Supreme Court News: कर्मचारियों के लिए SC का बड़ा फैसला: पांच साल की सेवा के बाद त्यागपत्र या वीआरएस लेने वाला कर्मचारी ग्रेज्युटी का है हकदार
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट का फैसला कर्मचारियों के राहत देने वाला है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई कर्मचारी पांच साल की सेवा पूरी करता है और उसके बाद त्यागपत्र देता है या फिर वीआरएस ले लेता है तो, दोनों ही परिस्थिति में वह ग्रेज्युटी का हकदार होगा।

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Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का फैसला कर्मचारियों के राहत देने वाला है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई कर्मचारी पांच साल की सेवा पूरी करता है और उसके बाद त्यागपत्र देता है या फिर वीआरएस ले लेता है तो, दोनों ही परिस्थिति में वह पेमेंट ऑफ़ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के तहत ग्रेच्युटी का हकदार होगा। शर्त इतनी है कि कम से कम पांच साल की लगातार सर्विस कर्मचारी ने अपने संस्थान में पूरी कर ली हो।
दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन में कार्यरत कर्मचारी अशोक कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर सेवा लाभ देने की गुहार लगाई थी। मामले की सुनवाई के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। कर्मचारी की मृत्यु के बाद परिजनों ने मुकदमा लड़ने की सहमति दी। इसी आधार पर याचिका की सुनवाई जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की डिवीजन बेंच में हुई। मामले की सुनवाई करते हुए डिवीजन बेंच ने दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के अफसरों को अपील करने वाले मृत कर्मचारी के परिवार को ग्रेच्युटी देने का आदेश दिया। मृत याचिकाकर्ता कर्मचारी ने दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन में तकरीबन 30 साल नौकरी किया था। पारिवारिक कारणों की वजह से उसने त्यागपत्र दे दिया था। नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद अफसरों ने कर्मचारी को ग्रेच्युटी, पेंशन और लीव इनकैशमेंट जैसे दूसरे रिटायरमेंट बेनिफिट्स का भुगतान नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है, याचिकाकर्ता मृत कर्मचारी के कानूनी वारिस पेमेंट ऑफ़ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के सेक्शन 4 के तहत ग्रेच्युटी पाने के हक़दार है। डिवीजन बेंच ने कहा कि एक कर्मचारी जिसने कम से कम पांच साल की नौकरी की हो, वह ग्रेच्युटी पाने का हक़दार होगा, भले ही उसने वीआरएस ले लिया हो या नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया हो। कोर्ट ने कहा, चूंकि प्रमुख पक्षकार दिल्ली ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन DTC को पेमेंट ऑफ़ ग्रेच्युटी एक्ट के तहत छूट नहीं दी गई, इसलिए कोर्ट ने माना कि मृत याचिकाकर्ता कर्मचारी के कानूनी वारिस उसकी दी गई सर्विस के लिए 1972 एक्ट के नियमों के अनुसार ग्रेच्युटी पाने के हक़दार हैं।
