Uterine Fibroids: फाइब्रॉएड महिलाओं के शरीर में पनपने वाली ऐसी समस्या है जिसे कई बार वे पहचान ही नहीं पाती। पेट के निचले हिस्से में भारीपन ,कमर में दर्द,पेट के निचले हिस्से में बढ़ता फैट मानो दो तीन माह की प्रेगनेंसी हो, पीरियड्स के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव, पीरियड्स के बीत जाने पर भी अचानक ब्लीडिंग जैसी समस्याएं अगर आप फेस कर रही हैं तो आप फाइब्रॉएड की शिकार हो सकती हैं। फाइब्रॉएड इड महिलाओं के यूटेरस के अंदर और बाहरी दीवारों में पनपने वाली नाॅन कैंसरस गांठे हैं। यूं तो ये कई महिलाओं के शरीर में यूं ही बनी रहती हैं और उन्हें कोई परेशानी महसूस नहीं होती। लेकिन कई बार इनका आकार बहुत बढ़ जाता है और इनके पनपने की स्थिति की आधार पर ये महिलाओं के लिए गर्भधारण को कठिन बना सकती हैं। तब सर्जरी से इन गांठों को सिकोड़ा या निकाला जाता है। कई बार पूरा गर्भाशय ही निकालने की नौबत आ जाती है और आप यह समझ ही सकते हैं कि मां बनने की ख्वाहिशमंद महिला के लिए यह स्थिति कितनी पीड़ादायक हो सकती है।इसलिए लक्षणों को पहचानना और समय रहते जांच करा कर इलाज कराना बेहद जरूरी है। इस लेख में हम आपको फाइब्रॉएड के बारे में जरूरी जानकारी दे रहे हैं।
फाइब्राइड क्या है और क्यों होता है?
जैसे कि हमने बताया कि फाइब्रॉएड एक तरह की गांठें है जो एक से लेकर समूह में भी हो सकती हैं। ये नाॅन कैंसरस होती हैं। आप इन्हें गर्भाशय की मांसपेशियों के बीच या उसकी दीवारों पर पनपने वाले ट्यूमर के रूप में भी समझ सकते हैं। गर्भाशय में इनकी उपस्थिति के आधार पर ही इनके विभिन्न प्रकार होते हैं। और उसी आधार पर इनका इलाज भी होता है।
फाइब्रॉएड क्यों होते हैं, इसका एकदम सटीक कारण अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। 20 से 35 साल की रिप्रोडक्टिव एज में इसके पनपने की संभावना ज्यादा होती है। इस दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजस्ट्रान हार्मोन का स्तर महिला के शरीर में बढ़ा हुआ रहता है। खासकर गर्भावस्था के दौरान एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने से पहले से मौजूद छोटे फाइब्रॉएड भी बढ़ सकते हैं और परिणामस्वरूप मिसकैरेज,प्री मैच्योर डिलीवरी, सर्जरी के दौरान अत्यधिक रक्त स्राव जैसी अनेक परेशानियां पैदा हो सकती हैं। एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने के अलावा अन्य जैनेटिक कारण,हार्मोनल बदलाव, असामान्य स्टेम सेल वृद्धि, आदि भी फाइब्राइड का कारण हो सकते हैं। अभी इसके कारणों पर शोध जारी हैं।
फाइब्राइड के लक्षण
- ० पीरियड्स का अधिक अवधि तक चलना,
- ० इस दौरान अत्यधिक और असामान्य दर्द
- ० भारी रक्तस्राव
- ० अनियमित पीरियड्स
- ० पेल्विक पेन
- ० ज्यादा ब्लड लाॅस के कारण हद से ज्यादा थकावट और एनीमिया
- ० संभोग के दौरान दर्द
- ० बार-बार पेशाब करने की जरूरत महसूस होना
- ० पेशाब पर कंट्रोल नहीं रहना
- ० बढ़ा हुआ पेट
- ० लोअर बैक पैन
- ० कब्ज
- ० गर्भ धारण करने में असमर्थता आदि
फाइब्राइड की जांच और इलाज
अल्ट्रासाउंड और एमआरआई स्कैनिंग के द्वारा महिला के गर्भाशय में फाइब्रॉएड की उपस्थिति और आकार का पता लगाया जाता है। सबसेरोसल फाइब्राइड या इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड या सबम्यूकोस फाइब्रॉएड और पेड्यून्कुलेटेड फाइब्राॅइड आदि काॅमन हैं। इनमें से महिला किससे ग्रसित है, यह गर्भाशय में फाइब्रॉएड की पोजीशन के आधार पर डाॅक्टर बताते हैं। कई बार ये बहुत छोटे आकार के होते हैं और विशेष परेशानी की वजह नहीं बनते हैं। अगर फाइब्रॉएड बड़ा है या गर्भावस्था में रुकावट का या अधिक रक्तस्राव का कारण बन रहा है तो डाॅक्टर छोटी सर्जरी करके फाइब्राॅएड को सिकोड़ देते हैं।
निकाला भी पड़ सकता है गर्भाशय
यदि यूटेरिन फाइब्रॉएड बहुत बड़े आकार का है, असामान्य वजाइनल ब्लीडिंग का कारण बन रहा है, ब्लैडर समेत अन्य अंगों पर दबाव डाल रहा है, गम्भीर पेल्विक (कमर का निचला हिस्सा ) दर्द का कारण बन रहा है और मरीज के लिए असहनीय होता जा रहा है, तब ऐसी स्थिति में फाइब्रॉएड से मुक्ति के लिए पूरे गर्भाशय को निकालना भी पड़ सकता है। लेकिन स्पष्टतः यह किसी भी कम उम्र की, अविवाहित या विवाहित और संतान उत्पन्न करने की आकांक्षा रखने वाली स्त्री के लिए बहुत बड़ी हानि है क्योंकि इससे गर्भधारण करने की संभावना पर विराम लग जाता है। एक महिला का पूरा जीवन इससे निराशा से भर सकता है। इसलिए समय रहते अपना चैक अप और फाॅलोअप कराते रहना चाहिए।
ये कारण बढ़ा सकते हैं फाइब्रॉएड का जोखिम, रहें सतर्क, करें ये प्रयास
बहुत से ऐसे कारण होते हैं जो फाइब्रॉएड का जोखिम बढ़ा सकते हैं। इनमें मोटापा, विटामिन डी की कमी, उच्च रक्तचाप, परिवार में गर्भाशय फाइब्रॉएड की हिस्ट्री, कम सक्रियता, रजोनिवृत्ति की देरी से शुरुआत आदि शामिल हैं। अगर आपको प्रारंभिक जांच में पता चलता है कि आपके शरीर में फाइब्रॉएड पनप रहे हैं तो अपने खानपान की आदतें बदलें। अपनी डाइट में हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें। सेब, ब्रोकली, टमाटर, अनार, खजूर जैसी चीज़ें डाइट में शामिल करें। जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड के सेवन से बचें। चाय - कॉफी कम लें। स्मोकिंग और एल्कोहल से दूरी बनाकर रखें। नियमित तौर पर व्यायाम करें। इन तरीकों से आप अपनी समस्याओं पर काफी हद तक काबू पा सकती हैं। और अगर फिर भी आपको छोटी सर्जरी से गुज़रना पड़ता है तो डाॅक्टर की सलाह पर चलें। सर्जरी के बाद भारी वजन न उठाएं। डाॅक्टर द्वारा निर्देशित समय के बाद ही शारीरिक संबंध स्थापित करें। साथ ही सब सामान्य होने पर डाॅक्टर से पूछ कर समय रहते प्रेगनेंसी प्लान कर लें। क्योंकि फाइब्रॉएड की गांठें दोबारा पनप सकती हैं।