्मक और विधिसम्मत था। मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन के साथ ही प्रासंगिक न्यायिक दृष्टांतों को लागू किया गया था। इसके बावजूद हाई कोर्ट ने उनके विरुद्ध बिना उचित कारण व्यापक और कठोर टिप्पणियां कर दी है। याचिकाकर्ता सेशन जज ने कहा कि अपनी बात रखने का कोई अवसर दिए बिना ही दोषी ठहरा दिया गया जो प्राकृतिक न्याय सिद्धांत तथा संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने बताया कि वे दिसंबर 2019 से जिला एवं एडिशनल सेशन जज के पद पर कार्यरत हैं और उनकी सेवा रिकॉर्ड पूरी तरह बेदाग है। उनकी वार्षिक गोपनीय रिकॉर्ड ACR में उनके कार्य को लगातार बहुत अच्छा और उत्कृष्ट दर्ज किया गया है। आज तक न तो किसी एसीआर में और न ही किसी अपीलीय फैसले में उनके निर्णयों की गुणवत्ता पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी की गई है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला

याचिकाकर्ता सेशन जज ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले कौशल सिंह विरुद्ध राजस्थान सरकार के मामले में स्पष्ट किया था कि हाई कोर्ट को न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध निर्णयों में कलंककारी टिप्पणियां करने से संयम बरतना चाहिए। साक्ष्यों के आकलन में हुई त्रुटियों को अपील में सुधारा जा सकता है लेकिन उन्हें कदाचार या अक्षमता के रूप में नहीं देखा जा सकता। याचिका में कहा गया कि वर्तमान मामले की टिप्पणियां उसी बाध्यकारी सिद्धांत के सीधे खिलाफ हैं।

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