Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट का अहम सवाल: पाक्सो एक्ट में जब एक कांस्टेबल या पटवारी को 'पब्लिक सर्वेंट', तब चुने हुए जनप्रतिनिधि MP, MLA को क्यों नहीं?
Supreme Court News: POCSO एक्ट के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा कि जब पाक्सो के मामले में एक पटवारी या कांस्टेबल को पब्लिक सर्वेंट माना जाता है, तब एक चुने हुए जनप्रतिनिधि MP, MLA को क्यों नहीं माना जाना चाहिए। दुष्कर्म के आरोप में फंसे उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यह बात कही। हाई कोर्ट के फैसले को सीबीआई और दो अधिवक्ताओं ने चुनौती दी है।

supreme court of india (NPG file photo)
Supreme Court News: दिल्ली। POCSO एक्ट के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा कि जब पाक्सो के मामले में एक पटवारी या कांस्टेबल को पब्लिक सर्वेंट माना जाता है, तब एक चुने हुए जनप्रतिनिधि MP, MLA को क्यों नहीं माना जाना चाहिए। दुष्कर्म के आरोप में फंसे उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यह बात कही। हाई कोर्ट के फैसले को सीबीआई और दो अधिवक्ताओं ने चुनौती दी है।
उन्नाव दुष्कर्म के आरोपी कुलदीप सेंगर को मिली जमानत को CBI ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सीबीआई की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि POCSO एक्ट के मामले में एक कांस्टेबल या पटवारी को 'पब्लिक सर्वेंट' माना जाता है, लेकिन एक चुने हुए विधायक व सांसद को नहीं। उन्नाव रेप की घटना के समय विधायक रहे सेंगर ने POCSO एक्ट के तहत गंभीर यौन हमले के आरोप का विरोध करते हुए कहा कि मौजूदा कानून के अनुसार वह "पब्लिक सर्वेंट" नहीं है। POCSO एक्ट की धारा 2(2) के अनुसार, "सरकारी कर्मचारी" की परिभाषा IPC की धारा 21 में दी गई परिभाषा से ली जानी चाहिए, जिसके अनुसार, MLA सरकारी कर्मचारी नहीं है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया CJI सूर्यकांत, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसने सेंगर की सज़ा को निलंबित कर दिया था और दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील लंबित रहने के दौरान ज़मानत दे दी थी। ज़मानत आदेश पर रोक लगाते हुए बेंच ने कहा कि आमतौर पर किसी दोषी के पक्ष में ज़मानत आदेश पर उन्हें सुने बिना रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। हालांकि, इस मामले में रोक लगाई जा सकती है, क्योंकि सेंगर को रिहा नहीं किया गया और वह अभी दूसरे मामले में हिरासत में है।
सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकारी कर्मचारी शब्द को POCSO एक्ट में परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए इसे POCSO एक्ट की धारा 42A को ध्यान में रखते हुए संदर्भ के अनुसार समझा जाना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि POCSO एक्ट के तहत सरकारी कर्मचारी का मतलब वह व्यक्ति होगा, जो बच्चे के संबंध में प्रभावशाली स्थिति में है। उस स्थिति का दुरुपयोग करने पर गंभीर अपराध के प्रावधान लागू होंगे। यह तर्क दिया गया कि सेंगर उस समय इलाके में एक शक्तिशाली MLA होने के नाते, पीड़ित पर स्पष्ट रूप से ऐसा दबदबा रखता था।
सेंगर की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ताओं ने सालिसिटर जनरल के तर्कों का विरोध करते हुए कहा, POCSO एक्ट के तहत गंभीर अपराधों के लिए एक MLA को सरकारी कर्मचारी नहीं माना जा सकता है। IPC सरकारी कर्मचारी के दायरे से एक MLA को बाहर रखता है।
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सीजेआई ने चुने हुए विधायकों को पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा से बाहर रखने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, "हमें बस इस बात की चिंता है कि अगर यह व्याख्या मान ली जाती है तो एक कांस्टेबल या पटवारी इस अपराध को करने के मकसद से पब्लिक सर्वेंट होगा, लेकिन एक चुना हुआ MLA/MP इससे छूट जाएगा। बेंच ने कहा कि पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा और POCSO फ्रेमवर्क के तहत इसकी प्रासंगिकता से जुड़े कानूनी मुद्दे पर फैसला करने की ज़रूरत है।
