Pora Tihar and Kushotpatini Amavasya Aaj : मिट्टी के बैल की पूजा के साथ साल भर के पूजन के लिये आज होती है कुशा एकत्र
Pora Tihar and Kushotpatini Amavasya : धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली कुशा यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह पुण्य फलदायी होती है इसलिए इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है ।

Pora Tihar and Kushotpatini Amavasya : आज पोला पर्व है. पोला पर्व (पोरा तिहार) पूरे छत्तीसगढ़ में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. पोला पर्व भाद्रपद (भादो) माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है, जो इस बार 23 अगस्त को मनाई जा रही है. इस दिन मिट्टी के बैल और खिलौने की पूजा होती है. आज तक बाजारों में 100 से 150 रूपए जोड़ी बैल, जाता 40 से 70 रूपए तक, मटकी 10 से शुरू होकर 20 रुपए तक बाजार में बिके .
इस दिन को कुशोत्पाटिनी अमावस्या के रूप में भी मनाया जाता है. कुशा उखाड़कर घर लाने की प्रथा को कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन किया जाता है, जो साल में एक बार आती है. इसलिए इस दिन को कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा जाता है. इस दिन साल भर के धार्मिक अनुष्ठानों के लिए पवित्र कुशा एकत्र की जाती है और इसे उखाड़ते समय 'ॐ हूं फट' मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
पंडित राहुल महाराज के अनुसार मान्यता है की अमावस्या की तिथि पितरों की आत्म शांति, दान-पुण्य और के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है। इस अमावस्या को पुरोहित धार्मिक कार्यों के लिये कुशा उखाड़ कर एकत्रित करते हैं फिर घर लाते हैं कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली कुशा यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह पुण्य फलदायी होती है इसलिए इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है ।
मिट्टी के बैल और खिलौने की पूजा
पोला पर्व में मिट्टी से बने खिलौने और बैल की पूजा करने के बाद मिट्टी के बने बैल को बच्चे दौड़ाते हैं. उसके बाद शाम को पोरा (मिटटी के बर्तन पटकने) की रस्म घर की बेटी करती हैं. जिसे तुलसी के पेड़ के पास या फिर गांव में कहीं जहाँ मेले का आयोजन होता है उस स्थल में एक जगह बनाई जाती है वहां की जाती है.
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ठेठरी, खुरमी, मीठा और अन्य व्यंजन बनाते हैं
आज घरों में छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे ठेठरी, नमकीन, खुरमी, अनरसा, मीठा गुड़ चीला और गुलगुला भजिया बनाया जाता है. जिससे बैल और खिलौने की पूजा करके प्रसाद में चढ़ाया जाता है फिर पूजा परिवार मिलकर इन व्यंजनों का स्वाद लेते हैं.
