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Pora Tihar 2024 in Chattisgarh : धर्म-संस्कृति और प्रकृति को आपस में जोड़कर जीवन का सत्य और कार्यों को दर्शाता है "पोरा तिहार"

Pora Tihar 2024 : पोला त्यौहार या पोरा तिहार के दिन छत्तीसगढ़ में बैलों की पूजा, पोरा पटकने, धान का गर्भ धारण (छत्तीसगढ़ में पोट्ररी आना कहा जाता है ) पूजन और कुशोत्पाटिनी अमावस्या के रूप में भी मनाया जाता है.

Pora Tihar 2024 in Chattisgarh : धर्म-संस्कृति और प्रकृति को आपस में जोड़कर जीवन का सत्य और कार्यों को दर्शाता है पोरा तिहार
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By Meenu

Pora Tihar 2024 in Chattisgarh : छत्तीसगढ़ में 02 सितम्बर को पोरा तिहार मनाया जाएगा. दरअसल भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला यह पोला त्योहार, खरीफ फसल के द्वितीय चरण का कार्य (निंदाई गुड़ाई) पूरा हो जाने पर मनाते हैं। इस दिन पितृ पक्ष के लिए कुश भी बंधना शुरू किया जाता है, इसलिए इस दिन को कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है।

पोला त्यौहार या पोरा तिहार के दिन छत्तीसगढ़ में बैलों की पूजा, पोरा पटकने, धान का गर्भ धारण (छत्तीसगढ़ में पोट्ररी आना कहा जाता है ) पूजन और कुशोत्पाटिनी अमावस्या के रूप में भी मनाया जाता है.

इस विषय पर जब एनपीजी न्यूज ने छत्तीसगढ़ के विशेष जानकर और महामाया मंदिर के पुजारी पंडित और ज्योतिषाचार्य मनोज शुक्ला से बात की तो उनहोने इस त्यौहार की परंपरा कैसे धर्म और संस्कृति और प्रकृति से जुडी है इसके बारे में बताया... आइए तो जाने फिर शुक्ला के अनुसार किन-किन करणों से इस दिन का है विशेष महत्व है।




बैलों की होती है पूजा

फसलों के बढ़ने की खुशी में किसानों द्वारा बैलों की पूजन कर कृतज्ञता दर्शाने के लिए भी यह पर्व मनाया जाता है। गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाते हैं, फिर हर घर में उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद घरों में बने पकवान भी बैलों को खिलाए जाते हैं। कई गांवों में इस अवसर पर बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता है।


मेले के स्थान पर जाकर पोरा पटकती हैं, जीवन के सत्य को दर्शता है पोरा पटकना

शाम के वक्त गांव की युवतियां अपनी सहेलियों के साथ गांव के बाहर मैदान या चौराहों पर (जहां नंदी बैल या साहडा देव की प्रतिमा स्थापित रहती है) पोरा पटकने जाते हैं। इस परंपरा मे सभी अपने-अपने घरों से एक-एक मिट्टी के खिलौने को एक निर्धारित स्थान पर पटककर-फोड़ते हैं। जो कि नदी बैल के प्रति आस्था प्रकट करने की परंपरा है। युवा लोग कबड्डी, खोखो आदि खेलते मनोरंजन करते हैं। पोरा पटकाने के पीछे यह भी आश्रय है कि जो चीज मिट्टी से बनी है उसे मिट्टी में ही मिला देना। अरथत जीवन के सत्य को अवगत कराता है. जीवन सिर्फ एक त्यौहार परंपरा और मेला है फिर इसे एक दिन ख़त्म होकर मिट्टी में ही मिल जाना है।


खेल से बच्चों को सिखाना




इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। इसके अलावा मिट्टी के अन्य खिलौनों की बच्चों द्वारा खेला जाता है। मिट्टी या लकड़ी के बने बैलों से खेलकर बेटे कृषि कार्य तथा बेटियां रसोईघर व गृहस्थी की संस्कृति व परंपरा को समझते हैं। बैल के पैरों में चक्के लगाकर सुसज्जित कर उस के द्वारा खेती के कार्य समझाने का प्रयास किया जाता है।


विशेष व्यंजन से सराबोर


छत्तीसगढ़ में इस लोक पर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर, पूड़ी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया, तसमई जैसे कई छत्तीसगढ़ी पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों को सबसे पहले बैलों की पूजा कर भोग लगाया जाता है। इसके बाद घर के सदस्य प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।


इस दिन नहीं होती खेती की अनुमति

पोला पर्व की पूर्व रात्रि को गर्भ पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है। अर्थात धान के पौधों में दुध भरता है। इसी कारण पोला के दिन किसी को भी खेतों में जाने की अनुमति नहीं होती। दूसरी ओर पर्व के दिन कई तरह के खेलों का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें खो-खो, कबड्डी जैसे अन्य प्रचलित खेल खेले जाते हैं। इन खेलों को खेलने से लोगों में पर्व को लेकर अलग ही उत्साह नजर आता है।

पोला पर्व की मान्यताएं

रात मे जब गांव के सब लोग सो जाते है तब गांव का पुजारी-बैगा, मुखिया तथा कुछ पुरुष सहयोगियों के साथ अर्धरात्रि को गांव तथा गांव के बाहर सीमा क्षेत्र के कोने कोने मे प्रतिष्ठित सभी देवी देवताओं के पास जा-जाकर विशेष पूजा आराधना करते हैं। यह पूजन प्रक्रिया रात भर चलती है। वहीं दूसरे दिन बैलों की पूजा किसान भाई कर उत्साह के साथ पर्व मनाते हैं।

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